संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बदतमीजी पर हॅंसने वाले बदतमीज छोड़ और क्या?
15-Nov-2023 4:09 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बदतमीजी पर हॅंसने वाले बदतमीज छोड़ और क्या?

photo : twitter

सार्वजनिक जीवन में गलत काम करना ही नुकसानदेह नहीं होता, गलत काम का मजा लेना, या कि उस वक्त चुप बैठे रहना भी नुकसानदेह होता है। अभी कुछ अरसा पहले नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में महिलाओं के बारे में एक बड़ी अश्लील और फूहड़ बात कही थी, और इसे लेकर उनकी जो फजीहत हुई है, वह तो उनकी हुई है, लेकिन इस बकवास के वीडियो में उनके ठीक पीछे बैठे हुए जो दूसरे विधायक हॅंस रहे थे, वे भी बराबरी के न सही कुछ कम जिम्मेदार तो हैं ही। लोगों को याद होगा कि कुछ अरसा पहले लोकसभा में भाजपा के एक सदस्य ने बसपा के एक सदस्य को गंदी-गंदी नफरती गालियां दी थीं, और उनके पीछे बैठे भाजपा के दो सबसे वरिष्ठ सांसद, हर्षवर्धन और रविशंकर प्रसाद हॅंसते चले जा रहे थे, और उनकी वह हॅंसी संसद के कुकर्मों के इतिहास में अच्छी तरह दर्ज है। जिस तरह कातिल के साथ के लोग, या कि बलात्कारी के साथ के लोग कम या अधिक हद तक जिम्मेदार माने जाते हैं, उसी तरह किसी तरह के गलत काम के ऐसे गवाह हमेशा के लिए बदनाम हो जाते हैं, और भले लोगों की नजरों में नफरत के लायक रहते हैं। 

आज इस मुद्दे पर लिखने की एक जरूरत इसलिए पड़ी कि पाकिस्तान के एक भूतपूर्व क्रिकेट खिलाड़ी अब्दुल रज्जाक ने हाल ही में पाकिस्तानी टीम के खराब खेल की आलोचना करते हुए उन्हें बेहतर बनाने की वकालत की। और एक मिसाल देते हुए उन्होंने कहा- अगर आपकी ये सोच है कि मैं ऐश्वर्या राय से शादी करूं, और वहां से सदाचारी बच्चा पैदा हो जाए, तो ये कभी नहीं हो सकता। जब अब्दुल रज्जाक यह कह रहे थे, तो उनके साथ दो और पाकिस्तानी क्रिकेटर उमर-उल और शाहिद आफरीदी भी मौजूद थे, और दोनों तालियां बजाकर हॅंस रहे थे। जब इस बयान और ऐसी हॅंसी पर चारों तरफ से हमले हुए, तो अब्दुल रज्जाक ने देर शाम एक वीडियो जारी कर माफी मांगी। उन्होंने कहा कि मुझे मिसाल कुछ और देनी थी, लेकिन जुबान फिसल गई, मैं उनसे इसके लिए माफी मांगता हूं। 

अब सवाल यह उठता है कि इस माफी से परे एक बात तो बाकी रह गई है कि अब्दुल रज्जाक किसी और की मिसाल देना चाहते थे, मतलब यह कि ऐश्वर्या न सही कोई और महिला उनके गंदे मजाक का शिकार होने वाली थी। एक मर्द की सोच यह साबित कर रही थी कि औलाद के सदाचारी होने या न होने से औरत का ही लेना-देना होता है, और अगर औलाद सदाचारी नहीं है, तो उसके लिए उसकी मां ही जिम्मेदार होगी। यह सिलसिला हिंसक पुरूषप्रधान सोच का है, जो कि हिन्दुस्तान में भी भरी हुई है, लेकिन पाकिस्तान में शायद उससे कुछ अधिक ही है। यह सोच लोगों में उनके धर्म, जाति, सामाजिक संस्कार, और पारिवारिक माहौल से उपजती है, और हिंसक या गंदी सोच एक किस्म से ऐसे लोगों के मां-बाप पर भी तोहमत लाती है कि उन्होंने अपनी औलाद को महिलाओं का सम्मान करना नहीं सिखाया। दरअसल महिलाओं का सम्मान सिखाया नहीं जाता है, बल्कि परिवारों में उसकी मिसाल सामने आती रहती हैं, और वही सबक भी बनती है। इज्जत हो या हिंसा, बच्चे अपने परिवार में ही सबसे पहले सीखते हैं। 

जिन दो खिलाडिय़ों ने एक गंदी बात पर तालियां बजाकर हॅंसना ठीक समझा था, उनमें से एक शाहिद आफरीदी ने बाद में सफाई दी, और कहा कि उस वक्त उन्होंने उस बात को ठीक से सुना नहीं था। यह एक बहुत ही खोखली सफाई इसलिए है कि लोग जब स्टेज पर कैमरों के सामने किसी महिला के बारे में गंदी बात सुनते हुए हॅंसते हैं और तालियां बजाते हैं, तो ऐसा तो है नहीं कि उन्हें वह बात समझ न आई हो। अब लोगों की धिक्कार के बाद सबको अपनी इज्जत दुरूस्त करने की जरूरत पड़ रही है, तो तरह-तरह की सफाई दी जा रही है। यह सफाई देते हुए भी, और माफी मांगते हुए भी यह बकवास करने वाले पाकिस्तानी क्रिकेटर का यही कहना है कि वह कोई और मिसाल देने वाले थे। मतलब यही है कि वे किसी न किसी और की मिसाल देने वाले थे, मानो ऐश्वर्या की जगह किसी और को बेइज्जत करना चल जाता।

हम पहले भी इस बात को उठाते आए हैं कि सार्वजनिक जीवन हो, या सोशल मीडिया, लोगों को अपने आसपास के दायरे को लेकर जिम्मेदार रहना ही होगा। चाहे वे संसद या विधानसभा में बैठे हों, किसी स्टेज पर या टीवी चैनल के कैमरों के सामने हों, या फिर सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए हों, उन्हें वहां की बातों पर अपना नजरिया साफ रखना ही होगा। चुप्पी कोई विकल्प नहीं हो सकता। जब आपके सामने नाजायज बातें हो रही हैं, तो आपकी चुप्पी आपकी भागीदारी रहती है। लोगों में इतना हौसला रहना चाहिए कि वे नाजायज बात का विरोध करें, आप वहां पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए गलत बात को अनदेखा नहीं कर सकते, उससे अनछुए नहीं रह सकते। एक वक्त गांव के पेड़ के नीचे चबूतरे पर कही और सुनी गई बात कहीं दर्ज नहीं होती थी, और अच्छा-बुरा सब कुछ खप जाता था। अब तो की-बोर्ड पर टाईप किया एक-एक शब्द, या किसी नाजायज और हिंसक पोस्ट को लाईक कर देना भी दर्ज होते रहता है। इसलिए आज कैमरों के सामने, माईक के सामने डिजिटल मौजूदगी अधिक दर्ज होती है। अब कुछ भी अनदेखा नहीं रहता, और आपका भला या बुरा होना इससे भी साबित हो जाता है कि आपके सामने कैसी बातें हो रही थीं, और उस वक्त आपकी क्या प्रतिक्रिया थी। इसलिए लोगों को फूहड़ लतीफों पर हॅंसने, छेडख़ानी देखकर चुप रहने, किसी ज्यादती को अनदेखा करने के पहले याद रखना चाहिए कि उनकी अपनी साख इन्हीं बातों से बनती और बिगड़ती जा रही है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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