संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अवैध खुदाई पर हाईकोर्ट हुआ सख्त, पर सरकार की सख्ती की भी जरूरत
10-Jan-2024 4:53 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अवैध खुदाई पर हाईकोर्ट  हुआ सख्त, पर सरकार  की सख्ती की भी जरूरत

छत्तीसगढ़ में मिट्टी और रेत की अवैध खुदाई को लेकर हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर शासन के खनिज सचिव से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। पूरे प्रदेश में नदियों से रेत की अवैध खुदाई का हाल यह है कि बड़ी-बड़ी मशीनों को लगाकर दानवाकार डम्परों को रेत से भरा जाता है, और उसकी न सिर्फ प्रदेश में अवैध बिक्री होती है, बल्कि पड़ोसी राज्यों में भी उसे ले जाकर बेचा जाता है। पिछली सरकार के कार्यकाल के पूरे पांच बरस रेत की अवैध खुदाई के रहे, और नदियों वाले जिलों में कलेक्टरों ने रेत खदान की लीज पाने वाले लोगों पर दबाव डालकर सत्ता के पसंदीदा लोगों को उसमें भागीदार बनवाया था। इसके अलावा हर रेत खदान की लीज पर दस्तखत करने के पहले बहुत से कलेक्टर लाखों रूपए नगद रखवाते थे। जाहिर है कि राजनीतिक भागीदार को आधी कमाई देना, कलेक्टरों को लाखों रूपए देना, और हर ट्रिप पर खनिज विभाग को बंधी हुई रिश्वत देना, इन सबका नतीजा था कि प्रदेश में रेत अंधाधुंध महंगी बिक रही थी, और निर्माण लागत बढ़ गई थी। सत्तारूढ़ नेताओं के मुंह रेत खदानों का यह खून लग गया था, और अब भाजपा सरकार आने के बाद देखना है कि सत्तारूढ़ पार्टी के स्थानीय विधायकों, और नेताओं को किस तरह इस भागीदारी-संस्कृति से अलग रखा जा सकेगा। जिला प्रशासन के स्तर पर भ्रष्टाचार का हाल यह था कि कई जगहों पर तो रेत खदान की नीलामी में उसे पाने वाले लीजधारक की खुदाई रोकने का आदेश दे दिया जाता था, और सत्ता के पसंदीदा लोग वहां से दुगुनी रफ्तार से अवैध खुदाई करते थे। पता नहीं इतनी भ्रष्ट हो चुकी नौबत को मुख्यमंत्री विष्णु देव साय किस तरह सुधार पाएंगे, क्योंकि वे सीएम होने के साथ-साथ खनिज मंत्री भी हैं।

प्रदेश में यह सिलसिला बहुत लंबे समय से चल रहा है कि रेत, मुरूम, मिट्टी की अवैध खुदाई हो, उसकी रायल्टी चोरी हो, और किसी की भी खाली पड़ी जमीन को मशीनों से खोदकर उसे खाई बना दिया जाए। यह बात बिल्कुल साफ है कि खनिज विभाग, पुलिस, और जिला प्रशासन के कई लोगों की सहमति के बिना यह जुर्म नहीं हो सकता। ये लोग रिश्वतखोरी के लिए भी अवैध खुदाई में शामिल हो जाते हैं, और सत्तारूढ़ राजनीतिक दबाव के चलते भी। एक तरफ तो प्रदेश में किसी भी तरह की खदान की पर्यावरण मंजूरी के लिए एक बहुत ही जटिल और भ्रष्ट व्यवस्था चल रही है जिसके तहत लोगों को छांट-छांटकर मंजूरी दे दी जाती है, और बहुत से लोगों की अर्जियां महीनों तक पड़े रहती हैं। लेकिन जो खदानें पूरी तरह से अवैध हैं, उनका तो किसी तरह का पर्यावरण का आंकलन भी नहीं हो पाता, और उससे नदियों को, दूसरी खदानों को होने वाले नुकसान का कोई अंदाज भी नहीं रहता।

अभी हाईकोर्ट ने जो जनहित याचिका सुनी जा रही है, उसमें बिलासपुर की अरपा नदी में अवैध रेत खुदाई से बने गड्ढों में डूबकर तीन बच्चियों की मौत का जिक्र है, और उसी वजह से मुख्य न्यायाधीश खबरों को देखकर यह सुनवाई कर रहे हैं। सिर्फ अवैध खनिज खुदाई के खिलाफ सुनवाई से परे भी यह बात तारीफ के लायक है कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जनहित के कई और मामलों में भी खबरों का नोटिस ले रहे हैं, और किसी अस्पताल को लेकर या लाउडस्पीकरों के शोर के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर रहे हैं। इस अदालती पहल की जरूरत इसलिए भी है कि सामाजिक कार्यकर्ता या जनसंगठन सरकार जैसी ताकत के मुकाबले लड़ नहीं सकते। फिर अदालतों में कभी-कभी ऐसे जज भी आ जाते हैं जो कि लकीर के फकीर रहते हैं, और जिन्हें जनहित के मुद्दों की गंभीरता छू नहीं जाती है। ऐसे में अगर अदालत खुद होकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है, तो इससे दूसरे विभागों के अफसर भी चौकन्ने होंगे, और मीडिया का हौसला भी बढ़ेगा कि ताकतवर तबकों को नाराज करते हुए जो खबरें छापी जाती हैं, वे एक तर्कसंगत और न्यायसंगत अंत तक पहुंचती हैं। जब बात सिर्फ सरकारों पर छोड़ दी जाती है, तो अखबारों में छपी आलोचना को अनदेखा करना भी एक आम बात रहती है, ऐसे में हाईकोर्ट की दखल देश में व्यापक जनहित के मुद्दों को उठाने के लिए समाज और अखबार, दोनों का उत्साह भी बने रहेगा। हमारा ख्याल है कि हाईकोर्ट को जनता से व्यापक जनहित के मुद्दों को बुलवाना चाहिए, अगर उनमें कोई कानून भी तोड़ा जा रहा है। और हाईकोर्ट जनहित के लिए उत्साही वकीलों की एक टीम बनाकर उनसे इन मामलों पर राय ले सकता है, और कुछ जनहित याचिकाओं को खुद भी दर्ज कर सकता है। ऐसी न्यायिक सक्रियता व्यापक जनहित के मुद्दों को लेकर जरूरी है।

छत्तीसगढ़ में आज जिन लोगों को नदियों की अंधाधुंध और अवैध खुदाई के खतरे समझ नहीं आ रहे हैं, उन्हें तब समझ आएगा जब नदियों में कहीं बाढ़ आने लगेगी, और कहीं नदियों के किनारे सूखा पडऩे लगेगा। कहने के लिए तो सुप्रीम कोर्ट से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक बहुत सी जगहों से पर्यावरण को लेकर कई आदेश हैं, जिनमें नदियों को लेकर तो बड़ी कड़ी व्यवस्था की गई है, लेकिन जिला स्तर पर प्रशासन की भागीदारी से माफिया अंदाज में अवैध खुदाई चलती है। अच्छा होगा कि ऐसी अवैध खुदाई के वीडियो सामने आते रहें, और हाईकोर्ट से इसके लिए जिम्मेदार कुछ अफसरों को जेल भी हो, तो शायद यह जुर्म कुछ घटेगा।

न सिर्फ छत्तीसगढ़ में, बल्कि देश में जगह-जगह खदान और खनिज माफिया का हाल यह है कि वह कई अफसरों को गाडिय़ों से कुचलकर मार चुका है, कई अफसरों को गोलियां मार चुका है। छत्तीसगढ़ में अभी तक ऐसे कत्ल नहीं हुए हैं, लेकिन खनिज माफिया एक बहुत ही संगठित ताकत की तरह स्थापित हो चुका है। सत्ता बदलने से हो सकता है कि इस माफिया के चेहरे बदल जाएं, लेकिन अवैध खुदाई पर काबू पाने के लिए राज्य सरकार में एक पक्का इरादा लगेगा, देखना है कि यह सरकार पटरी से उतरी हुई कानून-व्यवस्था को कितना सुधार सकती है।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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