राजपथ - जनपथ
फूलो देवी के हटने की वजह
महिला कांग्रेस की अध्यक्ष फूलोदेवी नेताम ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपना इस्तीफा महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष को भेजा है। वो पिछले सात साल से अध्यक्ष पद पर थीं, और इस्तीफे की वजह भी यही बताई है। मगर कई और कारण गिनाए जा रहे हैं।
राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम के इस्तीफे के संकेत उस वक्त मिलने लग गए थे जब प्रदेश प्रभारी सैलजा ने कुछ दिन पहले फूलोदेवी, और अन्य मोर्चा संगठनों के अध्यक्षों के साथ वन टू वन मीटिंग की थी। चर्चा है कि सैलजा ने किसी विषय को लेकर उन पर नाराजगी जताई थी।
यही नहीं, फूलोदेवी, और नए प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के बीच बेहतर तालमेल नहीं रहा है। ऐसे में फूलोदेवी को हटाए जाने की चर्चा थी। इससे पहले ही उन्होंने पद छोड़ दिया। अब कुछ और विभागाध्यक्षों को बदले जाने की चर्चा है। देखना है कि पार्टी संगठन में क्या कुछ बदलाव होता है।
सेहत और जेब दोनों के लिए महंगी
11 जुलाई को कोरबा जिले के कटघोरा इलाके के गंगदेई गांव में जंगली पुट्टू या मशरूम खाने से 7 लोगों की तबीयत खराब हो गई। 4 जुलाई को सरगुजा के मैनपाट ब्लॉक के परपटिया मैं जंगली पुटू खाकर एक मांझी परिवार के 4 लोग बीमार हो गए, जिनमें दो बच्चे थे। जशपुर जिले के बगीचा ब्लॉक के चलनी गांव के एक सामाजिक कार्यक्रम में जंगली मशरूम परोसा गया। इसे खाने के बाद 15 लोग बीमार पड़ गए। दो महिलाओं की स्थिति गंभीर हो चुकी थी हालांकि सभी बचा लिए गए।
छत्तीसगढ़ में हर साल बारिश के दिनों में ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। अपने आप उगने वाली खुखड़ी, कुकुरमुत्ता या पुट्टू लोग बड़ी मेहनत से जंगल या बाड़ी से उखाडक़र बाजार लाते हैं। इसकी मांग कितनी अधिक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन दिनों यह एक हजार रुपए से 1200 तक किलो के भाव बिक रहा है। दूसरी तरफ प्रदेश में करीब 28 प्रकार खुखड़ी ही खाने योग्य है। बाकी में जहरीला एल्कलाइट होता है। लोग बिना पहचान किए आसमान छूते दाम के बावजूद इसका सेवन करते हैं और अपनी जान जोखिम में डालते हैं। इसकी पहचान आसान भी नहीं है। सामान्य तौर पर यह कहा जाता ह कि रंगीन पुट्टु नहीं खाना चाहिए। सफेद पुट्टू में जहर होने की आशंका कम होती है। इधर, याद नहीं आता कि बाजारों में बिक्री के लिए आने वाले पुटू पर नजर रखने के लिए खाद्य विभाग, स्वास्थ्य विभाग या सरकार की कोई मशीनरी लगी हो। सन् 2016 में मैनपाट में जहरीला पुट्टू खाने से 23 लोगों की एक के बाद एक मौत हो गई थी। सतर्कता नहीं बरती गई तो ऐसी दुर्घटनाएं फिर हो सकती हैं।
तीन माह के शावक तेंदुआ की मौत
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में लाए गए चीतों की लगातार मौत हो रही है। मान लें कि वहां देखभाल में कोई कमी नहीं बरती जा रही होगी, तब भी ऐसी नौबत आ रही हो।
इधर अपने छत्तीसगढ़ के बस्तर में राशन ढोने वाले एक ट्रक में तेंदुए का बच्चा जून माह में मिला। बस्तर में उसे उतारा गया था। कहा गया कि वह डेढ़ सौ किलोमीटर दूर से ट्रक पर बैठकर आया है। उसके कमर में चोट थी। पशु चिकित्सालय जगदलपुर के डॉक्टरों ने उसे स्वस्थ बताकर रायपुर जंगल सफारी में छोडऩे की अनुशंसा कर दी। इस तीन महीने के शावक की बीते सप्ताह मौत हो गई। यानि जगदलपुर पशु चिकित्सकों ने अपनी बला टालकर इसे रायपुर के जंगल सफारी में भेज दिया। यहां पर भी उनकी देखभाल हुई नहीं।
प्रदेश के चिडिय़ाघरों और वन महकमें में वन्यप्राणियों के विशेषज्ञ चिकित्सकों की बड़ी कमी है। जगदलपुर की तरह ही प्राय: पालतू जानवरों का इलाज करने वाले डॉक्टर ही वन्यप्राणियों का इलाज करते हैं। छत्तीसगढ़ के अनेक अभयारण्यों से घायल वन्य प्राणी रेस्क्यू किये जाते हैं इनमें से कई की मौत हो जाती है। तब सवाल उठता है कि उनकी जान बचाई भी तो जा सकती थी।
हिंसा प्रभावित बच्चों की नाराजगी
प्रदेश के कुछ प्रयास आवासीय विद्यालय हैं, जिनमें नक्सल हिंसा से प्रभावित बच्चों की प्रतिभा को उड़ान मिलती है। ऐसा एक विद्यालय राजधानी रायपुर के सड्डू में संचालित है। सन् 2021 के जेईई एडवांस में जब पूरे प्रदेश के प्रयास विद्यालयों के 53 छात्रों का चयन हुआ था, तो उनमें से 44 इसी विद्यालय से थे। सफलता पर मुख्यमंत्री और तब के शिक्षा मंत्री ने बधाई दी थी। कड़ी मेहनत कर बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता का परचम लहराने वाले बच्चों के आवास, भोजन और कोचिंग की व्यवस्था इस नतीजे के बाद और अच्छी कर दी जानी थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि स्थिति बदतर होती जा रही है। कोचिंग संस्थानों से आने वाले शिक्षकों को तीन-तीन माह तक वेतन भुगतान नहीं होता। वे कोचिंग बीच में छोडक़र चले जाते हैं। फिर कोई नया शिक्षक लाया जाता है तो उनके साथ नए सिरे से तालमेल बिठाना होता है। हॉस्टल की कैंटीन का टेंडर ही नहीं हुआ है, एक स्टाफ को ही जिम्मेदारी दे दी गई है। खाना घटिया है। विद्यालय अनुसूचित जनजाति विकास विभाग की ओर से संचालित है, जहां करोड़ों का बजट है, जिसकी मॉनिटरिंग नहीं होती। समस्या संवेदनशील हिंसा प्रभावित बच्चों की है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को संवारने की कोशिश कर रहे हैं।
कल बुधवार को इन परेशान बच्चों को सडक़ पर उतरना पड़ा। सड्डू विधानसभा के करीब ही है, कई माननीयों के आने-जाने का रास्ता भी है। पता नहीं उन्होंने इन बच्चों को तख्तियां लेकर प्रदर्शन करते हुए देखा या नहीं। यहां दिखाई गई तस्वीर 2021 की है, जब यहां के छात्रों ने जेईई मेंस में रिकॉर्ड तोड़ कामयाबी हासिल की थी।