संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लड़ते पड़ोसियों से जुड़ते पड़ोसी भले
27-Mar-2024 4:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  लड़ते पड़ोसियों से  जुड़ते पड़ोसी भले

फोटो : सोशल मीडिया

पाकिस्तान में अभी-अभी नई सरकार बनी, और विदेश मंत्री बने इसहाक डार ने ब्रिटेन में प्रेस कांफ्रेंस में यह कहा कि पाकिस्तान अपने पड़ोसी देश भारत के साथ व्यापारिक संबंधों की बहाली पर गंभीरता से सोच रहा है। दोनों देशों में साढ़े चार साल से आपसी कारोबार बंद पड़ा है। भारत में जम्मू-कश्मीर से 370 खत्म करने के विरोध में पाकिस्तान ने 2019 में कारोबार बंद कर दिया था, और इसके पहले भी दोनों देशों में तनातनी चल रही थी। भारत और पाकिस्तान का आपसी इतिहास बताता है कि सरहद और राजधानियों के विवाद सबसे पहले कारोबार पर वार करते हैं, और दोनों ही देश नुकसान झेलते हुए इस कारोबार के महंगे विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं। पाक विदेश मंत्री का यह बयान वहां सरकार बनने के कुछ हफ्तों के भीतर आया है, और कुछ हफ्तों के बाद हिन्दुस्तान में नई सरकार बननी है, और तब तक हिन्दुस्तान के चुनावी माहौल में पाकिस्तान के इस नए बदले हुए रूख पर शायद कोई सरकारी फैसला न हो पाए। वैसे भी किसी सरकार को अपने आखिरी के हफ्तों में विदेश नीति पर महत्वपूर्ण फैसले लेने नहीं चाहिए। इसलिए भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिक संबंधों को जानने वाले लोगों का कहना है कि पाक विदेश मंत्री ने यह बेमौके पर बेतुका बयान दिया है जिस पर भारत में अभी कोई फैसला होना नहीं है। दूसरी तरफ कारोबारी संगठनों ने इस पर खुशी जाहिर की है क्योंकि अगल-बगल के देशों के बीच कारोबार सस्ता पड़ता है, और मुनाफा आपस में बंट जाता है, बजाय किसी तीसरे देश में उस मुनाफे के जाने के।

लेकिन हम भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी के दाम याद दिलाना चाहते हैं। दोनों ही देश सरहद पर अंधाधुंध फौजी खर्च करते हैं, और दोनों ही देशों में गरीबों का हाल बहुत बुरा है। पाकिस्तान में यह हालत और अधिक बुरी है, और वहां पर फौजी खर्च अनुपात से बहुत अधिक है। जाहिर फौजी खर्च के अलावा पाकिस्तान में फौज लोकतंत्र, चुनाव, सरकार, और कारोबार पर बहुत बुरी तरह अपनी फौलादी पकड़ रखती है। ऐसे में आपसी कारोबार दोनों ही देशों के भले की बात है, और सिर्फ सियासी टकराव के चलते, नेताओं के अहंकार को पूरा करने के लिए जनता का इतना अधिक नुकसान करना ठीक नहीं है। चाहे यह बात बेमौके की हो, चाहे यह बेतुकी हो, लेकिन बात है तो पते की, और कुछ अरसा बाद जब भारत में नई सरकार काम संभालेगी, तब दोनों तरफ के कारोबारी संगठनों को अपनी-अपनी सरकार को कारोबार-बहाली के लिए नई कोशिशें करनी चाहिए।      

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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