संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : वैक्सीन के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता न हो
15-Jan-2021 4:55 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : वैक्सीन के लिए आधार  कार्ड की अनिवार्यता न हो

 

कुछ वक्त पहले की हरियाणा की खबर है कि वहां पर एक निजी अस्पताल में एक महिला मरीज को ले जाया गया, लेकिन उसका आधार कार्ड न होने से इलाज नहीं हुआ, और उसकी मौत हो गई। यह बात खबर इसलिए भी बनी कि यह महिला कारगिल युद्ध के एक शहीद की पत्नी थी, और उसके बेटे ने मीडिया के सामने यह पूरा मामला उजागर किया। अस्पताल का कहना है कि आधार कार्ड औपचारिकताओं के लिए जरूरी है, और उसके बिना वे दाखिले के कागज पूरे नहीं कर सकते थे। लोगों को याद होगा कि अभी दो-तीन महीने के भीतर ही झारखंड में एक महिला की मौत हो गई थी क्योंकि आधार कार्ड न होने से उसके परिवार को राशन मिलना बंद हो गया था। भुखमरी से मौत हिन्दुस्तान में अब आम बात नहीं रह गई है, लेकिन झारखंड के इस हादसे से केन्द्र और राज्य सरकार को जो झटका लगना था, वह नहीं लगा, और बाकी देश के लिए भी, बाकी कामों के लिए भी सरकारों ने सबक नहीं लिया। देश के मुख्य सूचना आयुक्त ने यह फैसला दिया था कि आरटीआई अर्जी देने वाले के पास आधार कार्ड न होने से उसे सूचना देने से मना करना कानून के खिलाफ है, और सूचना पाने के लिए आधार कार्ड की कोई जरूरत नहीं है।

इस मुद्दे पर आज लिखने की जरूरत इसलिए है कि हिन्दुस्तान में जान बचाने के लिए जिस कोरोना वैक्सीन को लगाने का काम कल से शुरू हो रहा है, उसके लिए न सिर्फ आधार कार्ड जरूरी है, बल्कि मोबाइल फोन का भी आधार कार्ड से जुड़े रहना जरूरी है सभी रजिस्टर्ड लोगों को वैक्सीन लगाने की जानकारी उस नंबर पर आएगी। इस तरह आज अगर आधार कार्ड नहीं है, मोबाइल फोन नहीं है, दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं, तो अब तक की सरकारी घोषणा के मुताबिक ऐसे लोगों के लिए वैक्सीन भी नहीं है! अब सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई जारी ही है, और जब तक अदालत का फैसला नहीं आता तब तक तो यह संभावना या आशंका बनी ही रहेगी कि आधार कार्ड की अनिवार्यता खारिज भी हो सकती है, लेकिन आज कोरोना के टीके के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया है।

 

हमारे सरीखे अनगिनत हिन्दुस्तानी आज ऐसे हैं जिन्हें दिन में कई बार टेलीफोन पर यह घोषणा सुननी पड़ती है कि 31 मार्च के पहले अपने सिमकार्ड को आधार कार्ड से जुड़वा लें। इसी तरह की घोषणा बैंक खातों को आधार से लिंक करवाने के लिए एसएमएस पर आती रहती है। अभी सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर एक मामले की सुनवाई जारी ही है, और वहां केन्द्र सरकार आधार कार्ड को हर बात के लिए जरूरी करने पर आमादा है, दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट लोगों के ऐसे शक को भी ध्यान से सुन रहा है जो यह मानते हैं कि हर बात के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य करने से लोगों की निजी जिंदगी की गोपनीयता खत्म ही हो जाएगी। इस सिलसिले में यह याद रखने की जरूरत है कि यूपीए सरकार के वक्त जब आधार कार्ड पर काम शुरू हुआ तो भाजपा ने ही उसका सबसे अधिक विरोध किया था, और मोदी सरकार बनने के बाद आधार कार्ड योजना के मुखिया नंदन निलेकेणि से एक मुलाकात के बाद ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच बदल गई थी, और उन्होंने आधार कार्ड को बढ़ावा देने के लिए पूरी ताकत लगा दी।

हमारा मानना है कि आज सरकार और कारोबार, इन दोनों ही जगहों में आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर जितने तरह की गलतफहमी फैली हुई है, उसे देखते हुए केन्द्र सरकार को ही यह खुलासा करना होगा कि किसी भी बुनियादी जरूरत के लिए, किसी भी इलाज के लिए, किसी भी सफर के लिए आधार कार्ड को मुद्दा नहीं बनाया जाएगा, और लोगों के इलाज के हक, जिंदा रहने के हक, खाने के हक के ऊपर आधार कार्ड बिल्कुल भी लागू नहीं होगा। अगर केन्द्र सरकार, और राज्य सरकारें ऐसा खुलासा नहीं करती हैं, तो इससे सबसे गरीब और सबसे बेबस जनता का सबसे बड़ा नुकसान होगा। आज तो कारगिल के एक शहीद की पत्नी की बेइलाज मौत की वजह से हम इस पर लिख रहे हैं, लेकिन पिछले महीनों में जगह-जगह से ऐसी खबरें सामने आई हैं कि कुष्ठ रोगियों की गली हुई उंगलियों की वजह से उनके निशान नहीं लिए जा सकते, उनके आधार कार्ड नहीं बन पा रहे हैं, और जगह-जगह उनको बिना राशन रहना पड़ रहा है। हमारा बड़ा साफ मानना है कि चाहे सौ लोग बिना आधार कार्ड कोई रियायत पा जाएं, लेकिन आधार कार्ड की कमी से किसी एक जरूरतमंद को भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए। आधार कार्ड को लेकर दो बिल्कुल अलग-अलग पहलू हैं, एक तो जिंदगी की निजता और गोपनीयता की बात है, और दूसरी बात लोगों के न्यूनतम बुनियादी हक और जरूरत की है। अगर सरकारों को आधार की अनिवार्यता की ऐसी हड़बड़ी है, तो सुप्रीम कोर्ट को एक कड़ा रूख दिखाते हुए पूरे देश में एकदम बुनियादी बातों के लिए आधार को एकदम ही गैरअनिवार्य घोषित करना चाहिए। इस काम में कोई भी देरी सबसे कमजोर तबके के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने से कम और कुछ नहीं होगा।

आधार कार्ड के खिलाफ जो सबसे बड़ा तर्क है वह यह कि रेलवे रिजर्वेशन से लेकर सरकारी काम तक, राशन से लेकर इलाज तक, जन्म से लेकर मौत तक सरकार जिस तरह इसे अनिवार्य कर रही है, उससे सरकार के हाथ में लोगों की निजी जिंदगी की हर जानकारी रहेगी। और आज फेसबुक और वॉट्सऐप पर निजता खत्म करने को लेकर जितने किस्म के लतीफे चल रहे हैं, उनसे कहीं अधिक हकीकत के खतरे हिन्दुस्तानी आबादी पर टंगे रहेंगे, अगर वे कोरोना से बच जाएंगे तो।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news