संपादकीय
तमिलनाडु सरकार ने अभी विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान यह घोषणा करवाई कि वह एक आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन कर रही है जिसमें एक नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री एस्थर दुफ्लो भी सदस्य होंगी। लेकिन उनके साथ-साथ कुछ और नाम भी इस परिषद के लिए घोषित किए गए हैं जो नोबेल पुरस्कार विजेता तो नहीं है, लेकिन किसी मायने में उनसे कम भी नहीं है। इन नामों में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रहे हुए रघुराम राजन, और भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम का नाम है, देश के एक चर्चित अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज का नाम है, और एक पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव एस नारायण भी इस परिषद में रखे गए हैं। राज्यपाल का अभिभाषण राज्य सरकार का तैयार किया हुआ होता है और उसमें कहा गया है कि आर्थिक सलाहकार परिषद की सिफारिशों के आधार पर सरकार सुनिश्चित करेगी कि आर्थिक विकास समाज के हर क्षेत्र तक पहुंचे।
भारत के संघीय ढांचे की खूबी यही है कि केंद्र सरकार से परे अलग अलग राज्य सरकारें अपनी-अपनी सोच के मुताबिक बहुत से मौलिक प्रयोग कर सकती हैं, और उन प्रयोगों से बाकी देश की कई बार कई चीजें सीखता है कि उन प्रयोगों के मुताबिक काम करना है, या उन प्रयोगों से परहेज करते हुए काम करना है. तजुर्बे का फायदा भी मिलता है या एक नसीहत मिलती है। लोगों को अगर याद होगा कि यूपीए सरकार के 10 वर्ष में दिल्ली में सोनिया गांधी की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बनी थी जिसमें सामाजिक क्षेत्र के कुछ लोग मनोनीत किए गए थे. उसमें भारत सरकार के एक रिटायर्ड सचिव भी थे और गरीबों के कल्याण की अर्थव्यवस्था के देश के एक सबसे बड़े जानकार ज्यां द्रेज भी उस एनएसी के एक मेंबर थे। एक समय छत्तीसगढ़ में कलेक्टर और कमिश्नर रह चुके हर्ष मंदिर भी सोनिया गांधी की उस सलाहकार परिषद के सदस्य थे। ऐसा माना जाता है कि यूपीए सरकार की गरीब कल्याण की बहुत सी योजनाओं पर इस सलाहकार परिषद की छाप थी और सोनिया गांधी इन सलाहकारों से प्रभावित भी रहती थीं। भारत में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह से सरकारें अपने सलाहकार तय करती हैं। उनका सरकारों के कामकाज में काम या अधिक योगदान रहता है। यह एक अलग बात है कि छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने अपने 3 साल के कार्यकाल में देश के कई ऐसे लोगों को प्रदेश का सलाहकार बनाया था जिन्होंने कोई भी योगदान नहीं दिया था, या राज्य सरकार उनका योगदान ले नहीं पाई थी। अभी मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने ही चार पुराने और करीबी साथियों को सलाहकार बनाकर जिम्मेदारी के काम दिए हैं और यह उम्मीद है की जाती है कि उनका योगदान राज्य सरकार को मिल रहा होगा।
तमिलनाडु सरकार के इस ताजा फैसले से एक रास्ता खुलता है कि देश के बाहर काम करने वाली एक अर्थशास्त्री महिला को राज्य के विकास और जनकल्याण की इस परिषद में रखा गया है, और इसमें दो और ऐसे लोग हैं जिनका भारत के बाहर से रिश्ता रहा है। आरबीआई के भूतपूर्व गवर्नर रघुराम राजन लंबे समय से एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे थे और भारत में अपना काम करने के बाद वे फिर अमेरिका ही लौट चुके हैं। एक अन्य नाम ज्यां द्रेज का ऐसा है जो कि विदेशी मूल का है। वे दशकों पहले यूरोप से हिंदुस्तान आए थे और तब से वे यहीं के होकर रह गए हैं, उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के साथ आधा दर्जन से अधिक किताबों में सह लेखक की हैसियत से काम किया है. और उनके काम का महत्व ऐसा है कि अमर्त्य सेन ने उनके बारे में यह कहा था कि वे ज्यां द्रेज के साथ किताब इसलिए लिखते हैं कि तमाम काम ज्यां द्रेज करते हैं, और अमर्त्य सेन को सहलेखक की वाहवाही मिलती है. भारत के हाल के बहुत सारे जनकल्याण के ऐसे काम हैं जो न सिर्फ यूपीए सरकार के वक्त बल्कि कई प्रदेशों में भी ज्यां द्रेज की सलाह से चले और उनसे गरीबों का बहुत भला हुआ। वे चाहे सोनिया गांधी की एनएसी के मेंबर थे, लेकिन छत्तीसगढ़ में भाजपा की रमन सिंह सरकार ने उनकी सलाह पर अपनी पीडीएस योजना तैयार की थी, जिसकी देशभर में बड़ी वाहवाही हुई थी। आज छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के साथ ज्यां द्रेज बस्तर के आदिवासी आंदोलन के मुद्दे पर असहमत नजर आ रहे हैं, लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि जिस वक्त रमन सिंह सरकार ज्यां द्रेज के सुझाए हुए पीडीएस को लागू कर रही थी, उस वक्त भी वे इस सरकार की बस्तर की पुलिस नीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बहुत से मामले लड़ रहे थे।
देश-विदेश का तजुर्बा रखने वाले और अंतर्राष्ट्रीय समझ-बूझ रखने वाले ऐसे लोगों की सलाह किसी भी राज्य के काम की हो सकती है. तमिलनाडु की यह नई आर्थिक सलाहकार परिषद इस मायने में भी दिलचस्प है कि इसमें अमेरिकी पृष्ठभूमि से आए हुए दो अर्थशास्त्री हैं, और एक अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ऐसे हैं जिन्होंने कभी भी अमेरिका जाने का भी कोई न्यौता मंजूर नहीं किया। राज्य के आर्थिक विकास का यह तजुर्बा कितना कामयाब होता है यह तो आने वाले वर्षों में पता लगेगा और क्योंकि इस सरकार ने अपना कार्यकाल शुरू होते ही यह फैसला लिया है तो इसका कोई फायदा अगर होना है तो वह देखने के लिए इसका पूरा कार्यकाल ही सामने खड़ा रहेगा। तमिलनाडु एक बड़ी अर्थव्यवस्था है, और वहाँ सम्भावनाएँ भी बहुत हैं। भारत के अलग-अलग राज्यों को एक दूसरे के तजुर्बे से इसलिए भी सीखना चाहिए कि प्रतिभा और मौलिक सोच, इन पर किसी का एकाधिकार तो है नहीं, और देश-प्रदेश की कोई भी सरकार अगर यह समझती है कि उसे किसी सलाह की जरूरत नहीं है, तो उसका जो नतीजा होता है वह देश आज देख ही रहा है।
हिंदुस्तान इस बात को देख और भुगत रहा है कि किस तरह यहां योजना आयोग को खत्म किया गया, और उसके नाम पर नीति आयोग नाम की एक छोटी सी ऐसी संस्था बना दी गई जिसमें राज्यों की व्यापक भागीदारी खत्म सरीखी हो गई है। एक वक्त था जब देश के राज्य, भारत के योजना आयोग में अपने तर्कों को रखते थे, अपनी योजना और अपनी सोच को रखते थे, देश के साधनों में अधिक हिस्सेदारी के अपने दावे तो पेश करते थे। लेकिन आज खुद योजना आयोग नाम की संस्था नहीं रह गई, और नीति आयोग नाम की संस्था की एक इतनी सीमित भूमिका रह गई है कि जब उसकी खुद की बात का कोई वजन नहीं है तो वह राज्यों की बात को सुनकर क्या कर ले। नतीजा यह है कि हिंदुस्तान के संघीय ढांचे के तहत योजना आयोग नाम की जिस संस्था में सारे वक्त राज्यों की बात सुनी जाती थी, उस मंच को ही खत्म कर दिया गया है। बिना योजना आयोग यह हुआ है कि मोदी सरकार अनगिनत ऐसे बड़े-बड़े फैसले रही है जिनसे ऐतिहासिक बर्बादी हुई है। लेकिन योजना आयोग जैसी कोई संस्था ऐसे फैसलों के वक्त ना अस्तित्व में थी और ना ही देश में किसी और संस्था से, किसी और मंत्रिमंडल से इनके बारे में कोई सलाह दी गई. नतीजा यह है कि हर कुछ बरस में बड़े-बड़े ऐतिहासिक फैसले सामने आए, कभी नोटबंदी का फैसला आया, तो कभी ऐसा जीएसटी आया कि जिसकी मरम्मत सालों से चल ही रही है, और कभी लॉकडाउन का, और किसी पारे की तरह अस्थिर वैक्सीन नीति का. ऐसे कई फैसले आए जिनमें विशेषज्ञ सलाह की कमी साफ-साफ दिखती रही। इसलिए लोकतंत्र में निर्वाचित लोगों को अपनी समझ पर एक सीमा से अधिक भरोसा नहीं होना चाहिए और दुनिया में विशेषज्ञता का सम्मान अधिकतर लोकतंत्रों में होता है। और जहां लोकतंत्र नहीं होता वहां के बारे में क्या कहा जा सकता है।