संपादकीय
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का मतदान पूरा हो जाने पर जो आंकड़े सामने आ रहे हैं उनमें सबसे ही हैरान करने वाले आंकड़े राजधानी रायपुर के हैं। यहां की चार सीटों पर 55 से 60 फीसदी के बीच वोट डले हैं। इनमें से कुल एक विधानसभा सीट ने 60 फीसदी वोट देखे हैं। इन चारों सीटों को पिछले कुछ चुनावों से देखें, तो 2008, 2013, 2018 से भी खासे कम वोट इन सीटों पर पड़े हैं। अब सवाल यह उठता है कि जो सबसे सुविधा-संपन्न शहर है, वहां पर ऐसी दुर्गति क्यों हो रही है कि आधा किलोमीटर के भीतर मतदान केन्द्र होने पर भी वोटर घर बैठे हुए हैं। हर किसी के पास गाडिय़ां हैं, लेकिन वोट डालने नहीं जा रहे हैं। कहने के लिए इन चारों सीटों पर कहीं हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे थे, तो कहीं ब्राम्हण और गैरब्राम्हण के। कहीं म्युनिसिपल के मुद्दों को लेकर नाराजगी थी, तो अखबारों के दो-चार पेज हर दिन इस शहर की बदहाली से भरे रहते थे। ऐसे में लोगों को या तो सत्ता पलट के लिए, या किसी नए उम्मीदवार को जिताने के लिए अधिक संख्या में बाहर आकर वोट डालने थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब नक्सली हिंसा और सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी वाले, जंगलों में बसे बस्तर के गांवों के लोगों ने बड़ी संख्या में वोट डाले हैं। कई जगहों पर तो राजधानी रायपुर से डेढ़ गुना तक वोट डले हैं। और वोटरों की जागरूकता के लिए होने वाले तमाम कार्यक्रम इसी राजधानी रायपुर से शुरू होते हैं, लेकिन वोटर इस बार जिस हद तक उदासीन थे, उससे इस शहर के उम्मीदवारों और पार्टियों को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं। चुनाव तो हर पांच बरस में होते ही रहते हैं, इसलिए जिन जगहों पर वोट इतने कम पड़े हैं, उनके बारे में चुनाव आयोग, सरकार, पार्टियों, और प्रेस को भी सोचना चाहिए कि आगे क्या किया जा सकता है? ऐसे सीमित वोटों का मतलब तो यह भी निकलेगा कि बहुत मामूली वोटों से लोग जीत जाएंगे। ऐसी भला क्या वजह हो सकती है कि इसी राजधानी रायपुर से लगे हुए धरसीवां में यहां से करीब डेढ़ गुना वोट डले, लगे हुए आरंग में डेढ़ गुना वोट डले, और लगे हुए अभनपुर में डेढ़ गुना से ज्यादा वोट डले, ऐसा कैसे हो सकता है? कैसे राजधानी की इन चार सीटों के मतदाता पिछले किसी भी चुनाव के मुकाबले कम दिलचस्पी रखें, और आसपास की लगी हुई और तमाम सीटों से भी कम दिलचस्पी रखें! इसकी वजहें पता लगानी चाहिए, क्योंकि इन्हीं के बारे में पैसा, मुर्गा, दारू, सब कुछ बांटने की ढेर-ढेर खबरें भी थीं। यह एक रहस्य है, और वार्ड स्तर पर किसी को इसका अध्ययन करना चाहिए कि पिछले चुनाव से इस चुनाव तक मतदान केन्द्रों पर क्या फर्क पड़ा है, और क्यों फर्क पड़ा है।