संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मोदी की जात के बजाय राहुल भूपेश सरकार पर चलते मुकदमों पर बोलें
09-Feb-2024 3:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  मोदी की जात के बजाय राहुल भूपेश सरकार पर चलते मुकदमों पर बोलें

भारत जोड़ो न्याय यात्रा के तहत छत्तीसगढ़ पहुंचे राहुल गांधी अपने साथ एक विवाद लेकर आए हैं, उन्होंने छत्तीसगढ़ में एक सभा में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्म ओबीसी से तालुक रखने वाले परिवार में नहीं हुआ, और वे खुद को ओबीसी बताकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। राहुल ने दावा किया कि मोदी की जाति घांची को गुजरात की भाजपा सरकार ने सन् 2000 में ओबीसी में शामिल किया था। राहुल का कहना है कि इस तरह गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी ने अपनी जाति बदलकर ओबीसी कर ली। इसके जवाब में भाजपा की ओर से वह अधिसूचना पेश की गई जिसमें 27 अक्टूबर 1999 को, यानी मोदी के मुख्यमंत्री बनने के दो बरस पहले मोदी की जाति घांची को ओबीसी के रूप में मान्यता दी गई थी। भाजपा के केन्द्रीय मंत्रियों ने कहा कि राहुल गांधी का यह दावा झूठा है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी ने खुद की जाति को ओबीसी करवा दिया। उल्लेखनीय है कि गुजरात में घांची जाति को ओबीसी में शामिल करने की अधिसूचना एक सार्वजनिक दस्तावेज है, जिस पर 27 अक्टूबर 1999 की तारीख है, और इसी तरह मोदी का मुख्यमंत्री बनना भी एक सार्वजनिक जानकारी की बात है। तारीखें बताती हैं कि मोदी इस अधिसूचना के एक बरस बाद, 7 अक्टूबर 2001 को मुख्यमंत्री बने थे। 

राहुल गांधी देश की एक लंबी यात्रा पर हैं, और भारत की राजनीति में उनसे यह उम्मीद की जा रही है कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के खिलाफ विपक्ष के संघर्ष की अगुवाई करते रहें। वे कांग्रेस या इंडिया-गठबंधन में किसी औपचारिक पद पर नहीं हैं, लेकिन सार्वजनिक बयानों से राजनीति करने के लिए ऐसे किसी पद की जरूरत होती भी नहीं है। फिर भी जब बात प्रधानमंत्री की हो जो कि बहुत ताकतवर हैं, और भाजपा की हो जो कि देश में आज सबसे अधिक जगहों पर काबिज, संसद में सबसे बड़ी मौजूदगी वाली पार्टी है, तो इन पर हमला लापरवाह नहीं होना चाहिए। राहुल गांधी ने कुछ अरसा पहले कर्नाटक के एक चुनाव में मोदियों को लेकर दिए गए एक लापरवाह बयान पर अदालत को झेला है, और अब तक उनका मामला खत्म नहीं हुआ है, इस बीच कुछ अरसा के लिए उनकी संसद की सदस्यता जरूर खत्म कर दी गई थी, जो कि सुप्रीम कोर्ट की दखल से अभी वापिस कायम है। कुछ और जगहों पर भी उनके कुछ बयानों को लेकर मुकदमे चल रहे हैं। सार्वजनिक जीवन में कई किस्म के विवादास्पद बयान भी लोग देते रहते हैं, लेकिन जब हम राहुल पर छाई हुई कानूनी दिक्कतों को देखते हैं, तो यह समझ आता है कि वे हर बार ऐसे गैरजरूरी बयान, या लापरवाह बयान से मुसीबत में फंसे हैं, जिसे दिए बिना उनकी राजनीति चल सकती थी। कम से कम कांग्रेस जितनी बड़ी पार्टी के इस सबसे बड़े नेता को इतनी सहूलियत तो हासिल थी कि मोदी की जाति कबसे ओबीसी करार दी गई है, उस तारीख को तो जांच लेते। हम अभी इंटरनेट पर इन दो तारीखों को देख रहे हैं, तो पांच मिनट में दोनों तारीखें दिख जा रही हैं। जब किसी की जन्म, जाति, और परिवार की बात हो, तो इस बात की प्रासंगिकता बड़ी सीमित है कि कब उस जाति का क्या कानूनी दर्जा था। पिछले करीब 25 बरस से नरेन्द्र मोदी की जाति को ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है, और 25 बरस पहले के उस सरकारी फैसले के और पहले से ऐसी सामाजिक स्थितियां रही होंगी कि घांची जाति ओबीसी में गिनी जानी चाहिए, तो आज उसे लेकर यह कहना कि प्रधानमंत्री का जन्म ओबीसी परिवार में नहीं हुआ, यह एक तकनीकी इतिहास जरूर हो सकता है, लेकिन यह बड़प्पन की बात नहीं हो सकती। यह बात उस वक्त तो प्रासंगिक हो सकती है जब मोदी की जाति को लेकर अदालत में कोई विवाद चल रहा हो, और वहां पर किसी एक तरफ से जाति और उसके इतिहास की तारीख सामने रखी जाए, लेकिन आज के एक राजनीतिक बयान में इस बात को चुनौती देने का मतलब नहीं दिखता कि मोदी का जन्म जब हुआ था तब उनकी जाति ओबीसी नहीं थी। जातियों की सामाजिक स्थितियां लंबे समय तक चलती हैं, और सरकारी और कानूनी कार्रवाई चलते-चलते उन्हें कोई दर्जा मिलने में बहुत वक्त भी लग जाता है। इसलिए करीब 25 बरस पहले ओबीसी घोषित हो चुकी जाति के मोदी आज अपने को ओबीसी कहते हैं, तो यह राजनीतिक विवाद कुरेदने का कोई अच्छा सामान नहीं है, और खासकर तब जबकि इसे लेकर कोई विवाद भी नहीं है, और राहुल गांधी एक ताजा विवाद खड़ा कर रहे हैं। 

सच तो यह है कि पिछले दो-तीन बरसों में राहुल गांधी की पार्टी की छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ जितने किस्म के जुर्म दर्ज हुए हैं, जितने नेता-अफसर-माफिया अंदाज के सत्ता के पसंदीदा कारोबारी जेल गए हैं, उन सबको लेकर राहुल गांधी को जनता को एक जवाब देना चाहिए था। जिस तरह हजारों करोड़ रूपए की काली कमाई, और रंगदारी के मामले सामने आए हैं, बड़े-बड़े अफसर जेल में हैं, पार्टी के बड़े-बड़े पदाधिकारी फरार हैं, तो ऐसे में राहुल गांधी प्रदेश की जनता के प्रति एक साफगोई की जिम्मेदारी रखते हैं। पूरा प्रदेश जिस तरह के अपराधों की कहानियों से लदा हुआ है, राहुल की अपनी पार्टी जिस तरह इस राज्य को कानूनी खतरों में उलझा चुकी है, तत्कालीन कांग्रेस सरकार गले-गले तक जुर्म में डूबी दिख रही है, उसमें राहुल की जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ की जनता को जवाब देने की है, न कि गलत तारीखों के आधार पर मोदी से सवाल करने की है। यह राज्य कांग्रेस सरकार के वक्त के भ्रष्टाचार और जुर्म की खबरों से उबल रहा है, और चुनावी नतीजे बताते हैं कि बड़े नफे के घोषणापत्र को देखते हुए भी प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को किस तरह खारिज किया था, ऐसे में राहुल को अपनी पार्टी से भी जवाब लेना चाहिए। वह तो कुछ होते दिख नहीं रहा है, दूसरी तरफ वे प्रधानमंत्री पर बेबुनियाद तथ्यों को लेकर एक आरोप लगा रहे हैं, जिससे खुद उनकी छवि गंभीर बनने से रूकती है। कांग्रेस पार्टी के पता नहीं कौन से ऐसे सलाहकार हैं जो राहुल गांधी को इतना अधिक बोलने की सलाह दे रहे हैं, और राहुल हैं कि वे हर दिन बहुत सारा बोलने को अपनी जिम्मेदारी मान रहे हैं। इसी अधिक बोलने में उनसे कई तरह की चूक हो रही हैं, और उनकी कुछ गंभीर बातें किनारे हो जाती हैं, और उनकी चूक पहले पन्ने की खबरों में छाई रहती हैं। 

छत्तीसगढ़ में राहुल का आना ऐसे वक्त हुआ है जब उनकी पार्टी और उसकी पिछली सरकार यहां भारत के इतिहास के सबसे अप्रिय आर्थिक अपराधों के विवादों से घिरी हुई है। ओबीसी कांग्रेस का पसंदीदा मुद्दा हो सकता है, लेकिन जनता का खजाना किसी भी राज्य का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहता है। राहुल गांधी की ईमानदारी इसी में रहेगी कि वे अपनी पार्टी की सरकार के कामकाज के बारे में बोलें, और अगर पिछली भूपेश सरकार पर लगे सारे आरोप झूठे हैं, तो उनका तथ्यों के साथ खंडन करें। प्रधानमंत्री पर गलत तथ्यों से किया गया उनका हमला कांग्रेस या विपक्ष को किसी किनारे पर नहीं पहुंचा पाएगा।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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