राजपथ - जनपथ
गुरु को रिझाने में लगी भाजपा
प्रदेश के समाज विशेष के एक गुरु पर भाजपा की नजर है। पिछले दिनों एक पूर्व मंत्री उनसे मिलने भी गए थे। पूर्व मंत्री, गुरुजी से मोदी सरकार के 9 साल के कामकाज का ब्यौरा देने के बहाने मिलने गए थे। उन्होंने कुछ किताबें भी भेंट की। इस मुलाकात में ज्यादा कुछ बातचीत नहीं हुई, लेकिन चर्चा है कि पार्टी के कुछ और नेता गुरुजी को अपने संगठन के बैनर तले प्रत्याशी उतारने के लिए राजी करने में जुट गए हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि गुरुजी अपने समाज के प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारते हैं, तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। कुछ इस तरह का प्रयोग पहले भी हो चुका है, और यह काफी सफल भी रहा। भाजपा को वर्ष-2013 के चुनाव में गुरुजी के संगठन के प्रत्याशियों के चलते दर्जनभर सीटों पर फायदा हुआ था। मगर इस बार गुरुजी का क्या रुख होगा, यह अब तक सामने नहीं आया है। देखना है कि आगे क्या होता है।
लेन-देन की रिकॉर्डिंग
ट्रांसफर-पोस्टिंग में लेनदेन की खबरें आती रही है। मगर एक केस में लेनदेन को लेकर कुछ ऐसा हुआ है जिसकी चर्चा राजनीतिक गलियारें में हो रही है। बताते हैं कि दल विशेष के एक प्रमुख पदाधिकारी ने शिक्षाकर्मी (सहायक शिक्षक) का तबादला कराने के नाम पर तीन लाख रुपए ले लिए। भुगतान दो किश्तों में हुआ। एक लाख रुपए तो चेक से दिए गए।
चर्चा है कि पैसे लेने के बावजूद पदाधिकारी, शिक्षाकर्मी का ट्रांसफर नहीं करा पाए। शिक्षाकर्मी ने रकम वापस करने के लिए पदाधिकारी पर दबाव बना रहे हैं। मगर पदाधिकारी उन्हें टालते जा रहे हैं। इसी बीच लेनदेन का सारा रिकॉर्ड, और शिक्षाकर्मी व पदाधिकारी की बातचीत का रिकॉर्ड कुछ और लोगों तक पहुंच गया है। अब यह मामला देर सवेर तूल पकड़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
एक कांवड़ यात्रा यह भी
इन 75 सालों में देश ने कितनी तरक्की कर ली। अपने छत्तीसगढ़ में भी कई शहर महानगरों की तरह बढ़ गए। बस्तर के भी कई शहरों में चमचमाती सडक़, शॉपिंग मॉल और लोगों के पास महंगी गाडिय़ां हैं। पर वहीं कुछ तस्वीरें इन्हें चिढ़ाती हुई भी दिखाई देती है। नारायणपुर के अबूझमाड़ इलाके के कई गांवों में नाम की सडक़ है। ये ग्रामीण यदि एंबुलेंस को फोन करते तब भी वह गांव तक नहीं पहुंच पाती। इसलिए पांच किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग तक कांवड़ में उठाकर पहुंचाया गया। बस्तर के उन इलाकों में जहां चार चक्कों वाली एंबुलेंस नहीं जा सकती, उसके लिए बाइक एंबुलेंस की सेवा शुरू गई थी। पर पिछले दिनों खबर आई थी कि उनमें से अधिकांश अब कबाड़ हो चुकी हैं।
स्कूलों में लटकते ताले
बस्तर के केशकाल के एक ग्राम पंचायत कलेपाल की प्रायमरी स्कूल में दूसरे स्कूलों की तरह शाला प्रवेशोत्सव मनाया गया। मगर शिक्षक उसी दिन दिखे, उसके बाद कोई नहीं पहुंचा। बच्चे रोजाना तैयार होकर, कापी किताब लेकर स्कूल पहुंच रहे हैं लेकिन शिक्षक गायब हैं। बच्चे रोज कतार में खड़े होकर राष्ट्रगान गाते हैं। मध्यान्ह भोजन कर लेते हैं और लौट जाते हैं। 24 जुलाई को इन्होंने फिर शिक्षकों का इंतजार किया, नहीं आए तो स्कूल के गेट पर ताला जड़ दिया। धमतरी जिले के कुरुद ब्लॉक के शासकीय हायर सेंकेडरी स्कूल बारना में हिंदी, भूगोल, रसायन और वाणिज्य में एडमिशन तो दिया गया है लेकिन इन विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं। उन्होंने ज्ञापन देकर 17 जुलाई तक शिक्षकों की व्यवस्था करने की मांग कलेक्टर से की थी। नहीं हुई तो 18 जुलाई को उन्होंने स्कूल में ताला लगा दिया। बलौदाबाजार जिले के पलारी ब्लॉक के वन ग्राम धमनी में एकमात्र शिक्षक थे, जिनका तबादला कर दिया। अभिभावकों के साथ बच्चों ने गेट में ताला जड़ दिया और धरने पर बैठ गए। मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-बैकुंठपुर जिले के खडग़वां ब्लॉक के बसेलपुर में एक अंधविश्वास के चलते ताला बंद है। दो साल के भीतर अलग-अलग वजह से यहां के पांच शिक्षकों की असामयिक मौत हो गई। इसके बाद यहां कोई शिक्षक आना नहीं चाहता। यहां की पढ़ाई भी ठप है। ये बस कुछ उदाहरण हैं जो छात्रों-पालकों की शिकायत के बाद मीडिया के जरिये सामने आ गए हैं। बहुत से और भी स्कूल हो सकते हैं, जो बमुश्किल सिर्फ मिड-डे मील के लिए खुलता होगा। एक तरफ स्वामी आत्मानंद आदर्श अंग्रेजी विद्यालयों का प्रदेश में डंका बज रहा है दूसरी तरफ सैकड़ों स्कूल हैं जहां बेसिक जरूरतों की भी परवाह नहीं की जा रही है। दूसरी ओर डीएड बीएड डिग्री धारी बेरोजगार रोजाना ट्वीट कर सरकार से मांग कर रहे हैं कि 57 हजार से अधिक शिक्षकों के खाली पदों पर भर्ती शुरू की जाए। अगस्त के पहले सप्ताह में इन्होंने राजधानी पहुंचकर आंदोलन करने की योजना भी बनाई है।
नियमित करने का साइड इफेक्ट
ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि संविदा और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के लगातार आंदोलन के बाद सरकार ने इनकी नियमित नियुक्ति के लिए मन बना लिया है। एक तरफ आंदोलनकारी कर्मचारियों पर एस्मा लगाया गया है दूसरी तरफ जिन विभागों से अभी तक नियुक्तियों और रिक्तियों की जानकारी नहीं मिली है, उन्हें एक सप्ताह के भीतर ब्यौरा देने कहा गया है। सरकार के बचे 100 दिनों में आगे की प्रक्रिया पूरी हो पाएगी या नहीं, यह देखना होगा लेकिन प्रक्रिया इतने आगे तक जरूर बढ़ा ली जाएगी कि आंदोलनरत कर्मचारियों की उम्मीद बांधकर रखी जा सके। शासन के करीब 47 विभागों में 87 हजार से अधिक कर्मचारी हैं जो दैनिक वेतनभोगी और संविदा पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा प्लेसमेंट तथा दैनिक श्रमिक भी हैं।
संविदा और दैनिक वेतनभोगी संबंधित विभागों में जरूरत के मुताबिक रख लिए जाते हैं। सरकार जो सूची बना रही है, उसमें 2004 से 2018 तक के कर्मचारी शामिल किए जा रहे हैं। ये कर्मचारी कार्यालयों को चलाने में बहुत काम आते हैं। कोविड काल में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। पर ये किसी प्रतियोगी प्रतियोगिता के माध्यम से नहीं आए हैं। इन्हें उस प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ा है जो नियमित भर्ती में करनी पड़ती है। संविदा को नियमित करने से मिलने वाला राजनीतिक लाभ अपनी जगह है, पर कई युवाओं का मानना है कि इससे सीधे-सीधे नियमित भर्ती वाले हजारों पद विभिन्न विभागों मे कम हो जाएंगे। पर कम होंगे, बेरोजगारों के बीच प्रतिस्पर्धा और बढ़ेगी।