संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सैकड़ों अतिसंपन्न लोगों का दाओस में अजब प्रदर्शन, हम पर अधिक टैक्स लगाओ
19-Jan-2024 4:03 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  सैकड़ों अतिसंपन्न लोगों का  दाओस में अजब प्रदर्शन,  हम पर अधिक टैक्स लगाओ

दुनिया के रईसों से गरीबों के भले की खबर भूले-भटके ही आती है। ऐसे में अभी दाओस में होने जा रहे वल्र्ड इकॉनॉमिक फोरम के सम्मेलन के सामने जब दुनिया के सैकड़ों खरबपतियों और अरबपतियों ने एक चिट्ठी लिखकर भेजी है कि दुनिया के अतिसंपन्न लोगों पर टैक्स बढ़ाया जाए, और उन्हें अधिक टैक्स देकर खुशी होगी। इसके लिए प्राउड टू पे मोर नाम की एक वेबसाइट भी बनाई गई है, और उसमें अतिसंपन्न लोगों के इस समूह ने अपना बड़ा सीधा-सरल संदेश पोस्ट किया है- निर्वाचित नेताओं को हम पर, अतिसंपन्न लोगों पर अधिक टैक्स लगाना चाहिए, हमें ऐसा करके फख्र हासिल होगा। इन कारोबारियों ने यह भी लिखा है कि अपने इस बड़े सीधे और सरल सुझाव को वे तीन बरस से दुहरा रहे हैं कि आप अतिसंपन्न टैक्स लोगों पर टैक्स कब बढ़ाएंगे? उन्होंने कहा कि अगर दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के निर्वाचित जनप्रतिनिधि दुनिया में आर्थिक असमानता में खुद चुकी गहरी और चौड़ी खाई को कम करने के लिए कदम नहीं उठाएंगे, तो इससे समाज तबाही की तरफ बढ़ेगा। उन्होंने इस खुली चिट्ठी में लिखा है कि न्यायसंगत टैक्स की हमारी कोशिश कोई बहुत क्रांतिकारी सोच नहीं है, बल्कि यह आज की आर्थिक स्थितियों के एक आंकलन पर आधारित समानता की तरफ एक कदम भर है। इस चिट्ठी में कहा गया है कि आर्थिक असमानता ऐसे भयानक स्तर पर पहुंच गई है कि इससे अर्थव्यवस्था, समाज, और पर्यावरण का संतुलन सभी कुछ खतरे में पड़ गया है, और ये खतरा हर दिन बढ़ते चल रहा है। इस चिट्ठी में लिखा गया है कि हम एक बड़ी सरल और आसान अपील कर रहे हैं, समाज के हमारे जैसे सबसे रईस लोगों पर टैक्स बढ़ाया जाए। इससे हमारे जीवनस्तर पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, न ही इससे हमारे बच्चों का हक छिनेगा, न इससे हमारे देशों की आर्थिक प्रगति को नुकसान होगा, बल्कि इससे कुछ लोगों में सीमित अनुत्पादक निजी संपत्ति सार्वजनिक लोकतांत्रिक भविष्य में इस्तेमाल हो सकेगी। इस चिट्ठी में यह भी लिखा गया है कि अतिसंपन्न लोग दान देकर, या समाज सेवा करके ऐसा समाधान नहीं पा सकते, अलग-अलग लोगों की अलग-अलग कोशिशें आज की दानवाकार असमानता को कम नहीं कर सकती। हमारी सरकारों और हमारे नेताओं को पहल करने की जरूरत है, और हम एक बार फिर आपके पास यह अर्जेंट अनुरोध लेकर आए हैं कि आप कार्रवाई करें, अपने राष्ट्रीय स्तर पर भी, और एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी। चिट्ठी में आगे लिखा गया है कि इसमें होने वाली देर का हर पल मौजूदा खतरनाक आर्थिक यथास्थिति को और मजबूत करते चल रहा है, और लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डाल रहा है, और इस नौबत को हमारे बच्चों और उनके बच्चों तक जारी रख रहा है। इन सैकड़ों अरब-खरबपतियों ने लिखा है- कि हम न सिर्फ अपने पर अधिक टैक्स चाहते हैं, बल्कि हम यह मानते हैं कि हम पर अधिक टैक्स लगाया ही जाना चाहिए। हम ऐसे देशों में रहने पर गर्व महसूस करेंगे जहां हमारे निर्वाचित नेता ऐसा करके असमानता को पाटेंगे, और पूरे समाज का बेहतर भविष्य बनाएंगे। 

सैकड़़ों अतिसंपन्न अरब-खरबपतियों की इस चिट्ठी में लिखा गया है- हमें भयानक असमानता को दूर करने के लिए अधिक टैक्स देकर फख्र हासिल होगा। हम अधिक टैक्स देकर दुनिया के कामकाजी लोगों की जिंदगी के खर्च को घटाना चाहेंगे। हम अगली तमाम पीढ़ी को बेहतर शिक्षा देने के लिए भी अधिक टैक्स देना चाहते हैं। हम इसलिए भी अधिक भुगतान करना चाहते हैं कि दुनिया में इलाज अधिक आसानी से हासिल हो, दुनिया का बेहतर ढांचा बन सके, पर्यावरण को बचाए रखकर विकास किया जा सके। 

जैसा कि इस चिट्ठी से पता लगता है कि इस ढाई सौ से अधिक लोगों के दस्तखत हैं, और इसमें दुनिया की सबसे चर्चित कंपनियों, और सबसे चर्चित अतिसंपन्न लोगों के नाम हैं। इनमें से कुछ लोगों ने यह कहा है कि उन्हें विरासत में दौलत का यह भंडार मिला है, और उसकी शक्ल में उन्हें असीमित ताकत मिली है, जिसके लिए उन्होंने खुद कोई मेहनत नहीं की है। ऐसी एक ऑस्ट्रेलियन महिला ने कहा कि उन्हें अपनी दादी की वसीयत से अरबों-खरबों की दौलत मिल गई, और सरकार उस पर कोई टैक्स लगाना नहीं चाहती है। मार्लिन एंजलहॉर्न नाम की यह महिला स्विटजरलैंड के दाओस में वल्र्ड इकॉनॉमिक फोरम के आयोजन के दौरान अतिसंपन्न लोगों के एक समूह में शामिल होकर अधिक टैक्स की मांग करते हुए विरोध-प्रदर्शन करने वाली हैं। ऑक्सफैम नाम की संस्था की एक रिपोर्ट में बताया गया है-दुनिया में दो हजार से अधिक खरबपति हैं, जो कि 2020 के मुकाबले अभी और संपन्न हो गए हैं। दूसरी तरफ पूरी दुनिया में पांच अरब से अधिक लोग पहले से गरीब हो गए हैं। 

भारत जैसी सोच को देखें तो यह कल्पना भी नहीं हो सकती कि ऐसे ढाई सौ अतिसंपन्न लोगों में हिन्दुस्तान के भी कोई होंगे। यहां के कारोबारी, उद्योगपति और व्यापारी, टैक्स सलाहकारों की मदद लेकर सरकार से एक-एक बूंद रियायत निचोड़ लेना चाहते हैं, और उसके बाद फिर समाज सेवा के नाम पर पहले से तैयार रखे गए कैमरों के सामने वे छोटा-मोटा दान करते हैं। दो-चार ऐसे बड़े कारोबारी भी हैं जिन्होंने अपनी दौलत के आधे हिस्से को समाज के लिए देना तय किया है, लेकिन वे भी अपनी पसंद के दायरों में समाज सेवा करते हैं, और सरकार के रास्ते आम और गरीब जनता का एक व्यापक फायदा उससे नहीं हो पाता है। यह एक अलग बात है कि सरकार के माध्यम से समाज सेवा करना लोगों को इसलिए जायज नहीं लगता है कि सरकारी ढांचे में दान और समाज सेवा का भी एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार में निकल जाता है, भारत जैसे देश में यह भी एक वजह है कि सचमुच के ही समाजसेवी लोग भी अपने ट्रस्ट बनाकर समाज सेवा करते हैं, बजाय सरकार को दान देने के। हिन्दुस्तान में लोग सरकार को अधिक टैक्स भी देना नहीं चाहते कि उसका एक बड़ा हिस्सा भी भ्रष्टाचार में ही खत्म हो जाएगा। लेकिन हिन्दुस्तानी अतिसंपन्न तबके को देखें, तो उसमें अपने पर टैक्स बढ़ाने की मांग करने वाले नहीं दिखेंगे। लोग कोई भी त्याग उसी व्यवस्था के तहत करना चाहते हैं, जो भ्रष्टाचार और गबन में डूबी हुई न हो। इसलिए भारत के संदर्भ में इस बारे में अधिक बात मुमकिन नहीं दिखती है, लेकिन दुनिया के जिन देशों में सरकारें ईमानदार हैं, वहां पर अगर अतिसंपन्न लोगों पर टैक्स बढ़ाकर समाज में आर्थिक समानता लाई जा सकती है, तो वह एक बड़ी बात होगी। और संपन्न लोगों की इस मिसाल को हिन्दुस्तान के उस दर्जे के लोगों को देखना चाहिए, और उससे कुछ सीखना चाहिए। सरकार पर भरोसा न हो तो खुद के ट्रस्ट बनाकर, टैक्स-छूट पाने से परे भी गरीबों का भला करना चाहिए। आर्थिक असमानता को दूर करना पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बेहतर नौबत रहती है, और कारोबारी दुनिया को भी उसे समझना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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