संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रातों-रात दौलत के सपने लोगों को फंसा रहे जाल में
28-Mar-2024 4:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : रातों-रात दौलत के सपने लोगों को फंसा रहे जाल में

तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’

देश भर से अलग-अलग आई बहुत सी खबरें यह बताती हैं कि लोगों के मन में तेजी से कमाई की हसरत इस रफ्तार से बढ़ी है, और इतनी मजबूत हो गई है कि वे इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। छत्तीसगढ़ में पिछली भूपेश सरकार के कार्यकाल में पांच बरस जिस तरह कोयला-रंगदारी, नकली होलोग्राम से शराब बनवाकर बिक्री, और दूसरे कई किस्म के भ्रष्टाचार में जिस तरह से नेता, अफसर, और कारोबारी शामिल हुए, वह हैरान करता है कि क्या किसी अरबपति को साल भर से परिवार से दूर फरार जीने की कीमत पर भी ऐसी जुर्म की कमाई अच्छी लग रही थी? प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल उम्र के इस पड़ाव पर आकर, ऐसी सेहत के बाद, परिवार का सैकड़ों करोड़ का कारोबार रहने के बाद फरार हैं। बड़े-बड़े नेता और आईएएस अफसर या तो जेल में हैं, या कटघरे में हैं। पैसों की ऐसी कितनी जरूरत रहती है? 

कुछ दूसरी खबरों को देखें, तो बेंगलुरू की एक खबर है कि वहां सिंचाई विभाग के एक इंजीनियर को क्रिकेट पर सट्टे का शौक था, और कर्ज ले-लेकर सट्टे पर लगाते रहा, हारते रहा, और कर्ज इतना बढ़ गया कि देनदार घर पहुंचकर परेशान करने लगे, और 23 बरस की बीवी ने यह सब सिलसिला लिखकर, दो साल के बेटे को छोडक़र खुदकुशी कर ली कि वह कर्जदाताओं की प्रताडऩा और नहीं झेल पा रही है। कतरा-कतरा और भी बहुत सी खबरें हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अभी होली के दिन एक लाश मिली, और पता लगा कि वहीं के एक नौजवान ने एक नाबालिग से यह कत्ल करवाया। नाबालिग ने चाकू के दस वार से यह कत्ल किया, और इसका ठेका देने वाले ने भरोसा दिलाया था कि वह 17 बरस का नाबालिग है, और उसकी जल्दी जमानत करवा देगा। इसी राज्य की एक दूसरी खबर है कि अभी साल भर पहले तक गांव में बढ़ई का काम करने वाले एक नौजवान, शिवा साहू ने लोगों को क्रिप्टोकरेंसी से रकम दुगुनी करवा देने का झांसा देकर करोड़ों रूपए लिए, और जब वह रकम नहीं लौटा पाया तो लोगों ने पुलिस रिपोर्ट की। उसके पास से सवा तीन करोड़ से अधिक की 16 कारें जब्त हुई हैं, और उसके बैंक खातों से साढ़े 5 करोड़ रूपए जब्त होने की खबर है। अब सवाल यह उठता है कि गांव का एक बढ़ई रातों-रात लोगों को क्रिप्टोकरेंसी की कमाई के सपने दिखाकर इस तरह करोड़ों रूपए कमा सकता है, तो गांव के लोग भी ऐसी धोखाधड़ी पर करोड़ों रूपए गंवाने के लिए तैयार खड़े दिखते हैं। यह नौबत भयानक इसलिए है कि जिन लोगों ने क्रिप्टोकरेंसी के बारे में कुछ जाना भी नहीं होगा, वे गंवाना मुनासिब समझ रहे हैं, तो कल के दिन किसी और किस्म का जालसाज आएगा, और लोगों की बची हुई रकम ले जाएगा। छत्तीसगढ़ के गांव-गांव से लोगों ने चिटफंड में अपना पैसा गंवाया है, और सहारा जैसी बड़ी कंपनी में हजारों करोड़ गंवाए हुए लोग पहले से भटक ही रहे हैं। लोग रातों-रात अंधाधुंध कमाई के लिए जुर्म कर भी रहे हैं, और मुजरिमों के जुर्म के शिकार भी हो रहे हैं। इन दोनों में एक ही बात एक सरीखी है कि लोगों में रातों-रात पैसेवाले बनने के सपने बड़ी आसानी से पनपते हैं।

लोग बच्चों को मेडिकल कॉलेज में भेजने के नाम पर जिंदगी भर की कमाई गंवा रहे हैं, सरकारी नौकरी पाने के लिए बहुत ही संगठित गिरोहों के हाथ सारी बचत लुटा दे रहे हैं। कहीं कोई मुआवजा दिलाने के नाम पर, तो कहीं किसी जमीन पर कब्जे के नाम पर लोगों को आसानी से ठगा जा सकता है, और ठगा जा रहा है। जिन लोगों ने चिटफंड कंपनियों में अपनी बचत गंवाई थी, उनके बारे में मुख्यमंत्री बनते ही भूपेश बघेल ने यह घोषणा की थी, और यह बात कांग्रेस के 2018 के घोषणापत्र में भी शामिल थी कि चिटफंड में लुटे हुए लोगों को सरकार अपनी तरफ से भुगतान करके भरपाई करेगी। उस बयान की बात आई-गई हो गई, और भाजपा ने न तो विधानसभा चुनाव में अच्छी तरह दर्ज इस बयान को उठाया, और न अभी लोकसभा चुनाव में। लेकिन हमने उसी वक्त इस बात को लिखा था कि सरकार किसी जुर्म के शिकार लोगों की रकम की भरपाई सरकारी खजाने से कैसे कर सकती है? और इन लोगों ने तो अधिक कमाई की उम्मीद में यह रकम लगाई थी, इनसे परे लोगों के घरों में चोरी और डकैती से जिस रकम का नुकसान होता है, उसकी भी सरकारी खजाने से भरपाई का कोई प्रावधान नहीं है, और महादेव सट्टा जैसे कई और दूसरे किस्म के लूटने वाले धंधे इस प्रदेश में चल रहे हैं जिनको कोई सरकार रोक नहीं पा रही है। 

हम काफी अरसे से यह बात सुझाते आ रहे हैं कि केन्द्र और राज्य सरकार को आर्थिक अपराधों की रोकथाम के लिए ऐसी खुफिया निगरानी एजेंसी बनानी चाहिए जो कि बाजार की चर्चा से ही संभावित जुर्म को भांपकर उसे समय रहते पकड़ सके। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है, और केन्द्र और राज्य दोनों जगह ठगी और जालसाजी से होने वाले जुर्म जब हो जाते हैं, रकम गायब हो जाती है, तब जाकर इनकी जांच एजेंसियां जागती हैं। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। ऐसा कहीं भी नहीं हो सकता कि किसी गांव-कस्बे में रकम दुगुनी करने का कोई धंधा चला रहा हो, और वह वहां की पुलिस की नजरों में न आए। जब तक पुलिस का हफ्ता-महीना नहीं बांधा जाए, तब तक किसी इलाके में कोई संगठित जुर्म चलना मुमकिन नहीं रहता। इसलिए सरकार को अपनी मशीनरी सुधारनी चाहिए, और पुलिस से परे एक खुफिया एजेंसी ऐसी बनानी चाहिए जो कि बाजार की चर्चा, अफवाह, और मीडिया की खबरों को देखकर ही जुर्म के पनपने के पहले उसकी जड़ों पर वार कर सके।      (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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