राजपथ - जनपथ
भाजपा के नए-पुराने
चर्चा है कि प्रदेश भाजपा के कुछ प्रमुख पदाधिकारियों को बदला जा सकता है। इसका अंदाजा उस वक्त लगा, जब केन्द्रीय नेतृत्व ने प्रबंधन से जुड़े विषय पर चर्चा के लिए संबंधित पदाधिकारियों को बुलाया। यही नहीं, पार्टी नेतृत्व ने प्रदेश के एक-दो और नेताओं को भी अपनी तरफ से आमंत्रित किया था, जिसका संबंधित काम से लेना देना नहीं था। इसके बाद से दो-तीन प्रमुख पदाधिकारियों को बदले जाने की अटकलें तेज हो गई है।
पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए 16 समितियां बनाई हैं। इन समितियों में उन नेताओं को विशेष जिम्मेदारी दी गई है, जो कि अरुण साव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से हाशिए पर चले गए थे। हालांकि ये नियुक्तियां साव की पसंद पर ही की गई है। साव ने अध्यक्ष बनने के बाद नए चेहरों को आगे तो लाया है, लेकिन वो अब तक के कामकाज में अपेक्षाकृत खरे नहीं उतर पा रहे थे। ऐसे में चुनाव के चलते एक बार अनुभवी नेताओं पर ही भरोसा जताया गया है। देखना है कि आगे क्या कुछ बदलाव होता है।
सिंहदेव से अब उम्मीद नहीं
टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने से भाजपा की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है। सिंहदेव नाराज चल रहे थे, और उन्होंने संकेत दे दिए थे कि वो विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। इससे भाजपा के रणनीतिकारों को विशेषकर सरगुजा संभाग में बड़े फायदे की उम्मीद थी। लेकिन समय रहते कांग्रेस हाईकमान ने सिंहदेव को मना लिया।
हालांकि भाजपा के रणनीतिकारों ने अभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है, और चर्चा है कि उन्होंने केंद्रीय विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को सिंहदेव से बात करने की जिम्मेदारी दी है। सिंहदेव की सिंधिया से पिछले दिनों मुलाकात भी हुई। मुलाकात की तस्वीरें मीडिया में भी आई।
यह कहा गया कि सिंहदेव की सिंधिया से अंबिकापुर एयरपोर्ट के विस्तार के मसले पर बात हुई है। मगर दोनों महाराजाओं की अकेले में सिर्फ सरकारी विषयों पर बात हुई होगी, यह कई लोगों को हजम नहीं हो रहा है, लेकिन जिस तरह सिंहदेव भाजपा के खिलाफ मुखर हो गए हैं, और सरकारी कामकाज में रूचि ले रहे हैं उससे तो यह दिखने लगा है कि सिंधिया अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पाए हैं। राजनीति में आगे क्या कुछ होगा, यह कहा नहीं जा सकता।
साय को पहले से पता था...
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा के सीनियर नेताओं के साथ बंद कमरे में चर्चा की। बैठक के बाद बाहर निकलकर आए नेताओं ने कोई अधिकारिक बयान नहीं दिया। एक चर्चा इस बात की होती रही कि जब तमाम वरिष्ठ नेता बैठक में थे तो पार्टी के एक प्रमुख आदिवासी नेता ननकीराम कंवर को क्यों बाहर रखा गया? फिर भाजपा के ही सूत्रों ने साफ किया कि 75 से अधिक उम्र वाले नेताओं को ‘मार्गदर्शक’ के रूप में ही रखा जाएगा। यही वजह है कि भाजपा में रहते हुए नंदकुमार साय की भी नहीं सुनी जा रही थी। यदि यह फॉर्मूला विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में भी लागू किया गया तो कंवर की टिकट भी खतरे में पड़ सकती है। साय को इसकी भनक लग गई थी कि पार्टी अब उनकी जरूरत महसूस नहीं कर रही है। वे कांग्रेस में आ गए। उन्हें कुछ ही समय बाद केबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिल गया। वे इच्छा जाहिर कर चुके हैं कि वे जशपुर या रायगढ़ की किसी सीट से चुनाव भी लडऩा चाहते हैं।
घर के जोगी...,आन गांव के सिद्ध
दिसंबर 2012 में विधानसभा में तब के संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने मो. अकबर के सवाल पर बताया था कि राज्य स्थापना दिवस समारोह में करीना कपूर को 8 मिनट के डांस परफॉर्मेंस के लिए 1.40 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। बाद में इस जवाब को कांग्रेस ने मुद्दा बनाया था और कहा था कि सरकार आने पर हम छत्तीसगढ़ी कलाकारों को प्रोत्साहित करेंगे।
इधर बीते एक से तीन जून तक रायगढ़ में रामायण मेला रखा गया था। छत्तीसगढ़ के अलावा देश के कुछ प्रसिद्ध कलाकार भी पहुंचे। इन कलाकारों को किए गए भुगतान का ब्यौरा देखने से पता चलता है कि बाहरी कलाकारों को फीस के भुगतान में दरियादिली दिखाई गई लेकिन छत्तीसगढ़ के कलाकारों के हाथ मामूली रकम ही लगी। सबसे महंगे कुमार विश्वास थे, जिन्हें कलाकारों पर खर्च की गई कुल राशि का 40 प्रतिशत अकेले ही मिल गया। पिछले दिनों विधानसभा में जो जानकारी दी गई उसके मुताबिक सन्मुख प्रिया-शरद शर्मा को 16.50 लाख रुपये, लखबीर सिंह लक्खा को 18.50 लाख रुपये, हंसराज रघुवंशी को 27.50 लाख रुपये, मैथिली ठाकुर को 15.93 लाख रुपये तथा कुमार विश्वास को 60 लाख रुपये का भुगतान किया गया। ये सब छत्तीसगढ़ से बाहर के कलाकार हैं।
अब छत्तीसगढ़ के कलाकारों को किए गए भुगतान को देखें- दिलीप षडंगी को एक लाख 13 हजार रुपये, देवेश शर्मा को 79 हजार तथा गुलाराम रामनामी को 33 हजार रुपये।
छत्तीसगढ़ के कलाकारों को कुल 2.25 लाख रुपये मिले। यह रकम राज्य के बाहर से आमंत्रित सबसे कम भुगतान पाने वाली अकेले मैथिली ठाकुर या लखबीर सिंह लक्खा को दी गई रकम का छठवां हिस्सा भी नहीं है।
विधानसभा के जवाब में यह भी बताया गया कि सभी कलाकारों को भुगतान किया जा चुका है। भ्रष्टाचार या अनियमितता की इसमें कोई शिकायत नहीं आई है।
माना जा सकता है कि ख्यातिनाम कलाकारों की फीस ऊंची हो सकती है, पर यही फीस देनी है यह कैसे तय की जाती है? क्या उनका कोई रेट लिस्ट है? कलाकारों को बुक करने के लिए किस एजेंसी की सेवा ली गई? क्या सरकारी नुमाइंदों ने खुद ही बात की? कुमार विश्वास पर एकमुश्त 60 लाख रुपये खर्च करने का सुझाव किसका था? गुलाराम रामनामी को केवल 33 हजार मिलना चाहिए, यह भी कैसे तय किया गया?
बाहरी कलाकारों के प्रति ऐसा लगाव राज्य स्थापना दिवस के कार्यक्रमों में भी दिखाई दे रहा है। उनमें भी बड़ी रकम खर्च की जा रही है और स्थानीय कलाकार उपेक्षित हैं। बुलाया भी जाता है तो फीस के भुगतान में इसी तरह भेदभाव होता है। मंच प्रस्तुति का वक्त गुजर जाने के बाद छत्तीसगढ़ के कई कलाकार आर्थिक तंगी से गुजरने लगते हैं। इसकी खबरें निकलकर भी आती रहती है। लगे हाथ जानकारी हो कि छत्तीसगढ़ सरकार के इस बार अंतरराष्ट्रीय रामायण मेला के लिए बजट में 12 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
बस्तर बंद को लखमा का समर्थन
मणिपुर मामले में केंद्र सरकार के रवैये के विरोध में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने प्रदर्शन और ज्ञापन कार्यक्रम तो रखा लेकिन सर्व आदिवासी समाज (एसएएस) इन दोनों से आगे निकल गया। बस्तर बंद का उसने आह्वान 24 जुलाई को खास इसी मुद्दे पर किया था लेकिन इसी बहाने से उसे शक्ति प्रदर्शन का मौका मिल गया। अधिकांश शहरों में चेंबर ऑफ कॉमर्स और अन्य व्यापारिक संगठनों ने समर्थन दे दिया था, जिससे बंद को सफलता मिल गई। सर्व आदिवासी समाज बस्तर की सभी सीटों से चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुका है। इससे भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर की स्थिति में फर्क देखने को मिल सकता है। कांग्रेस को चिंता है कि कहीं इसकी उपस्थिति के चलते उसे कोई सीट उसे खोनी न पड़ जाए। उप-चुनावों के बाद तो अब यहां की सभी सीटें उसके पास आ चुकी है। वहीं भाजपा भी पिछला परिणाम दोहराना नहीं चाहती। पर एसएएस की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से उसका भी समीकरण बिगड़ सकता है। बंद के दौरान बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग सडक़ पर उतरे। आबकारी मंत्री कवासी लखमा की नजर इस बात पर थी। उन्होंने सर्व आदिवासी समाज के बंद के आह्वान को मौके की नजाकत को देखते हुए समर्थन कर दिया। मगर, प्रदेश में कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह नहीं सूझा कि मणिपुर को लेकर बंद जैसा कोई बड़ा विरोध प्रदर्शन करे और अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी भाजपा को कटघरे में खड़ा सके। एसएएस ने इसमें बाजी मार ली। ([email protected])