संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चोरी से ट्रेनिंग पाता एआई दे रहा नियम तोडऩे की ट्रेनिंग..
08-Apr-2024 3:45 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  चोरी से ट्रेनिंग पाता एआई दे  रहा नियम तोडऩे की ट्रेनिंग..

दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को और अधिक विकसित करने के लिए लगातार इसमें दुनिया भर में मौजूद जानकारी डाली जा रही है। दुनिया के प्रमुख लेखकों का साहित्य इसमें डाला जा चुका है, और हर किस्म की मीडिया में मौजूद समाचार, विचार, और ऑडियो-वीडियो भी डाले जा रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक ऐसी है कि उसमें जितनी अधिक जानकारी डाली जाएगी, उतनी ही उसकी बुद्धि विकसित होती जाएगी, और उसके नतीजे और उसका काम बेहतर होता जाएगा। यह काम इतनी रफ्तार से चल रहा है कि लोगों के पास अभी इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है कि यह कितना खतरनाक हो चुका है। लोगों को आमतौर पर खबर तब लगती है जब विकसित तकनीक पर बने किसी औजार को लोगों के सामने रखा जाता है। उसके पहले तक तो कम्प्यूटर-लैब में मामला कहां तक पहुंचा है इसे कंपनियां खुद भी उजागर नहीं करती हैं। 

अभी कुछ अरसा पहले कुछ पश्चिमी देशों के प्रमुख लेखकों ने इस बात पर आपत्ति की थी कि चैट-जीपीटी जैसे एआई औजार किसी के कहे कोई कहानी भी लिख सकते हैं, और उस कहानी की शैली किसी प्रमुख लेखक की शैली सरीखी भी हो सकती है। इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस उन लेखकों के पहले के लिखे साहित्य का इस्तेमाल करता है, और उसी अंदाज में नई कहानी लिख डालता है। लेखकों का कहना है कि उनका अंदाज उनका अपना जिंदगी भर का हासिल है, उसके पीछे उनकी लंबी मेहनत है, और उनकी रचनात्मकता है। अब अगर सिर्फ उनके उपलब्ध साहित्य का इस्तेमाल करके आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यह सीखता है कि वे कैसे लिखते हैं, और फिर किसी के भी कहे उस तरह से लिखकर धर देता है, तो इससे उन लेखकों के अधिकार छिनते हैं। अभी एक दूसरी रिपोर्ट बताती है कि किस तरह दुनिया की सभी बड़ी कंपनियों ने मीडिया के समाचार-विचार के बाद यूट्यूब पर मौजूद सभी कंटेंट को लिखित शब्दों में बदल डाला, और अपने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के प्रशिक्षण के लिए उनका इस्तेमाल किया। अमरीका की कुछ ताजा खबरें बताती हैं कि बड़ी-बड़ी कंपनियां इस तरह की चोरी कर रही हैं। यह मामला कुछ उसी किस्म का हुआ कि कोई व्यक्ति अपने बच्चों को ड्राइविंग सिखाने के लिए चोरी की कार इस्तेमाल करे, या किताबों की दुकान से किताबें चुरा लाए। आज दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां इसी अंदाज में काम कर रही हैं। कुछ ऐसा ही हाल फिल्म, संगीत, और दूसरे किस्म की कलात्मक सामग्री को लेकर हो रहा है। पिछले बरस हॉलीवुड में महीनों तक हड़ताल चली थी क्योंकि वहां फिल्म और टीवी स्टूडियो एआई का इस्तेमाल करके कहानियां लिख ले रहे थे, या टीवी सीरियलों के अगले एपिसोड। लंबी चली हड़ताल में बाद में लेखक-कलाकार भी शामिल हो गए थे। 

आज भी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल करके लोग फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए अपनी तस्वीरें बना रहे हैं जो कि असल जिंदगी की असलियत से कोसों दूर, लोगों की कल्पनाओं से भी अधिक सुंदर बनी हुई तस्वीरें रहती हैं। ऐसे ही वीडियो भी बनाए जा रहे हैं, और इन सबमें असली दिखने-सुनाई देने वाले ऐसे डीप फेक वीडियो भी हैं जो कि किसी की भी आवाज में कोई भी बात दिखा-सुना देते हैं। अभी कल ही माइक्रोसॉफ्ट ने यह चेतावनी दी है कि चीन एआई का इस्तेमाल करके भारत जैसे देशों में चुनाव को प्रभावित कर सकता है। और बात सिर्फ भारत की नहीं है, 2024 के इस साल में दुनिया के 60 देशों में चुनाव हो रहे हैं, और यहां पर एआई के इस्तेमाल से जनमत को कई तरह से प्रभावित किया जा सकता है, और चुनावों को जीता जा सकता है। जैसा कि दुनिया के और किसी भी महंगे औजार या हथियार के साथ होता है, एआई भी सबसे अधिक संपन्न के हाथ सबसे अधिक विविधता और ताकत के साथ रहेगा, और उसी की जीत की संभावना भी अधिक रहेगी। दुनिया में जहां कहीं भी लोग सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल करते हैं, वहां पर फेसबुक और इंस्टाग्राम सरीखे प्लेटफॉर्म भाड़े पर उपलब्ध हैं, और एआई के साथ मिलकर ये एक खतरनाक गठजोड़ बन चुके हैं। खुद अमरीका जहां पर कि दुनिया की अधिकतर एआई कंपनियां बसी हुई हैं, वह एक चीनी दखल वाली कंपनी के लोकप्रिय एप्लीकेशन, टिकटॉक को लेकर परेशान हैं कि क्या इसकी सारी जानकारी इस कंपनी से चीन की खुफिया एजेंसियों तक नहीं पहुंच रही हैं, और क्या अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव में टिकटॉक का इस्तेमाल मतदाताओं को प्रभावित करने में नहीं होगा? दोनों ही प्रमुख पार्टियों और प्रत्याशियों के बीच टिकटॉक को लेकर लगातार यह बहस चल ही रही है कि इसे अमरीका में प्रतिबंधित किया जाए या नहीं? पार्टियां इस बात से भी डरी हुई हैं कि नौजवान वोटरों के बहुत बड़े तबके के बीच यह एप्लीकेशन इतना लोकप्रिय है कि इसे बंद करने से उनकी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। इस दहशत में अब तक कोई सरकार अब तक कोई फैसला नहीं पा रही है, और न ही अगले उम्मीदवार इस बारे में साफ-साफ कुछ बोल रहे हैं। 

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की आज की हालत कुछ वैसी ही है जैसा कि हिन्दुस्तान में बहुत धूर्त लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे जमीन के ऊपर जितने हैं, उससे दुगुने वे जमीन के नीचे हैं। एआई आज जमीन के ऊपर जितनी खतरनाक दिख रही है, उससे कई गुना अधिक वह जमीन के नीचे है। और अभी तक हमने जितनी बातें की हैं, वे सबकी सब उसे औजार की तरह इस्तेमाल करने की है। जिस दिन एआई खुद एक बुद्धि बन जाएगा, और वह कृत्रिम के दायरे से बाहर आकर असल दिमाग की तरह विकसित होने लगेगा, उस दिन नौबत और खतरनाक हो जाएगी। अभी कल की ही खबर है कि कुछ कंपनियों के ग्राहकों से बातचीत करने वाले एआई-चैटबोट उन्हें सरकारी नियम तोडऩे के रास्ते सिखाने लगे थे। कहीं कोई चैटबोट भावनात्मक होने लगा है, तो कोई किसी को आत्महत्या की प्रेरणा भी दे रहा है। यह मामला बहुत जल्द इतना बेकाबू हो जाएगा कि एआई अगर किसी तरह की सोच अपनी खुद की विकसित कर लेगा, तो उसके मुताबिक वह दुनिया को तबाह करने के लिए इतने किस्म के रास्ते पल भर में ढूंढ लेगा कि उनसे बचाव का जरिया ही इंसानों के बस का नहीं रह जाएगा। कुल मिलाकर एआई पर चर्चा कभी भी पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि इन 15 मिनटों में जितनी देर में हमने यह लिखा है, इतनी देर में एआई हमारी कल्पना से भी अधिक छलांग लगा चुकी होगी।          

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)      

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