संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : देवताओं की धरती यूपी में दलितों से ऐसे गैंगरेप से कोई दिल नहीं हिलते?
27-Sep-2020 8:45 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : देवताओं की धरती यूपी में दलितों से ऐसे गैंगरेप से कोई दिल नहीं हिलते?

इंटरनेट पर समाचारों को देखना अखबारों में देखने से कुछ अलग होता है। बलात्कार की एक खबर पढ़ें, तो उसक खबर के बीच-बीच में बलात्कार के दूसरे मामलों के हॉटलिंक भी दिखते रहते हैं, अगर दिलचस्पी हो तो एक क्लिक करके उन दूसरी घटनाओं को भी पढ़ा जा सकता है। आज उत्तर भारत की एक घटना मीडिया में छाई हुई है कि दिल्ली से दो सौ किमी. दूर यूपी में एक दलित युवती के साथ गैंगरेप किया गया, उसे बुरी तरह पीटा गया, और कई हड्डियां टूट जाने के साथ-साथ उसकी जीभ भी कट गई है, हालत बेहद खराब है, और डॉक्टर उसे दिल्ली भेजने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। चारों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है जो कि ऊंची कही जाने वाली एक जाति के हैं। इस खबर को देखते हुए यूपी के ही कई दूसरे हॉटलिंक दिख रहे हैं, नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार, दो गिरफ्तार, अगली खबर है- लखीमपुर के बाद गोरखपुर में किशोरी से रेप, सिगरेट से दागा शरीर। 

उत्तरप्रदेश दलितों के साथ ऐसी हिंसा और जुर्म का एक आम मैदान हो गया है। कहने के लिए तो राज्य के मुखिया योगी आदित्यनाथ हैं, लेकिन वे अपनी सोच और अपनी सरकार में जो रूख दिखाते हैं, वह सवर्ण हिन्दुत्व की आक्रामकता को बढ़ाने वाला है, और उसमें दलितों की कोई जगह नहीं है। लोगों को याद होगा कि इसी प्रदेश में भाजपा के विधायक, भाजपा के एक भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री बलात्कार के मामलों में लंबी मशक्कत के बाद गिरफ्तार हुए। एक मामले में तो भाजपा विधायक के खिलाफ बलात्कार की शिकायत करने वाली लडक़ी के कुनबे के कई लोगों को चुन-चुनकर मार डाला गया। यह प्रदेश कानून के राज को खो बैठा है। इसके तुरंत बाद का हाल देखें तो मध्यप्रदेश है जहां पिछले 15-17 वर्षों से लगभग लगातार भाजपा का राज चल रहा है, और लगातार दलितों पर हिंसा भी चल रही है। 

हिन्दुस्तान में जिन लोगों को लगता है कि जाति व्यवस्था खत्म हो गई है, उन्हें जुर्म के आंकड़ों का विश्लेषण करना चाहिए। जो जातियां हिन्दू समाज में सबसे नीचे समझी और कही जाती हैं, वे जुर्म का सबसे अधिक शिकार होती हैं। जो जातियां ऊंची समझी और कही जाती हैं, वे जुल्म के मामलों में मुजरिम अधिक होती हैं। और यह बात हम एक-दो मामलों को देखकर नहीं कह रहे हैं, यह आम रूख है, यह आम ढर्रा है कि जुल्म वाले अधिकतर जुर्म अधिक ताकतवर लोगों के हाथों कमजोर लोगों पर होते हैं, और ताकत के इस संतुलन में जातियों का एक बड़ा किरदार है। 

ये मामले वे हैं जो कि हिंसा आसमान तक पहुंच जाने के बाद छुपाए नहीं छुपते, और पुलिस तक पहुंच जाते हैं, मीडिया तक पहुंच जाते हैं। यूपी के जिस गंैगरेप की खबर से आज हमने यह लिखना शुरू किया है वह 14 सितंबर को हुआ, और आज मीडिया तक पहुंचा। जाहिर है कि दलित-आदिवासी या दूसरे किसी किस्म से कमजोर तबकों की खबरों को लंबा सफर करके मीडिया तक पहुंचना पड़ता है, और फिल्मी सितारों पर कैमरे फोकस करके बैठे मीडिया का कंधा थपथपाना पड़ता है कि हमारे साथ रेप हुआ है, हमें भी देखो। यह सिलसिला पूरे देश के लिए शर्मिंदगी का होना चाहिए, लेकिन ऊंची कुर्सियों पर बैठे हुए लोगों के मन की बात में भी दलितों पर बलात्कार, उसके बाद उन्हें सिगरेट से जलाने, उनकी आंखें निकाल देने, उनकी हड्डियां तोड़ देने को जगह नहीं मिल पाती है। हिन्दुस्तान में ताकतवर तबकों और कमजोर तबकों के बीच फासला इतना लंबा है, बीच की खाई इतनी गहरी है कि संविधान नाम की एक किताब इस पर पुल बनकर काम नहीं कर पाती। 

यह पूरा सिलसिला एक राष्ट्रीय शर्म का मामला है कि जिस तबके को जोडक़र हिन्दू समाज अपनी आबादी अधिक बताता है, अपने समाज के भीतर उन दलितों के साथ समाज के ही गिनती में कम, ऊंची कही जाने वाली जातियों के लोग कैसा सुलूक करते हैं। आबादी बढ़ाने के लिए तो दलित हिन्दू हैं, लेकिन बलात्कार करते वक्त उनकी औरतें बस बदन हैं। इसके बाद भी लोग अपने आपको अपने धर्म पर गर्व करने वाला बताते हैं। लोगों को सोचना चाहिए कि गर्व करने के लिए कुछ बुनियादी बातें जरूरी होती हैं, क्या इस समाज में कमजोर बनी हुई और नीची कही-समझी जाने वाली जातियों पर होने वाले उच्च-वर्ण के जुल्म पर कोई चर्चा भी होती है? वह तो जब पुलिस के पास सिवाय जुर्म दर्ज करने के और कोई विकल्प नहीं बचता है, जब मामला उजागर हो ही जाता है, तभी जाकर दलितों पर जुल्म लिक्खे जाते हैं। उत्तरप्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर्मकांडी धार्मिक हिन्दू हैं, और उनके चाहने वालों में से बहुत से लोग उनमें हिन्दुस्तान का अगला प्रधानमंत्री देखते हैं। आज उनकी सरकार में दलितों का क्या हाल है, यह भी देखने की जरूरत है। जिस देश की अदालतों के बड़े-बड़े जजों को अपनी इज्जत के लिए लंबे मुकदमे चलाने की फुर्सत है, वे यह भी देखें कि दलितों पर बलात्कार के मुकदमों में सजा का औसत क्या है, फैसलों का वक्त क्या है, और निचली अदालतों में मिली सजा का भविष्य ऊपर की अदालतों में क्या है? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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