संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दूसरे देशों में कत्ल करवाना कितना नैतिक या अनैतिक?
16-Apr-2024 5:59 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : दूसरे देशों में कत्ल करवाना कितना नैतिक या अनैतिक?

फोटो : सोशल मीडिया

पाकिस्तान की एक जेल में बंद एक भारतीय सरबजीत सिंह का जेल के भीतर 2013 में कत्ल कर दिया गया था। सरबजीत पर पाकिस्तान में भारत के लिए जासूसी करने, और बम विस्फोट करने के जुर्म थे, और वह सजा काट रहा था। वहां जिन दो कैदियों पर उसके कत्ल का आरोप था, उसमें से एक, आमिर सरफराज पर अभी पाकिस्तान में घर घुसकर गोलियां चलाई गईं। जेल में सरबजीत के कत्ल से दोनों देशों में तनातनी बढ़ी थी, और अभी जब यह ताजा हमला हुआ तो पाकिस्तान के गृहमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस कर दावा किया कि इसमें मिले सुबूत इसके पीछे भारत का हाथ होने का इशारा करते हैं। उन्होंने कहा कि पहले भी भारत पाकिस्तान में हत्याओं के कुछ मामलों में सीधे तौर पर शामिल रहा है। इसके पहले कनाडा और अमरीका में भारत के खिलाफ गतिविधियां चलाने वाले खालिस्तानी आंदोलनकारियों पर हमलों के पीछे भारत की साजिश की बात इन दोनों ने उठाई थी, और दोनों देशों के साथ भारत के रिश्तों में कुछ कड़वाहट भी आई थी। पहली बार ऐसा लगा था कि भारत दूसरे देशों की जमीन पर भी उन लोगों पर हमले करवा सकता है जिन्हें वह भारत का दुश्मन मानता है। इस पर हमने कुछ अरसा पहले भी लिखा था, लेकिन अब भारत चुनाव के बीच है, और ऐसे में भारत के जासूस समझे जाने वाले सरबजीत के कथित हत्यारों पर जब पाकिस्तान में इस तरह का हमला हुआ है, तो इससे भारत में मौजूदा सरकार पर फिदा एक तबके को एक कामयाबी दिख सकती है। 

लेकिन हम राजनीतिक और चुनावी नफे-नुकसान से परे देखें, तो भी कई बार दुनिया के अधिकतर देशों की सरकारें अपने देश के दुश्मन माने जा रहे व्यक्ति को दूसरे देश की जमीन पर भी निपटाते आए हैं। अमरीका और इजराइल सरीखे देशों पर तो यह बहुत बार लागू होता है, जहां की खुफिया एजेंसियां खुद, या भाड़े के हत्यारों से ऐसा करवाती रहती हैं, लेकिन भारत के बारे में आमतौर पर ऐसा नहीं माना जाता था। अब बदले हुए माहौल में भारत अगर दूसरे देश के नागरिकों पर, या हिन्दुस्तानी मुल्क के उन लोगों पर जो कि भारत के खिलाफ खुलकर अभियान चलाते हैं, अगर भारत सरकार हमले करवाती है, तो इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नजरिए से देखा जाएगा। जिस देश की सरहद में ऐसा हमला होता है, वहां की सरकार तो जाहिर तौर पर भारत के खिलाफ रहेगी क्योंकि उसकी जमीन पर कानून तोड़ा गया है। लेकिन बहुत सी सरकारों पर इसका यह असर भी होगा कि भारत अपने दुश्मनों को छोड़ता नहीं है। बाकी देशों के बीच इसकी प्रतिक्रिया मिलीजुली रहेगी, और जो देश इस तरह की हिंसा या ऐसे जुर्म करवाते रहते हैं, उनकी नजरों में भारत उनकी कतार में शामिल हो गया एक देश गिना जाएगा। 

अब सवाल यह उठता है कि इस तरह के कत्ल के पीछे क्या नैतिकता भी आड़े आ सकती है? इस बारे में यह समझना होगा कि दुनिया के अधिकतर देश दो अलग-अलग किस्म के कानूनों पर चलते हैं। कानूनों का एक सेट वे अपने देश के भीतर के लिए रखते हैं, और दूसरे देशों के लिए वे गैरकानूनी तौर-तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उनकी अपनी अधिकतर आबादी को या तो कोई लेना-देना नहीं रहता है, या उन्हें कोई आपत्ति नहीं रहती है। अधिकतर लोग यह मानते हैं कि दुश्मन को निपटाते हुए किसी कानून को मानने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। चूंकि दूसरे देशों की जमीन पर भारत का कोई कानून लागू नहीं होता है, इसलिए अगर वहां पर उस देश के कानून को चकमा देकर कोई जुर्म करवाया जा सकता है, और अपने देश के दुश्मन को निपटाया जा सकता है, तो इसे लोकतंत्र की जुबान में कोई अनैतिक तो कह सकते हैं, लेकिन इसमें तब तक कुछ गैरकानूनी नहीं है जब तक कि ऐसे कत्ल वाले देश में ऐसे सुबूत न जुट जाएं जो कि कत्ल करवाने वाले देश का हाथ साबित कर सकें। इसलिए दूसरे देश में जाकर हिसाब चुकता करने के पीछे किसी देश को नैतिकता भी आड़े नहीं आती है। फिर दुनिया में जो देश सबसे अधिक लोकतांत्रिक कहे या माने जाते हैं, वैसे देश भी दुनिया भर में बम बरसाते दिखते हैं, वहां जाकर कत्ल करते हैं, सत्ता पलटते हैं, खुद राज करते हैं, और इसे कोई बुरा भी नहीं मानते। पाकिस्तान को बताए बिना अमरीका ने पाकिस्तानी जमीन पर ओसामा-बिन-लादेन के बसे होने का दावा किया, और यह दावा भी तब किया जब उसने फौजी हमला करके लादेन को मार डालने का दावा किया, और उसके बाद ही अपनी फौजी कार्रवाई के बारे में दुनिया को बताया। इस बारे में पाकिस्तान को भी उसने खबर नहीं की। इसलिए जब जिस देश की ताकत रहती है, वे दूसरे देशों में जाकर कई तरह के काम करते हैं, और लोकतंत्र के पहले की जो एक कहावत चली आ रही है, वह आज 21वीं सदी में आधुनिक और सभ्य लोकतंत्रों पर भी लागू होती है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस। इसलिए पाकिस्तान में पिछले कुछ महीनों में अगर लगातार भारत के आरोपों से घिरे हुए संदिग्ध और कथित आतंकी एक ही अंदाज में मारे गए हैं, तो पाकिस्तान के आरोपों से परे भारत की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है, बल्कि भारत में राष्ट्रवादी आंदोलनकारी इसे देश की कामयाबी ही बता रहे हैं, और सरकार इसका कोई खंडन नहीं कर रही है। आज कल्पना करके देखें कि अगर भारत सरकार पाकिस्तान में दाऊद इब्राहिम को खत्म करवाने में कामयाब होती है, तो इसे भारत में एक बड़ी राष्ट्रीय उपलब्धि के रूप में माना जाएगा, फिर पाकिस्तान चाहे जैसी भी दखल की तोहमत लगाता रहे। 

यह बात बिल्कुल साफ है कि राष्ट्रीय हितों के सामने आज कोई अंतरराष्ट्रीय हित शायद ही किसी सरकार की प्राथमिकता हों। अधिकतर सरकारें अपने घरेलू चुनावों, घरेलू अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी और महंगाई से जूझते हुए विदेशी मोर्चों पर कुछ किस्म की कामयाबी की कोशिश कर सकती हैं जिनसे देश के भीतर वाहवाही मिले। आज किसी विकसित और सभ्य लोकतंत्र में भी गिने-चुने लोग ही ऐसे होंगे जो कि अपनी सरकार के ऐसे गैरकानूनी काम का विरोध करेंगे। यह बात जाहिर है कि नैतिकता अपने देश में अपने लोगों के लिए अलग होती है, और दूसरी जमीन पर दूसरे लोगों के लिए उसका एक बड़ा हल्का संस्करण लागू किया जाता है। इसलिए भारत अपने खिलाफ काम करने वाले लोगों के साथ दुनिया के दूसरे देशों में जो सुलूक करता है, उसे कूटनीति की भाषा में कुछ और कहा जाएगा, नैतिकता की भाषा में कुछ और, और चुनावी भाषा में वह एक बिल्कुल अलग नारा रहेगा।

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