संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लोग एक हो जाएं, तो क्या कर सकते हैं, एक मिसाल
12-Feb-2024 4:30 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : लोग एक हो जाएं, तो क्या कर सकते हैं, एक मिसाल

चारों तरफ की नकारात्मक खबरों के बीच जब कभी कोई अच्छी खबर दिखती है, तो वह मन मोह लेती है। राजस्थान में बीकानेर से सीकर के बीच रशीदपुर खोरी नाम का एक रेलवे स्टेशन है, और वहां से कमाई न होने की वजह से 2005 में रेलवे ने वहां ट्रेन रोकना बंद कर दिया था क्योंकि उसे घाटा हो रहा है। यह स्टेशन आज से सौ बरस पहले, अंग्रेजों के वक्त 1923 में जयपुर-चुरू रेललाईन पर बनाया गया था, और आसपास के कई गांवों के लिए यही एक रेल-संपर्क था। गांव के लोगों ने काफी कोशिश की, और रेल अफसरों ने बातचीत और समझौते में यह शर्त रखी कि साल में कुछ लाख रूपए की टिकटें खरीदे जाने पर ही ट्रेन रूकना शुरू होगा, और रेलवे ने यह भी कहा कि वह वहां कोई कर्मचारी तैनात नहीं कर पाएगा। गांव के लोगों ने आपस में बात की, और यह तय किया कि चाहे जो करना पड़े, ट्रेन का स्टेशन बंद नहीं होने दिया जाएगा। लोगों ने मिलकर स्टेशन का पूरा काम संभाल लिया, आम लोगों के बीच से ही कोई स्टेशन मास्टर की तरह काम करने लगा, तो कोई टिकट बेचने का। लोग साफ-सफाई भी खुद करने लगे, और अलग-अलग कई खबरें बताती हैं कि रेलवे के दिए गए टिकट बिक्री के टारगेट को पूरा करने के लिए वहां से चढऩे वाले हर मुसाफिर पांच-दस टिकटें खरीदकर चढ़ते थे, ताकि ट्रेन रूकना बंद न हो जाए। धीरे-धीरे इस गांव का स्टेशन इतना कामयाब हो गया कि लोगों को घाटा खत्म हो गया, और बड़ी कामयाबी से रशीदपुर खोरी एक स्टेशन की तरह चल रहा है, और शायद यह हिन्दुस्तान का अकेला ऐसा स्टेशन है जो बिना किसी रेलवे कर्मचारी के सिर्फ गांव के लोग चला रहे हैं। कामयाबी की यह कहानी इतनी आगे बढ़ी है कि इस गांव के लोग अपने स्टेशन को लोकप्रिय बनाने के लिए आसपास के गांवों में जाकर पर्चे भी बांटते हैं, और उन्हें यहां से सफर करने पर कुछ रियायत भी देने की बात करते हैं। 

समाज की सफलता की यह एक ऐसी अजीब कहानी है जो कि हमने इसके पहले कभी सुनी नहीं थी। भला एशिया का यह सबसे बड़ा उद्योग जो कि रोजाना कई करोड़ मुसाफिरों को ढोता है, इस तरह एक गांव के लोगों के भरोसे एक स्टेशन चला रहा है!! इस स्टेशन पर देश के अलग-अलग बहुत से अखबारों ने पिछले बरसों में लगातार रिपोर्टिंग की है, और उन्हीं सबकी जानकारियों को परखकर हम इस पर लिख रहे हैं। दुनिया में कई जगहों पर सामुदायिक प्रोजेक्ट की बात होती है, लोग एक साथ मिलकर कहीं खेती का प्रयोग करते हैं, तो कहीं किसी आध्यात्मिक गुरू के मातहत एक पूरे संप्रदाय की आबादी एक जगह एक परिवार की तरह रहती है, और सारे सदस्य समुदाय के सभी बच्चों के प्रति जवाबदेह रहते हैं। आर्थिक प्रयोग भी कई गांवों में ऐसे हुए हैं जहां पर लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर, परस्पर भरोसे और सद्भाव से कारोबार भी कर लेते हैं। देश का सबसे बड़ा दूध उद्योग अमूल नाम का एक सहकारी आंदोलन है, और उसमें कोई सरकारी दखल नहीं है, उसकी कमाई वहीं भीतर रह जाती है। इसी तरह देश भर में फैले हुए इंडियन कॉफी हाऊस नाम का संगठन है जो कि उसी के कर्मचारियों का बनाया हुआ है, और मजदूर या कामगार संगठन ने देश का एक सबसे भरोसेमंद और कामयाब कारोबार भी खड़ा कर लिया है। आज विधानसभाओं से लेकर संसद तक, और मंत्रालयों से लेकर दूसरी सार्वजनिक जगहों तक लोग बेफिक्र होकर बिना किसी टेंडर के इंडियन कॉफी हाऊस को जगह दे देते हैं, और बिना किसी मुकाबले के यह संगठन साधारण दाम पर अच्छा और भरोसेमंद खाना परोसता है। इसके हर कर्मचारी इस कारोबार के शेयर होल्डर हैं, और इसके आगे बढऩे की रफ्तार देश के सबसे काबिल कारोबारियों को भी हीनभावना में डाल सकती है।

हम फिर से राजस्थान के इस रेलवे स्टेशन पर लौटें, तो यह गांव के आम लोगों की सामाजिक एकता का सुबूत तो है ही, किस तरह से इन लोगों ने एक कारोबारी मॉडल भी तैयार किया वह देखना हैरान करता है, और हमें पूरा भरोसा है कि देश के किसी न किसी प्रबंधन-संस्थान ने इस मॉडल पर रिसर्च किया होगा। एक तरफ जहां केन्द्र सरकार के संगठन अपने ही ढांचे के खर्चतले दबकर दम तोड़ रहे हैं, वहां गांव के लोगों ने बिना लागत के ऐसा हौसला दिखाया, और उन्होंने तब यह कर दिखाया जब न किसी स्थानीय नेता ने उनका साथ दिया, और न ही मीडिया ने उनकी बात सुनी। रेलवे के साथ लिखित समझौते के तहत लाखों रूपए साल के भुगतान की गारंटी देकर उन्होंने एक किस्म से अपने और आसपास के गांवों के लिए एक सहूलियत खरीदी, और उसे कामयाब कर दिखाया! एक खबर यह भी बता रही है कि पन्द्रह बरस कामयाबी से इस रेलवे स्टेशन को चलाने के बाद अब जब यह कामयाब हो गया है, तो रेलवे ने इसे अपने हाथ ले लिया है, और इसे छोटी लाईन से बड़ी लाईन भी कर दिया है। जो भी हो, जिसे असफल मानकर एशिया के सबसे बड़े उद्योग, भारतीय रेल ने छोड़ दिया था, उसे एक गांव ने पटरी पर ला दिया जो कि एक ऐतिहासिक मिसाल है। 

कुछ छोटी-मोटी खबरों के अलावा इस पर अधिक पढऩे नहीं मिला है। जरूरत यह है कि देश के स्कूल-कॉलेज में छात्र-छात्राओं को पाठ्यपुस्तकों के तहत या उससे बाहर ऐसे मॉडल पढ़ाने चाहिए, और हो सके तो इन पर फिल्में बनाकर दिखाना भी चाहिए। इससे लोगों का अपने-आपमें भरोसा लौटेगा, और समाज अपनी ताकत का अहसास भी करेगा। समाज की सामूहिक शक्ति अगर एक गांव में ऐसी क्रांति ला सकती है, तो इससे बाकी लोगों को भी अपने-अपने इलाके, अपने समुदाय और समूह, अपने धर्म और अपनी जाति के बारे में सोचना चाहिए कि वे क्या नहीं कर सकते? हम यहां पर अपनी एक पसंदीदा मिसाल को एक बार फिर लिखना चाहेंगे, दुनिया में कहीं भी किसी तरह की आपदा आती है, तो उनमें से बहुत सी जगहों पर सिक्खों के संगठन काम करते दिखते हैं। वे न सिर्फ पैसा खर्च करते हैं, बल्कि वे कहीं बाढ़ में डूबकर, तो कहीं जख्मियों को उठाकर, खाना पहुंचाकर जिंदगियां बचाते हैं। अब एक धर्म में ऐसी कौन सी खूबी है कि उसके लोग दुनिया में किसी का भी धर्म पूछे बिना, और आमतौर पर गैरसिक्खों की ही मदद करते दिखते हैं, जात-धरम किसी को नहीं देखते। यह भी ऐसे वक्त जबकि हिन्दुस्तान के ही कुछ धर्म इस बात में लगे रहते हैं कि किस तरह उनकी ताकत का एक कतरा भी किसी दूसरे धर्म के काम न आ जाए, वे खुलेआम यह लिखते दिखते हैं कि सिर्फ अपने धर्म के लोगों से ही सामान खरीदें, उन्हीं को नौकरी पर रखें, उन्हीं को मदद करें। ऐसी धार्मिक दकियानूसी हवा के बीच सिक्खों के संगठन बिना किसी का धर्म पूछे जुट जाते हैं। 

हम राजस्थान के इस गांव की बात करते-करते धर्म की ताकत और उसके इस्तेमाल पर इसलिए आ रहे हैं कि न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया के तकरीबन तमाम देशों में धर्म एक हकीकत है, और वह एक बहुत बड़ी ताकत भी है। इसलिए अगर रशीदपुर खोरी गांव वालों की तरह किसी धर्म के लोगों  की एकता अगर समाज के काम आ सके, तो वह तस्वीर को कितना बदल सकती है! समाज की ताकत को समझकर, और उसका इस्तेमाल करके एक बेहतर कल की तरफ बढ़ा जा सकता है। कोई इलाका, किसी आध्यात्मिक संगठन या संप्रदाय के लोग, या किसी धर्म और जाति के लोग, किसी मजदूर या कर्मचारी संगठन के सदस्य ऐसी सामूहिक ताकत के बारे में सोच सकते हंै, वे एक स्टेशन चला सकते हैं, वे अमूल बना सकते हैं, और वे इंडियन कॉफी हाऊस जैसा बेताज बादशाह खड़ा कर सकते हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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