संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ईरान के नए फौजी मोर्चों के पीछे की जटिलता
18-Jan-2024 4:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : ईरान के नए फौजी मोर्चों  के पीछे की जटिलता

भारत के पड़ोस में एकाएक देशों के बीच तनातनी बढ़ी हुई दिख रही है जिससे हिन्दुस्तान सीधे तो प्रभावित नहीं हो रहा है, लेकिन यह जटिलता अगर और बढ़ती है तो हिन्दुस्तान के लिए कुछ गंभीर सोच-विचार की नौबत आ खड़ी होगी। ईरान अभी अपने से लगे हुए तीन देशों पर चुनिंदा ठिकानों पर हमले किए, और उसे आतंकियों पर हमला करार दिया जो कि ईरान के भीतर आतंकी हमले कर रहे थे। पाकिस्तान में उसने बलूचिस्तान में एक ऐसे आतंकी समूह पर ड्रोन और मिसाइल से हमला किया जिस पर उसका शक है कि उसने ईरानी सैनिकों को मारा है, और अभी दिसंबर में ही एक ईरानी थाने पर आतंकी हमले में 11 पुलिस अधिकारी मारे गए थे। इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए ईरान ने बलूचिस्तान में बसे हुए जैश-अल-अदल नाम के इस सुन्नी आतंकी समूह पर हमला किया है। इसके जवाब में आज पाकिस्तान ने ईरान के एक हिस्से में बसे हुए ऐसे बलूच लोगों पर हमला किया है जिन पर पाकिस्तानी सीमा के भीतर आतंकी हमले करने का आरोप है। दोनों ही देशों में तनातनी इतनी बढ़ी है कि एक-दूसरे देश से राजदूत वापिस बुला लिए गए हैं। ईरान ने पाकिस्तान के अलावा सीरिया और इराक में भी चुनिंदा ठिकानों को फौजी निशाना बनाया है, और ईरान का यह कहना है कि इन दोनों जगहों पर बसे हुए आतंकी ईरान में आतंकी हमले कर रहे थे। इस पूरी तनातनी को इस बात से भी जोडक़र देखने की जरूरत है कि अभी ईरान के पास के फिलीस्तीन-इजराइल के बीच जंग सी छिड़ी हुई है, और ऐसे आरोप हैं कि फिलीस्तीन पर काबू वाले हमास नाम के हमलावर संगठन को ईरान से मदद मिलती है, और इसी मदद से वह इजराइल से लड़ रहा है, यह एक अलग बात है कि इन दोनों की फौजी ताकत का कोई मुकाबला नहीं है, और इजराइल की बहुत मजबूत फौज के मुकाबले कुछ हजार हमास लड़ाके ही मामूली और हाथ से बनाए हुए हथियारों से लड़ रहे हैं। इसी के साथ-साथ एक तीसरे मोर्चे को भी समझने की जरूरत है जिसमें यमन में बसे हुए हूथी नाम के हथियारबंद आतंकी संगठन ने उसके पास से गुजरने वाले मालवाहक समुद्री जहाजों पर छांट-छांटकर हमले करना जारी रखा है जो कि उसके हिसाब से इजराइल से जुड़े हुए कारोबारी जहाज हैं, और इन हमलों को रोकने के लिए अमरीकी और ब्रिटेन की फौज ने यमन में हूथी अड्डों पर अभी हवाई हमले किए हैं, और इनसे यह खतरा भी खड़ा हो रहा है कि इजराइल-फिलीस्तीन संघर्ष इस इलाके में कुछ दूसरे देशों को भी खींच सकता है। 

इस पूरे मामले को बारीकी से देखें, तो ईरान अमरीका का जानी-दुश्मन है, और उसे कुछ या अधिक हद तक रूस और चीन का समर्थन हासिल है क्योंकि इन दोनों बड़े देशों की अमरीका के साथ हमेशा ही कई किस्म की तनातनी चलती रहती है। ईरान और आसपास के कुछ दूसरे मुस्लिम और इस्लामिक देशों में एक धार्मिक तनातनी भी बनी रहती है क्योंकि ईरान एक शियाबहुल इस्लामी देश है, और अड़ोस-पड़ोस के दूसरे देश सुन्नी मुस्लिम देश हैं। फिर अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, पाकिस्तान जैसे कई देशों में अमरीका की सीधी फौजी दिलचस्पी है, और कुछ देशों में अमरीका के फौजी ठिकाने भी है। चीन और रूस भी इन देशों में तरह-तरह की दखल रखते हैं। इस तरह आज जितने मोर्चे इस इलाके में खुल गए हैं, उसमें दुनिया की तीन सबसे बड़ी फौजी ताकतें कुछ या अधिक हद तक उलझ गई हैं, और इसे कम जटिल नहीं समझना चाहिए। हम खासकर भारत जैसे देश को लेकर यह बात करना चाहते हैं क्योंकि उसके अमरीका और इजराइल से भी बड़े गहरे रिश्ते हैं, रूस से भी भारत ने अपने संबंध यूक्रेन की जंग के बावजूद सामान्य बनाकर रखे हैं, और पाकिस्तान के खिलाफ ईरान की फौजी कार्रवाई होते ही भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ईरान पहुंच भी गए हैं, और ईरानी मिसाइल हमले का समर्थन किया है। अब यह पूरा मामला अभी तक इन तमाम फौजी मोर्चों में शामिल न रहने वाले हिन्दुस्तान के लिए भी कुछ जटिल नौबत है, क्योंकि भारत पाकिस्तान को आतंकियों की पनाहगाह कहते आया है, और अगर ईरान यही बात कहते हुए पाकिस्तान के कुछ ठिकानों पर हमला कर रहा है, तो यह एक किस्म से भारत को माकूल बैठने वाली बात है। मध्य-पूर्व के पूरे इलाके में आज तनाव जिस तरह फैल रहा है, और ईरान के एक साथ तीन पड़ोसी देशों पर हमले मामूली संयोग नहीं है, बल्कि इसे यमन में हूथी ठिकानों पर हुए पश्चिमी फौजी हमले की रौशनी में भी देखा जाना चाहिए। अभी एक पहलू को हम नहीं छू रहे हैं, इजराइल के बगल में लेबनान के हिजबुल्ला नाम के एक संगठन पर भी इजराइल का निशाना है, और फिलीस्तीन के हमदर्द हिजबुल्ला के खिलाफ इजराइल एक फौजी मोर्चा खोल सकता है। 

ऐसी तमाम जटिलताओं की कोई आसान व्याख्या अभी संभव नहीं है। दूसरी तरफ यह बात जाहिर है कि ईरान और इजराइल लंबे समय से एक-दूसरे के खात्मे की हसरत पाले हुए हैं। ऐसा भी माना जा रहा है कि इजराइल पहला मौका मिलते ही ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करना चाहेगा, ताकि ईरान इजराइल के अस्तित्व पर एक खतरा बना हुआ न रहे। फिर इस नौबत को रूस और यूक्रेन में चल रही जंग से भी जोडक़र देखने की जरूरत है जो कि कुछ दिनों या कुछ हफ्तों में खत्म हो जाने वाली मानी जा रही थी, और उसे चलते हुए एक बरस से अधिक कब का हो चुका है। उस जंग में यूक्रेन के कंधों पर बंदूक धरकर तमाम नाटो देश जिस तरह रूस को खोखला करने में लगे हुए हैं, उस प्रॉक्सीवॉर को समझने की जरूरत है। कुछ उसी तरह का प्रॉक्सीवॉर हमास, हिजबुल्ला और हूथी जैसे संगठनों की फौजी मदद करके ईरान सरीखे कुछ देश चला रहे हैं, और यह इजराइल की फौजी और आर्थिक ताकत को उलझाने का एक काम है। मध्य-पूर्व का यह इलाका अमरीका-इजराइल गठबंधन को उलझाकर उसे कमजोर करने का एक काम भी हो सकता है, जिस तरह यूक्रेन की मदद करके नाटो देश रूस को खोखला कर रहे हैं। इन तमाम मोर्चों पर अमरीका ने अपने फौजियों को अलग रखा है ताकि कहीं से ताबूत घर न लौटें। लेकिन फौजी और दीगर मदद करके गाजा को भी अमरीका एक कब्रिस्तान में बदल चुका है, उसे दुनिया का सबसे बड़ा मलबा भी बना चुका है, और हिटलर के जुल्मों के बाद शायद गाजा जुल्म का सबसे बड़ा शिकार दिख रहा है। 

दुनिया के लोगों को जंग और हमलों की, आतंकी कारनामों की जटिलताओं को ठीक से समझना होगा, इन बातों को टुकड़़ा-टुकड़ा समझना मुश्किल होगा, और इनमें से हर जंग को दुनिया के कारोबारी मुकाबलों से भी जोडक़र देखना होगा।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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