संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चीन में फिर संक्रामक बीमारी, भारत के लिए सबक का मौका
27-Nov-2023 5:33 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  चीन में फिर संक्रामक बीमारी,  भारत के लिए सबक का मौका

फोटो : सोशल मीडिया

चीन के कुछ हिस्सों में अचानक बच्चे सांस की बीमारी से जूझ रहे हैं। उनके फेंफड़ों में जलन हो रही है, तेज बुखार और फ्लू जैसे लक्षण हैं। उत्तरीय चीन में इसे फैलने से रोकने के लिए स्कूलें बंद कर दी गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फिक्रमंद होकर चीन से इस बारे में जानकारी मांगी है क्योंकि जब कोरोना का विस्फोट चीन में हुआ था, तो उसने बड़े संदिग्ध तरीके से जानकारी बाकी दुनिया से छुपाई थी। इस बार चीन के अफसरों का कहना है कि अभी बच्चों में जो संक्रमण फैला है वह मार्च तक जारी रह सकता है, और उसके अलावा कोरोना का संक्रमण फिर से होने की चेतावनी भी दी गई है। वहां से आई खबरें बताती हैं कि अस्पताल भर गए हैं, और डॉक्टर को दिखाने में ही लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। कोरोना प्रतिबंध हटाने के बाद यह ठंड का पहला मौसम है, और इसमें मौसमी सर्दी-बुखार के साथ-साथ एक बार फिर कोरोना का संक्रमण फैलने का खतरा माना जा रहा है। चीन की सरकार ने लोगों को मास्क पहनने कहा है, और यह भी कहा है कि स्कूलों और नर्सिंग होम जैसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर बीमारी फैलने का खतरा है इसलिए लोग इससे बचें। भारत सरकार ने चीन के इस ताजा संक्रमण को देखते हुए देश के सभी प्रदेशों को सावधान किया है, और कहा है कि सांस से संबंधित बीमारियों से निपटने की अपनी तैयारी आंक लें, और बच्चों और किशोर उम्र लोगों की बीमारी पर बारीकी से नजर रखें। राज्यों को याद दिलाया गया है कि ऑक्सीजन, वेंटिलेटर जैसे उपकरणों की उपलब्धता और क्षमता को भी तौल लिया जाए। 

हिन्दुस्तान किसी भी नसीहत और सदमे से बड़ी तेजी से उबर जाता है। कई बरस पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक झाड़ू थाम लिया था, और पूरे देश को साफ-सफाई करने और रखने के लिए कहा था। नतीजा यह हुआ कि देश में जितने कैमरे थे उतने झाड़़ू सामने आ गए, और बहुत सी जगहों पर तो नेताओं के साफ करने के लिए साफ-सुथरा ‘कचरा’ बिखेर दिया जाता था जिन्हें लोग कैमरों के सामने साफ करते दिखते थे। लेकिन लोग उससे बड़ी तेजी से उबर गए। कुछ महीनों के भीतर लोग फिर चारों तरफ गंदगी फैलाने लगे, और मोदी के आव्हान के बाद की एक दीवाली छोड़ बाद की किसी दीवाली पर लोगों ने पटाखों का कचरा भी नहीं हटाया। इसी तरह जब कोरोना का हमला हुआ, तो लोग अचानक मास्क लगाकर रहने लगे, हाथ साफ रखने लगे, लापरवाही से खाना-पीना बंद कर दिया, और साल-दो साल के भीतर ही आज हालत यह है कि लोग पुराने ढर्रे पर लौट गए हैं, और देश में साफ-सफाई की तहजीब पूरी तरह गायब हो चुकी है। लोगों का बस चले तो अब पखाने के बाद भी हाथ न धोएं। 

इसी तरह देश-प्रदेश की सरकारों ने जिस युद्धस्तर पर कोरोना से लडऩे के लिए अस्पतालों को तैयार किया था, मशीनें खरीदी थीं, वह सब कुछ शायद ही दुबारा इस्तेमाल के लायक बचा हो। वेंटिलेटर जैसे नाजुक सामान चलाने के लिए उस वक्त भी स्वास्थ्य कर्मचारियों की ट्रेनिंग नहीं थी, और उसके बाद से तो अब ऐसा कुछ सुना भी नहीं गया। देश-प्रदेश की सरकारों में स्वास्थ्य कर्मचारी तो करोड़ों की संख्या में होंगे, लेकिन कोरोना के जाने के बाद से किसी और संक्रामक महामारी के लिए इन कर्मचारियों की ट्रेनिंग हुई हों ऐसा कभी सुना भी नहीं गया। सरकारों में नौकरी पाने तक लोगों की दिलचस्पी रहती है, और नौकरी में आ जाने के बाद उनकी अगली दिलचस्पी ओल्ड पेंशन स्कीम लागू होने, और महंगाई भत्ता मिलने तक सीमित रह जाती है। नेताओं की दिलचस्पी उम्मीदवारी पाने, चुनाव जीतकर मंत्री बनने, और उसके बाद कमाऊ विभाग पाने तक सीमित रहती है। इसके बाद कमाने का रास्ता तो उन्हें पेशेवर आला अफसर दिखा ही देते हैं जिनमें वे भागीदार भी रहते हैं। ऐसे देश में किसी खतरे के लिए तैयारी की जागरूकता किसी में नहीं रहती।
 
अभी उत्तराखंड में जिस बन रही सुरंग में फंसे मजदूरों को एक पखवाड़ा होने को है, उस सुरंग से ऐसे किसी हादसे से निकलने का कोई रास्ता ही नहीं रखा गया था। मजदूरों की जान की हिफाजत शायद सत्ता की आखिरी प्राथमिकता रहती है। और अभी देश में करीब दर्जन भर और ऐसी सुरंगें बन रही हैं, और यह हादसा होने के बाद अब जाकर सरकार इस बात के लिए तैयार हो रही है कि बाकी सुरंगों का भी सुरक्षा ऑडिट करवाया जाए। जब हजारों करोड़ की ऐसी विनाशकारी योजनाएं नाजुक पहाड़ों के नीचे से बनाई जा रही हैं, तब किसी सुरक्षा ऑडिट की बात इसलिए नहीं की गई होगी कि इसमें हजारों करोड़ का ठेका रहा होगा, और इतना बड़ा केक कटने पर सबको उसका एक-एक टुकड़ा तो मिलता ही है। पिछले कोरोना के दौर में वेंटिलेटर जैसी जान बचाने वाली मशीन को बनाने के लिए कई तरह के कारखानों का इस्तेमाल किया गया था, और पीएम केयर्स नाम के बनाए गए एक फंड से जो वेंटिलेटर खरीदे गए थे, उसमें बड़ी संख्या में खराब भी निकलने की खबरें थीं। ऐसी तमाम बातों को देखें तो लगता है कि यह भ्रष्ट, बेईमान, लापरवाह, और इन सबके बावजूद आत्ममुग्ध और गौरव में डूबा देश किसी भी बड़ी मुसीबत को झेलने लायक नहीं है। 

चीन के बारे में जितने किस्म की खबरें आती हैं, उनसे साजिश की ऐसी कहानी भी बनते दिखती है कि चीन तरह-तरह की संक्रामक बीमारियां फैलाने वाले वायरस के प्रयोग करते ही रहता है, और हो सकता है कि वह किसी घोषित या अघोषित युद्ध में दुश्मन देश पर इनसे हमला भी करे। भारत जैसे देश के साथ एक दिक्कत यह है कि अगर किसी अपराधकथा की तरह उस पर ऐसा बायोलॉजिकल हमला होता है, तो उससे इलाज की मशीनें भी उसे चीन से ही खरीदनी पड़ेंगी, अधिकतर दवाओं का कच्चामाल भी चीन से ही आता है। यह कुछ उस किस्म का मामला हो सकता है कि कम्प्यूटर वायरस से हिफाजत के सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियां ही पहले कम्प्यूटरों पर वायरस-हमला करवाएं, और फिर परेशान ग्राहकों के बीच आसानी से अपना सामान बेचें। भारत जैसे भ्रष्ट देश में न तो सरहद पार से आने वाली ऐसी किसी बीमारी से बचाव की तरकीबें हैं, और न ही इस देश के लोगों को साफ-सुथरा रहने की आदत है। इन सबसे ऊपर, देश की सरकारें भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं, और कोरोना जैसी किसी भी बीमारी का हमला भ्रष्ट सरकारी मशीनरी के लिए दशकों का सबसे बड़ा त्यौहार भी साबित हुआ था। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि सरकारें ऐसी किसी बीमारी के खतरे से बचना चाहेंगी, हो सकता है कि वे इंतजार कर रही हों कि ऐसी कोई दूसरी बीमारी आए, और वे अपने पसंदीदा सप्लायरों से सैकड़ों करोड़ के सामान और खरीद लें। 

जनता अपने स्तर पर अपनी जिंदगी को साफ-सुथरा रखने का काम ही कर सकती है, और वह यह भी कर सकती है कि वे अपनी सेहत को ठीक रखे। सरकारों पर भरोसा करके खुद लापरवाह रहना जनता को कहीं नहीं पहुंचाएगा। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news