संपादकीय
छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी इलाके के एक आवासीय विद्यालय में पढ़ रही छात्रा ने कल एक बच्चे को जन्म दिया है, जिसके बाद हडक़म्प मच गया। बीजापुर नक्सल प्रभावित इलाका है, और वहां छात्रा को पेट दर्द की शिकायत के बाद सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र ले जाया गया था, वहां बच्चे को जन्म देने के बाद दोनों सुरक्षित हैं। इस पर कांग्रेस ने अपनी एक महिला विधायक की अगुवाई में 8 सदस्यीय जांच दल बनाया है। जिस स्कूल छात्रावास में यह लडक़ी रह रही थी, उसकी अधीक्षिका को निलंबित कर दिया गया है। आदिवासी इलाकों में छात्राओं के साथ लगातार इसी तरह, या कई तरह के मामले होते रहते हैं, और उनके शोषण की बातें कई बार स्थापित भी हो चुकी हैं, कई लोगों की गिरफ्तारी भी होते रहती है। इस मामले में छात्रावास अधीक्षिका का कहना है कि यह छात्रा बालिग थी, और उसका एक लडक़े से प्रेमप्रसंग था जो कि दोनों परिवारों की जानकारी में भी था, और उसी के नतीजे में यह गर्भ और जन्म हुआ है। अधीक्षिका ने अपनी सफाई में कहा है कि यह संबंध दोनों परिवारों की जानकारी में था, और छात्रा को छात्रावास से बाहर जाने की इजाजत पारिवारिक सहमति के आधार पर ही मिलती थी।
हो सकता है कि अधीक्षिका ने अपनी सफाई में जो कुछ कहा है, सब सही हो, लेकिन एक सवाल यह उठता है कि छात्रावास में रहते हुए कोई छात्रा अगर गर्भवती हो रही है, और पूरे गर्भकाल के बाद एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे रही है, तो छात्रावास के प्रभारी लोगों को इसकी जानकारी कैसे नहीं हुई? हमारा ख्याल है कि हॉस्टल के बच्चों के नियमित स्वास्थ्य परीक्षण का नियम रहता है, और छात्राओं के मामले में तो इस पर और अधिक गौर किया जाता होगा। ऐसे में हॉस्टल की जानकारी के बिना बात इतनी आगे बढ़ जाना परले दर्जे की लापरवाही के सुबूत के अलावा और कुछ नहीं है। बस्तर के इलाके में छात्रावासी छात्राओं के ऐसे मामले पहले भी सामने आए हैं, और यह बात साफ है कि स्कूल शिक्षा विभाग, या आदिम जाति कल्याण विभाग, जिनके भी स्कूल-छात्रावास होते हैं, उनकी लापरवाही और गैरजिम्मेदारी ऐसे मामलों में रहती है। इन विभागों में आदिवासी इलाकों में लोग अपनी तैनाती खरीददारी के लिए करवाते हैं जहां वे मनचाहे दाम पर खरीदी करते हैं, और उनके भ्रष्टाचार को पकडऩे वाले कोई नहीं रहते। लेकिन जब ऐसी घटनाएं बढक़र देह शोषण तक पहुंच जाती हैं, तो फिर मामला सिर्फ भ्रष्टाचार का नहीं रहता।
हमने बस्तर के इलाके में, और छत्तीसगढ़ के दूसरे सिरे के आदिवासी सरगुजा में भी आदिवासी बच्चियों के साथ ऐसा सरकारी बर्ताव देखा हुआ है। इसमें नई बात कुछ नहीं है, लेकिन यह बात कम गंभीर भी नहीं है। आज कांग्रेस अपनी महिला विधायक की अगुवाई में बड़ी सी टीम इस बच्ची के मां बनने की जांच के लिए बना चुकी है, लेकिन सवाल यह उठता है कि 9 महीने चले गर्भ की शुरूआत कांग्रेस सरकार के वक्त ही हुई होगी, और अभी तीन महीने पहले आई हुई विष्णु देव साय की सरकार के तहत तो उस गर्भ से संतान भर हुई है। इसमें किसे जिम्मेदार माना जाए? मौजूदा भाजपा सरकार को तो अगर सरकार बनते ही यह पता लग भी जाता कि एक लडक़ी गर्भवती है, तो भी वह गर्भ का तो कोई समाधान कर नहीं सकती थी, छात्रावास अधीक्षिका पर कार्रवाई जरूर हो सकती थी। यह बात भी कुछ हैरान करती है कि अधीक्षिका का कहना है कि अभी कुछ अरसा पहले एक मेडिकल जांच के लिए टीम छात्रावास आई थी, और सभी छात्राओं की जांच करके गई थी। जाहिर है कि गर्भवती छात्रा का पता नहीं लगना, मेडिकल टीम की भी लापरवाही रही होगी।
हम पहले भी इस बात को लिख चुके हैं कि आदिवासी इलाकों के लिए सरकार को अधिक संवेदनशील अधिकारी-कर्मचारी रखने चाहिए, और खासकर जहां आदिवासी बच्चों, लड़कियां, और महिलाओं का मामला हो, वहां पर सरकारी अमले को बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए। वैसे भी नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता सुरक्षा व्यवस्था हो जाती है, और वहां पर बाकी कोई भी बात अधिक नहीं सोची जाती। ऐसी बहुत सी शिकायतें लंबे समय से रही हैं कि सुरक्षा कर्मचारियों में से कुछ लोग किस तरह स्थानीय महिलाओं से बुरा बर्ताव करते हैं, और उस पर कोई कार्रवाई इसलिए नहीं होती कि सुरक्षा बलों का मनोबल टूटेगा। लोगों को याद होगा कि हथियारबंद मोर्चे वाले जितने भी प्रदेश इस देश में रहे हैं, वहां सरकारी संगीनों वाली बंदूकों की लगातार लंबी मौजूदगी से ऐसा नुकसान होता है कि मानवाधिकार बेमायने लगने लगते हैं, और महिलाओं पर तरह-तरह का जुल्म होता है। मणिपुर की नग्न महिलाओं का प्रदर्शन लोगों को याद होगा जो कि फौज को मिली हुई एक खास हिफाजत के कानून को खत्म करने के लिए कई बार किया गया है। बस्तर में नौबत उतनी बुरी नहीं रही, लेकिन सुरक्षा बलों के हाथ महिलाओं के शोषण की शिकायतें भी बहुत रही हैं। ऐसे ही जुल्मों की वजह से बस्तर जैसे शांत इलाके में नक्सलियों को आने और पांव जमाने का मौका मिला। इसलिए जहां कहीं स्थानीय आदिवासियों के साथ सरकारी अमले की लापरवाही या गैरजिम्मेदारी रहती है, उस पर कड़ाई से कार्रवाई होनी चाहिए।
बस्तर की बालिग या नाबालिग, इस स्कूली छात्रा का इस तरह मां बनना या सरकार के लिए कई किस्म के सवाल खड़े करता है। इस पर कांग्रेस को जांच दल बनाने के बजाय अपने कार्यकाल में हुई लापरवाही को मंजूर करना चाहिए, लेकिन चुनाव के माहौल में सच से अधिक लंबा रिश्ता किसी का रहता नहीं है। ऐसी घटनाएं सरकार को यह मौका भी देती हैं कि वह अपना घर सुधार ले। पूरे प्रदेश में हर किस्म के सरकारी छात्रावास की छात्राओं के स्वास्थ्य की जांच भी होनी चाहिए, और उन्हें गर्भधारण या बीमारी से बचने के रास्ते भी बताने चाहिए। उनसे सिर्फ नैतिकता की उम्मीद जायज नहीं होगी, उन्हें उनकी उम्र के मुताबिक जरूरी सलाह भी देनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)