संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सिक्ख आईपीएस को खालिस्तानी कहना कड़ी कार्रवाई लायक
21-Feb-2024 3:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  सिक्ख आईपीएस को खालिस्तानी कहना कड़ी कार्रवाई लायक

फोटो : सोशल मीडिया

पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले के संदेशखाली में जिस तरह के व्यापक हिंसा के आरोप सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेताओं पर लग रहे हैं, वे अपने आपमें सरकार को बड़े विवाद में फंसा चुके हैं। ऐसे में जब राज्य के मुख्य विपक्षी दल भाजपा के बड़े नेता संदेशखाली जाने पहुंचे, तो वहां पुलिस ने बाकी दूसरे लोगों की तरह इस जत्थे को भी रोक दिया। रोके जा रहे इन लोगों में से किसी एक ने वहां मौजूद एक सिक्ख आईपीएस अफसर को खालिस्तानी कहा। इससे बहुत बुरी तरह आहत इस अफसर ने इस पूरे जत्थे को कहा कि उन्होंने पगड़ी पहनी है, इसलिए उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर उन्हें खालिस्तानी कहा जा रहा है। उन्होंने भाजपा नेताओं से कहा कि उनके पुलिस होने के बारे में उनको जो कहना है कहें, लेकिन उनके धर्म पर ऐसी टिप्पणी न करें कि धार्मिक पगड़ी की वजह से उन्हें खालिस्तानी कहा जा रहा है। इस बात से बंगाल की पुलिस भी आहत है कि बिना किसी हिंसक कार्रवाई के सिर्फ लोगों को रोकने से उसके एक सीनियर अफसर के धर्म को लेकर उसे देशद्रोही कहा जा रहा है। वहां की पुलिस शायद इस पर जुर्म भी दर्ज कर रही है, और मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने भी इस पर बड़ी नाराजगी जताते हुए इस वीडियो को दुबारा पोस्ट किया है। सिक्खों में उनके सबसे बड़े धार्मिक प्रतीक, सिर पर बांधी जाने वाली पगड़ी को लेकर बड़ी संवेदनशीलता रहती है, और दुनिया के शायद हर देश में सिक्खों को पगड़ी के लिए हर किस्म की कानूनी रियायत भी मिलती है। देश भर में कई शहरों में सिक्ख संगठनों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किए हैं, और इस मामले पर आगे भी पुलिस कार्रवाई बढ़ सकती है। 

एक तरफ तो देश में धर्म को लेकर बड़ा उन्माद फैला हुआ है, और उसने किसी सिक्ख पर इस तरह की बात कहना, सिक्खों के बहुत से पुराने जख्मों को फिर से रगड़ देता है। ऑपरेशन ब्लूस्टार के पहले से जिस तरह पंजाब में भिंडरावाले के आतंकी स्वर्ण मंदिर से निकलकर घूम-घूमकर गैरसिक्खों की हत्या करते थे, उसे लोग भूले नहीं हैं। लेकिन इसे सिक्ख समाज की मंजूरी नहीं थी, यह सिर्फ समाज के भीतर के सबसे दबंग और हथियारबंद लोगों की मनमानी थी, जिसके खिलाफ बोलने की हिम्मत और ताकत उस वक्त की किसी की नहीं थी। उस वक्त भी देश भर में सिक्खों को आतंकवादी, टेररिस्ट, खालिस्तानी, या खाडक़ू जैसे कई नामों से बुलाया जाता था, और ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में ऐसा माहौल था कि सिक्खविरोधी दंगे भडक़ाना आसान था, और उनमें से एक आरोपी कमलनाथ को तीन दिन पहले भाजपा में लेने की पूरी तैयारी भी सुनाई पड़ रही थी, बाद में शायद इन्हीं दंगों के दाग की वजह से भाजपा उन्हें पचा नहीं पाई। दो बरस पहले के किसान आंदोलन के दौरान भी किसान नेताओं पर नक्सली, पाकिस्तानी, खालिस्तानी होने के बहुत से आरोप भाजपा नेताओं ने लगाए गए थे, और बाद में इन आरोपों की वजह से उनकी फजीहत भी हुई थी। अब फिर भाजपा के जत्थे में से किसी की तरफ से एक सिक्ख अफसर को खालिस्तानी कहना कुछ महंगा पड़ेगा। 

भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं की सिक्खों से किसी टकराव की कोई वजह नहीं दिखती, बल्कि पंजाब में शुरू से ही सिक्ख धर्म की राजनीति पर चलते हुए अकाली दल के साथ भाजपा की बड़ी लंबी भागीदारी रही। ऐसे में कैमरों के सामने एक सिक्ख आईपीएस अफसर को खालिस्तानी कहना एक राष्ट्रीय शर्मिंदगी की बात है। यह बात मुस्लिमों को तो कहना आम हो चुका है, और हर आम और खास मुसलमान को पाकिस्तान भेजने के फतवे हर गली-मोहल्ले में तैरते ही रहते हैं। लेकिन सिक्खों के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी भाजपा नेताओं के जत्थे के लापरवाह बर्ताव को बताती है जो कि गए तो तृणमूल कांग्रेस का विरोध करने के लिए थे, लेकिन देश भर के सिक्खों में अपने खिलाफ एक नाराजगी खड़ी कर आए हैं। अभी तक किसी ने इस वीडियो को गढ़ा हुआ नहीं कहा है, इसलिए यह माना जाना चाहिए कि यह वीडियो सही है। और इसमें सिक्ख अफसर जिस बुरी तरह आहत दिख रहे हैं, उससे भी ऐसा लगता है कि भारत में किसी को धर्म के आधार पर नीचा दिखाना भी आसान है, और लोग इसे एक आम गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं। 

पश्चिम बंगाल की पुलिस इस नस्लीय और साम्प्रदायिक टिप्पणी के खिलाफ रिपोर्ट शायद दर्ज कर चुकी है, और इस वीडियो की जांच करना भी मुश्किल नहीं है कि यह बिना छेडख़ानी का है, या छेडख़ानी से बनाया गया है। इसकी बारीक जांच होनी चाहिए, और दूसरे सुबूतों के साथ मिलकर ऐसा आरोप लगाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। देश में साम्प्रदायिक तनाव वैसे भी कम नहीं है, उसमें इस तरह का पेट्रोल छिडक़ना ठीक नहीं है। यह खालिस्तानी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के इस बरस कई बार दिए गए एक हुक्म के तहत भी जुर्म है जिसमें अदालत ने हर नफरती बात पर एफआईआर करने की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस पर डाली है। बंगाल पुलिस को ऐसा करने में कोई राजनीतिक असुविधा भी नहीं होगी क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी भी भाजपा से टकराव लेते चल रही हैं। लेकिन सभी राजनीतिक दलों को यह समझना चाहिए कि उनका ऐसा बर्ताव दूसरे राजनीतिक दलों के अराजक नेता-कार्यकर्ता के लिए एक अलग चुनौती लेकर आता है। देश को इस नौबत से बचना चाहिए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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