संपादकीय
देश के किसान संगठन एक बार फिर केन्द्र सरकार से टकराव के लिए सडक़ों पर उतरे हुए हैं, और फिलहाल उनका सबसे बड़ा जत्था पंजाब से दिल्ली की तरफ बढ़ रहा है जहां बीच में हरियाणा है, और हरियाणा की सरहद पर केन्द्र और राज्य दोनों जगह सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार ने उन्हें रोकने के हर मुमकिन, असाधारण, और अभूतपूर्व इंतजाम किए हैं। लोगों को याद होगा कि दो साल पहले जब लंबा चला किसान आंदोलन खत्म हुआ था, उस वक्त मोदी सरकार को एक शिकस्त झेलनी पड़ी थी, और संसद में पास करवाए गए तीन किसान कानूनों को वापिस लेना पड़ा था। इसके अलावा भी किसान संगठनों के साथ कई किस्म के वायदे हुए थे, जिनके बारे में आज इन संगठनों का कहना है कि सरकार ने वे पूरे नहीं किए हैं। इनमें से एक बड़ा मुद्दा सभी किस्म की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का है, और सरकार का कहना है कि अगर एमएसपी की गारंटी दी जाएगी, तो केन्द्र सरकार के 17 लाख करोड़ इसी में चले जाएंगे, और देश में दूसरे जरूरी कामों के लिए रकम नहीं बचेगी। किसानों का कहना है कि सरकार ने यह वायदा किया था, जिसे पूरा करना चाहिए। केन्द्र के कुछ मंत्री किसान संगठनों से बातचीत के दो दौर कर चुके हैं, और उनके मुताबिक इतवार की शाम फिर बातचीत होगी। दूसरी तरफ भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से वायदा किया है कि कांग्रेस सत्ता पर आती है, तो वह कानून बनाकर एमएसपी लागू करेगी। यह समझने की जरूरत है कि हिन्दुस्तान की 60 फीसदी आबादी खेती से जुड़ी हुई है, और किसानों के मुद्दे बहुत मायने रखते हैं, ऐसे में लोकसभा चुनाव के बस दो-तीन महीने पहले का यह आंदोलन देश भर में एक अलग किस्म की चुनावी चुनौती भी रहेगा, और कमजोर हो चुके इंडिया-गठबंधन को हो सकता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी के मुद्दे पर एक नई जिंदगी मिल जाए। लेकिन किसान संगठन राजनीति से परे हैं, और इसी बात में पिछली बार उनके आंदोलन को इतना लंबा चलने, और आधी जीत हासिल करने में मदद की थी।
अब यहां पर परेशान करने वाली कुछ बातें हैं, जो कि हैरान कर रही हैं। किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए हरियाणा के पहले ही उन्हें रोका जा रहा है, और चारों तरफ की पुख्ता साबित हो चुकी खबरें बताती हैं कि पैरामिलिट्री लगाकर, फौजी अंदाज के अड़ंगे सडक़ों पर लगाकर किसानों को रोका गया है। इसके साथ-साथ किसानों पर पानी की बौछार से उन्हें रोकने तक की बात तो समझ आती है, लेकिन ड्रोन से किसानों पर आंसू गैस के गोले गिराना एक अकल्पनीय काम है, और हिन्दुस्तान के इतिहास में आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था। ड्रोन के बारे में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंच और माईक से कहा था कि उन्हें जहां के काम का हाल देखना होता है, और वे वहां जा नहीं पाते, तो वे ड्रोन भेजकर वहां का हाल देख लेते हैं, या वहां की रिपोर्ट बुलवा लेते हैं। ऐसे प्रधानमंत्री की सरकारें निहत्थे किसानों पर ड्रोन से आंसू गैस के गोले गिरा रही है! और अंतरराष्ट्रीय मीडिया कल से इन खबरों से भरा हुआ है कि ऐसे ड्रोन से मुकाबला करने के लिए किसान पतंगें उड़ा रहे हैं ताकि ऊपर आए ड्रोन उसमें फंस सकें! मंगलवार तक की ही खबर बताती है कि किसानों पर 45 सौ से ज्यादा गोले गिराए जा चुके थे। खबरें और तस्वीरें बताती हैं कि किसानों पर प्लास्टिक की गोलियां दागी जा रही हैं, और ऐसे हमलों से बचाव के लिए, किसान तरह-तरह के देसी जुगाड़ कर रहे हैं। सडक़ों पर कांक्रीट के ब्लॉक रख दिए गए हैं, सडक़ों पर कीलें ठोंक दी गई हैं ताकि किसानों के ट्रैक्टर ट्रॉली के चक्के पंचर हो जाएं। यह नौबत देखकर एक पुरानी फिल्म का एक गाना याद आता है- ये लड़ाई है दिए की, और तूफान की..।
सामने खड़े आम चुनाव से परे भी मोदी सरकार को यह सोचना चाहिए कि पिछले आंदोलन के दौरान किसानों को नक्सली, पाकिस्तानी और खालिस्तानी कहने से उनकी साख तो खराब नहीं हुई थी, लेकिन ऐसे भाजपा नेताओं की वजह से पार्टी की साख जरूर खराब हुई थी, और किसानों को हमदर्दी मिली थी। इस वजह से ही देश भर में किसानों के समर्थन में जो माहौल बना था उसके दबाव में मोदी सरकार को अपने तीनों किसान कानून वापिस लेने पड़े थे, और साथ में कई किस्म के वायदे करने पड़े थे जो कि पूरे न होने पर अब आंदोलन फिर शुरू हो रहा है। ऐसा लगता है कि उत्तर भारत के प्रदेशों में ठंड का मौसम गुजरने के बाद शुरू यह आंदोलन फसल और मौसम दोनों को देखते हुए तय किया गया है, और लोकसभा के चुनाव का वक्त तो है ही। अभी देश के कुछ किसान संगठन आंदोलन में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह आंदोलन आगे बढ़ेगा, जैसे-जैसे पैरामिलिट्री इसे रोकने में प्लास्टिक की गोलियां दागना जारी रखेंगी, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों और बाकी किसान संगठनों पर भी आंदोलन के समर्थन का दबाव बनेगा। हरियाणा की भाजपा सरकार के इलाके में किसानों को आगे बढऩे से रोकने के लिए जितने किस्म के तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं, उनसे देश-विदेश सभी जगह यह हैरानी हो रही है कि सरकार अपने ही देश के किसानों के साथ कितनी सख्ती का इस्तेमाल कर रही है, और दो बरस पहले के वायदों को अब तक पूरा क्यों नहीं किया गया था?
पंजाब से शुरू हुए, और फिर बाकी तमाम राज्यों के किसानों के समर्थन से पिछली बार चले आंदोलन ने देश के किसान आंदोलन इतिहास की तस्वीर बदल दी थी। अभी यह सिलसिला अस्थिर है, और बातचीत का दौर भी जारी है, और ड्रोन से आंसू गैस के गोले गिराने का भी। इस बीच कुछ खबरें यह बताती हैं कि देश में एमएसपी बढ़ाने की सिफारिश वाली डॉ.एम.एस.स्वामिनाथन की रिपोर्ट भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की वेबसाइट से हटा दी गई है। अभी-अभी स्वामिनाथन को भारतरत्न की घोषणा हुई है, अभी-अभी उत्तर भारत के एक सबसे बड़े किसान राजनेता, भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भी भारतरत्न देने की घोषणा हुई है, लेकिन ऐसा लगता है कि किसानों और किसानी से जुड़े हुए लोगों को दिए जा रहे ऐसे भारतरत्न के प्रतीकों से आज की किसानी जरूरतें पूरी नहीं हो रही हैं, और सरकार को रत्न बांटने से परे भी कुछ करना पड़ेगा।
अभी हम किसानों की मांगों का कोई विश्लेषण यहां पर इसलिए नहीं कर रहे हैं कि हम एक व्यापक और समग्र तस्वीर सामने रखना चाहते हैं। लोगों को एक नजर में यह दिखना चाहिए कि किसान आंदोलन की आज क्या स्थिति है। आने वाले दिनों में हम यहां पर मांगों को लेकर, और उन पर सरकार के रूख को लेकर फिर लिखेंगे। इतवार की शाम इन दोनों के बीच होने वाली बैठक के बाद कुछ बातें साफ होंगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)