संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इंसान और कम्प्यूटर को जोडऩे में छुपे कई खतरे
10-Nov-2023 3:36 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  इंसान और कम्प्यूटर को जोडऩे में छुपे कई खतरे

बहुत साल पहले चिकित्सा विज्ञान से जुड़ी अपराध-कल्पनाओं पर उपन्यास लिखने वाले एक लेखक थे, और उन्होंने दूसरी कई कहानियों के साथ एक कहानी यह भी लिखी थी कि किस तरह एक दवा कंपनी डॉक्टरों को सैर पर एक ऑलीशान जहाज पर ले जाती है, और वहां पर उन्हें ब्रेनवॉश करके इस कंपनी की दवाओं को लिखने के लिए दिमागी रूप से तैयार किया जाता है। अब दुनिया में बैटरी कारों को बनाने वाले सबसे बड़े कारोबारी एलन मस्क की एक रिसर्च कंपनी को अमरीकी सरकार से इंसानों के दिमाग में माइक्रोचिप लगाकर उन्हें कई तरह की न्यूरो (स्नायु) बीमारियों में मदद करने की इजाजत दी है। एलन मस्क दुनिया के सबसे बड़े माइक्रो ब्लॉग प्लेटफॉर्म, ट्विटर (अब एक्स) के मालिक बनने के बाद अधिक खबरों में हैं, और इन दो कारोबारों के साथ वे अंतरिक्ष में सैलानियों को ले जाने का काम भी करते हैं, उपग्रहों से दुनिया के किसी भी हिस्से में इंटरनेट उपलब्ध करा सकते हैं, और अब वे इंसानी दिमाग तक पहुंचने की इजाजत अमरीका के सबसे कड़े समझे जाने वाले दवा-नियंत्रक से पा चुके हैं। इसके बाद उनकी प्रयोगशालाएं न्यूरालिंक नाम के इस प्रोजेक्ट के मानव-प्रयोग शुरू करेगी। जाहिर तौर पर यह चिप ऐसे लोगों के दिमाग में लगाया जाएगा जो लकवे की वजह से या किसी और वजह से बदन का उपयोग नहीं कर पाते हैं, और इस तरह के चिप से वे केवल दिमाग में सोचकर ही कम्प्यूटर पर काम कर सकेंगे। इस प्रोजेक्ट को ब्रेन-कम्प्यूटर इंटरफेस कहा गया है, और इस प्रयोग के लिए हजारों लोगों ने वालंटियर बनने का प्रस्ताव रखा है। 

एलन मस्क के इस प्रोजेक्ट के साथ जोडक़र कुछ और चीजों को भी देखने की जरूरत है। अमरीका में वहां के सैनिक विभाग के कई तरह के रिसर्च निजी कंपनियों के साथ मिलकर चलते रहते हैं। ऐसी मिलिट्री रिसर्च बहुत ही खुफिया रहती है, और सरकार निजी कंपनियों को अंधाधुंध पैसा देकर ऐसे शोध काम करवाती है। ऐसे ही एक प्रोजेक्ट के बारे में कुछ अरसा पहले खबर आई थी कि इंसानों के दिमाग में एक चिप लगाकर अमरीकी फौज ऐसे फौजियों को कई तरह की हिंसा करने, और अनैतिक काम करने के लिए भी तैयार कर सकेगी जो कि कोई भी जिम्मेदार इँसान आमतौर पर नहीं करेंगे। मतलब यह कि दिमागी बीमारियों में मदद के दावे की आड़ में अमरीकी फौज अपने सैनिकों को अधिक खूंखार और बेरहम बनाने की तैयारी कर रही है, ऐसे आरोप लगते रहे हैं। फौजियों की भावनाओं पर सेना के इस किस्म से कब्जे की तैयारी के आरोप लगते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि कई देशों में अमरीकी फौजों के जुल्म के बाद जब सैनिक वहां से लौटते हैं, तो वे बरसों तक कई तरह की मानसिक बीमारियों से घिर जाते हैं, क्योंकि उस हिंसा की तकलीफदेह यादें उनके दिमाग से निकलती ही नहीं है। अब हो सकता है कि ऐसा कोई चिप लगने से फौजी इंसानों को ऐसे हैवानों में तब्दील कर दिया जाए जिनकी भावनाएं ही न हों। 

जब इस तरह की कम्प्यूटर-ब्रेन टेक्नालॉजी को आज की साइबर घुसपैठ और ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से जोडक़र देखा जाए तो इसके खतरे अकल्पनीय रूप से खतरनाक दिखते हैं। ऐसे चिप लगाकर लोगों को अगर उनकी इंसानी सोच से परे का बनाया जा सके, तो फिर उनसे कोई भी काम करवाए जा सकते हैं। यह भी हो सकता है कि लोगों का अपहरण करके, या किसी मेडिकल बेहोशी की हालत में उनमें ऐसे चिप लगा दिए जाएं, या फौजियों से लेकर आतंकियों तक, लोग अपनी मर्जी से ऐसे चिप लगवा लें ताकि वे हथियारों पर बेहतर काबू कर सकें, उन्हें मिलने वाले संदेश और निर्देश अधिक आसानी से पा सकें, और फिर उनकी सरकारें या उनके कारोबार उनसे मनमानी करवा सकें। यह पूरा सिलसिला कुछ दशक पहले तक सिर्फ अपराध कथाओं में रहता था, और अब यह मानव-परीक्षणों के लिए अमरीकी सरकार की मंजूरी पा चुका है। यह भी हो सकता है कि जिस तरह गरीब लोग मजबूरी में किडनी बेचते हैं, उसी तरह बहुत से गरीब पैसों के लिए, या किसी रोजगार के लिए इस तरह के चिप लगवाने को तैयार हो जाएं, और बाद में उन्हें पता ही न चले कि किस तरह वे कामगार से आत्मघाती दस्ते में तब्दील हो गए। लोगों को सरकार और कारोबार की जुर्म की क्षमता को कम नहीं आंकना चाहिए। ये दोनों ही इंसानों को पुर्जों की तरह, हथियारों की तरह, औजारों की तरह इस्तेमाल करने के आदी रहते हैं, और दिमाग में चिप लगा देने के बाद, उसके कम्प्यूटर से रिश्ते के बाद अब इंसान को मशीन जैसा बनाया जा सकेगा, और ऐसे इंसानों के पूरे दिमाग को किसी मशीन पर कॉपी करके उसे रोबोकॉप फिल्म के मशीनी मानव की तरह बनाया जा सकेगा। यह पूरा सिलसिला इतना भयानक है, और इस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, कि इन पर नई अपराध कथाएं लिखना भी आसान नहीं है। आज ऐसी कुछ अलग-अलग खबरों को देखकर, किसी उपन्यास और किसी दूसरी फिल्म को याद करके ये बातें लिखी जा रही हैं, इनका कोई असर ऐसे प्रयोगों को रोकने में तो नहीं होगा, लेकिन लोगों को सावधान करने के लिए हम इतना जरूर लिख रहे हैं। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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