संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : डीएमएफ कमीशनखोरी से दैत्याकार ताकत पाने वाले नेता, अफसर, और ठेकेदार
05-Mar-2024 4:32 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : डीएमएफ कमीशनखोरी से दैत्याकार ताकत पाने वाले नेता, अफसर, और ठेकेदार

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की पिछली भूपेश बघेल सरकार के कई तरह के भ्रष्टाचारों की जांच आयकर विभाग, और ईडी से चल रही है, और ईडी ने कई मामलों में लोगों की गिरफ्तारी करके अदालत में चालान पेश कर दिया है। अपने ताजा प्रेसनोट में ईडी ने कहा है कि कोरबा में ही जिला खनिज निधि में 5-6 सौ करोड़ का कमीशन खाया गया है। ईडी ने कहा है कि अफसरों और राजनीतिक पदाधिकारियों ने 25 से 40 फीसदी तक कमीशन खाया। जिला खनिज निधि जिलों में होने वाले खनिजकर्म से पर्यावरण और लोगों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए बनाया गया एक फंड है, और खनिज रायल्टी का एक हिस्सा इस फंड में जमा होता है, और कलेक्टर की अगुवाई में एक कमेटी इसे खर्च करती है। छत्तीसगढ़ का कोरबा जिला देश का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक जिला है, और यहां देश का 17 फीसदी कोयला होता है। जाहिर है कि ऐसे में यहां सैकड़ों करोड़ रूपए साल का डीएमएफ रहता है, और इसे अलग-अलग सरकारों में सत्ता के अलग-अलग तय किए गए कंट्रोल रूम इस्तेमाल करते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि डीएमएफ कलेक्टरों का पॉकेटमनी सरीख रहता है, और वे इसका मनमाना इस्तेमाल करते हैं। अब ईडी ने अगर अपना यह निष्कर्ष निकाला है कि अकेले कोरबा जिले में डीएमएफ के तहत करवाए गए कामों में 5-6 सौ करोड़ रूपए कमीशन खा लिया गया है, तो इससे यह भी समझना चाहिए कि ऐसा करने वाले नेता, अफसर, और ठेकेदार इससे कितने ताकतवर हो चुके होंगे कि वे कई तरह की जांच एजेंसियों, कई तरह की अदालती प्रक्रिया को खरीदने लायक ताकत रखते होंगे। इनमें से जो लोग आगे चुनाव लड़ते हैं, वे चुनावी खर्च सीमा से सौ-सौ गुना अधिक खर्च कर पाते हैं, और लोकतंत्र को एक किस्म से जरखरीद गुलाम बनाकर रख लेते हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, और कर्नाटक सरीखे खनिज उत्पादक राज्यों में जो खनिज जिले हैं, वहां पर तैनाती के लिए अफसर करोड़ों रूपए के सौदे करते हैं। छत्तीसगढ़ में ही इस कोरबा जिले को लेकर एक गिरफ्तार आईएएस के बारे में यह आम चर्चा थी कि उसने पिछली सरकार की एक ताकतवर अफसर को पांच करोड़ रूपए देकर इस जिले में पोस्टिंग पाई थी। इतनी रकम देने के अलावा कोरबा जिले के अफसरों को कोल लेवी उगाही के काम में गिरफ्तार सूर्यकांत तिवारी नाम के सत्ता के चहेते व्यक्ति के साथ गिरोह की तरह काम भी करना पड़ता था, और एक के बाद एक आईएएस और आईपीएस अफसर मवालियों सरीखा काम करने में फख्र भी हासिल करते थे। वर्तमान भाजपा सरकार ऐसे सारे सुबूत सामने आने के बाद भी अभी ऐसे भ्रष्ट और वसूलीबाज अफसरों के खिलाफ तेजी से कोई कार्रवाई करते नहीं दिख रही है। एक चर्चा यह भी है कि आईएएस और आईपीएस अफसर ईडी के मामलों में इतनी बड़ी संख्या में फंस रहे हैं, कि वे गिरोहबंदी करके अपने सभी लोगों को बचाने में लगे हैं। जिला खनिज निधि को जिस मकसद से शुरू किया गया था, उसे शिकस्त देने का काम नेता, अफसर, और ठेकेदार का त्रिकोण लगातार करते आया है। नई सरकार को ईडी के निष्कर्षों से यह सावधानी भी सीख लेनी चाहिए कि उसके कार्यकाल में ऐसी गड़बडिय़ां न हो, वरना वे किसी न किसी दिन तैरकर सतह पर आ ही जाती है। 

लेकिन हम आज यहां पर भ्रष्टाचार पर बात खत्म करना नहीं चाहते हैं। हम खनिज-कर्म से पर्यावरण के होने वाले नुकसान, और प्रदूषण की बात करना चाहते हैं। प्रकृति, प्राणी, और इंसान, इन सबको खुदाई और खनिज से होने वाले नुकसान के असर को कम करना तो दूर रहा, डीएमएफ से ऐसे-ऐसे काम करवाए जाते हैं जिससे धरती पर कार्बन और अधिक बढ़ जाए, और प्रदूषण फैलता रहे। इसी कोरबा जिले में डीएमएफ से शहर के बीच में बहुमंजिली पार्किंग बना दी गई थी, जो कि डीएमएफ के मकसद के ठीक खिलाफ थी। इसी तरह हाईकोर्ट की लगातार दखल से बिलासपुर में एयरपोर्ट शुरू करने के लिए काम आगे बढ़ाया गया, और उसमें भी डीएमएफ की रकम का इस्तेमाल किया गया, और तर्क यह दिया गया कि एयरपोर्ट का इस्तेमाल करने वाले लोग खनिज जिलों के कामकाज के लिए भी आते हैं, और उनके आने से इन जिलों का फायदा होता है। हमारा ख्याल है कि इस खर्च को तर्कों को बहुत खींचतान कर डीएमएफ के दायरे में लाया गया था, और यह भी पहली नजर में जायज नहीं लगता है। 

सरकारों की दिक्कत यह रहती है कि जब-जब विपक्ष, मीडिया, और जनसंगठन कमजोर होते हैं, सरकारें मनमानी अधिक करने लगती हैं। कुछ ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार का था, जब गिने-चुने दो-तीन अफसर पूरे प्रदेश को चला रहे थे, और जमकर कमाने की नीयत से प्रदेश के बड़े-बड़े अफसर इन्हीं छोटे अफसरों की चापलूसी करते दिखते थे। नतीजा यह हुआ कि किसी जिले में पर्यावरण बचाने के लिए, प्रदूषण का नुकसान कम करने के लिए कामकाज नहीं हुआ, और जिन कामों में मोटा कमीशन मिल सकता था, उन्हीं कामों को मंजूर किया गया ताकि जल्द से जल्द कमाई हो सके। सरकार में हर विभाग के बजट में तेजी से मोटी कमाई वाले कामों की शिनाख्त सबको रहती है, और कमीशन की हड़बड़ी में ये सब लोग उन्हीं कामों को हर जगह करते हैं, फिर चाहे उनकी जरूरत रहे या न रहे। फिर यह भी है कि पर्यावरण बचाने के लिए वृक्षारोपण जैसे काम जिस वन विभाग के मार्फत करवाए जाते हैं, वह प्रदेश में सबसे अधिक भ्रष्ट एक विभाग है, और पिछले कई बरस से इस विभाग का मुखिया बनने के लिए प्रामाणिक भ्रष्ट होना जरूरी मान लिया गया है। इस तरह खनिज-प्रदूषण प्रभावित जिलों, प्राणियों, प्रकृति, और इंसानों को राहत पहुंचाना बस कागजी बात रह गई है। हमारा ख्याल है कि डीएमएफ के तहत होने वाले कामों पर कड़ाई से गौर करना चाहिए, और उनके प्रदूषण घटाने के योगदान का आंकलन होना चाहिए। इसके बिना डीएमएफ जैसा सीमित मकसद वाला फंड भी सरकार के बाकी कामकाज के नियमों से परे अंधाधुंध खर्च करने के लिए एक तिजोरी सरीखा बन गया है, जिसकी चाबी कलेक्टर के पास रहती है। डीएमएफ को सिर्फ खनन-प्रदूषण और इससे जुड़े हुए दूसरे नुकसान की भरपाई तक सीमित रखने के लिए एक बार फिर संबंधित जिलों में जनसुनवाई होनी चाहिए, और देश के विशेषज्ञों की मौजूदगी में जनता की बात भी सुनी जानी चाहिए कि खदानों और खनिज आवाजाही से उनका क्या नुकसान हो रहा है, और उसकी भरपाई के लिए क्या किया जाना चाहिए। आज डीएमएफ के इस्तेमाल से उस जिले की जनता कटी हुई है, यह सिलसिला राजा और प्रजा जैसा फर्क पैदा करता है। डीएमएफ के तहत होने वाले खर्च का पूरा ब्यौरा जिला स्तर पर सीधे सार्वजनिक करने का इंतजाम होना चाहिए, और ऐसा करवाने के लिए जरूरत हो तो कुछ संगठन अदालत तक भी जा सकते हैं, ताकि एक-एक जिले में सैकड़ों करोड़ की ऐसी कमीशनखोरी की जानकारी तो लोगों को रहे कि उनके इलाके के लिए, उनकी सहूलियत के नाम पर किन लोगों के मार्फत कितना खर्च किस काम पर किया जा रहा है? डीएमएफ के इतने व्यापक और संगठित भ्रष्टाचार से संबंधित तबके एक दैत्याकार ताकत हासिल कर रहे हैं जो कि लोकतंत्र को भी परास्त कर रही है। 

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