राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : नांदगांव पहले भी रहा आईजी रेंज
28-Jul-2023 4:19 PM
	 राजपथ-जनपथ : नांदगांव पहले भी रहा आईजी रेंज

नांदगांव पहले भी रहा आईजी रेंज

छत्तीसगढ़ सरकार ने डीआईजी रेंज रहे राजनांदगांव को आईजी रेंज में अपग्रेड कर प्रशासनिक कसावट पर जोर दिया है। आईजी की तैनाती के लिए प्रशासनिक और भौगोलिक परिस्थितियों के अलावा राजनांदगांव का एक पुराना इतिहास भी रहा है। यह पहला मौका नही है जब राजनांदगांव को आईजी रेंज का दर्जा मिला। अविभाजित मध्यप्रदेश में राजनांदगांव 90 के दशक में आईजी रेंज रहा। उस वक्त एसएस बरवड़े बतौर आईजी आखिरी पुलिस अफसर थे। बढ़ती नक्सल समस्या के मद्धेनजर तत्कालीन दिग्विजय सिंह की सरकार ने राजनांदगांव में आईजी कार्यालय की शुरूआत कर बालाघाट और मंडला तक रेंज की सीमा तय कर दी थी। छत्तीसगढ़ गठन के बाद आईजी रेंज खत्म कर दिया गया।

इस बार राज्य में नए जिलों और आईजी स्तर के अफसरों की बढ़ती तादाद से राजनांदगांव को आईजी रेंज बनाना प्रमुख वजह बनी। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में राजनांदगांव में डीआईजी पदस्थ होते रहे। नए जिलों के निर्माण से मौजूदा सभी रेंज के आईजी पर प्रशासनिक कामकाज का काफी दबाव था। सुनते है कि सरकार बस्तर और बिलासपुर आईजी के बंटवारें पर भी विचार कर सकती है। रायगढ़ में डीआईजी की पोस्टिंग को इसका शुरूआती रूप माना जा रहा है। बस्तर के सात जिलों का भारी भरकम प्रभार संभालना हमेशा से आईजी के लिए मानसिक तनाव भरा रहा है। कांकेर को आईजी रेंज बनाने की चर्चा आईपीएस बिरादरी की जुबां पर है। 

नांदगांव में दोबारा आईजी मुख्यालय का दफ्तर खोलकर सरकार ने 2005 बैच के आरआर आईपीएस राहुल भगत की पोस्टिंग कर दी। वैसे भगत इस रेंज के अधीन कवर्धा जिलें की पुलिस कप्तानी कर चुके है। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि रेंज की सभी चारों जिलें में आरआर के एसपी के ओहदे पर है। 

शोर के बीच एक खामोश विधेयक

मणिपुर मुद्दे पर संसद में हो रहे लगातार हंगामे के बीच छत्तीसगढ़ के विभिन्न समुदायों, विशेषकर आदिवासियों और प्राकृतिक संसाधनों से सरोकार रखने वाला एक महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में पास हो गया। बीते 26 जुलाई को केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंदर यादव ने वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 को लोकसभा में पेश किया और इसे बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया। विधेयक में दावा किया गया है कि इस कानून के बन जाने से कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा। इस विधेयक का मसौदा सार्वजनिक कर सुझाव मांगे जाने के बाद पर्यावरण के संरक्षण के लिए तथा अंधाधुंध खनिज संसाधनों के दोहन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे छत्तीसगढ़ के करीब दो दर्जन संगठनों ने अनेक प्रावधानों पर आपत्ती जताई थी और संयुक्त संसदीय समिति को सुझाव भेजा था। देशभर से भी सैकड़ों आपत्तियां पहुंची। पर संसदीय समिति ने किसी भी बदलाव के बगैर विधेयक को उसके मूल स्वरूप में लोकसभा में पेश किया और बिना किसी विवाद, बहस के वह पारित भी हो गया। 

इन संगठनों का सुझाव काफी विस्तृत था लेकिन मोटे तौर पर नए विधेयक के जरिए जो परिस्थितियां बनेंगी वह यह है कि वनों को संरक्षित करने, प्रबंधन करने और उसकी रक्षा करने का अधिकार स्थानीय समुदायों के हाथ से छिन जाएगा। केंद्र सरकार की शक्तियां बढ़ा दी गई है कि वह किसी व्यक्ति या संस्था को वन भूमि हस्तांतरित कर सके। फॉरेस्ट क्लीयरेंस में भी अनेक प्रकार की छूट दे दी गई है। अब कई तरह की परियोजनाओं को पर्यावरणीय प्रभावों के लिए जनसुनवाई कराने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। गैर वन गतिविधियों का दायरा बढ़ा दिया गया है, जिसके बाद वनों में बाहरी दखलअंदाजी बढ़ेगी। पेसा कानून और एफआरए से जो संरक्षण आदिवासियों को अपनी भूमि पर मिला हुआ है, नए विधेयक के कानून बन जाने के बाद वे हाशिए पर चले जाएंगे।  

जब यह विधेयक संसद में पेश किया गया तो कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल प्रधानमंत्री को सदन में बुलाने की मांग पर प्रदर्शन कर रहे थे। ऐसा पहले भी हुआ है कि महत्वपूर्ण विधेयक पास हो गए और सदन में उस पर कोई चर्चा ही नहीं हुई। अब इस विधेयक को यदि राज्यसभा की भी मंजूरी मिल जाती है तो कानून बन जाएगा। आशंका यही है कि करीब 40 फ़ीसदी वन क्षेत्र वाले छत्तीसगढ़ के संसाधनों के दोहन को नया कानून आसान कर देगा और पर्यावरण जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए संघर्ष कर अपनी बात मनवाना और कठिन हो जाएगा।

मिलता-जुलता रेल हादसा

बिलासपुर से रायगढ़ जा रही खाली मालगाड़ी के डिब्बे जिस तरह बेपटरी होने के बाद उछलकर गिरे वह किसी बड़े हादसे को अंजाम दे सकता था। इसकी तुलना बालासोर रेल हादसे से लोग कर रहे हैं। माल गाडिय़ों का भरी हो या खाली, ट्रैक से उतर जाना एक सामान्य घटना है। कई बार इसकी चर्चा भी नहीं होती। मुंबई हावड़ा रूट बड़ी व्यस्त रेल लाइन है। इतनी व्यस्त कि यहां क्षमता के मुकाबले 110 प्रतिशत ट्रेनों को दौड़ाया जाता है, उसके बावजूद यात्री ट्रेनों को ग्रीन सिग्नल नहीं मिलता और घंटों विलंब से चलाना पड़ता है। अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि इस दौरान दूसरे और तीसरे ट्रैक पर इस दौरान कोई यात्री ट्रेन गुजर रही होती तो कितना बड़ा हादसा हो जाता। रेलवे के अफसर बताते हैं कि ट्रैक छोडक़र मालगाड़ी के डिब्बों का दूसरी तीसरी लाइनों में जाकर गिर जाना, अमूमन देखा नहीं गया है। अभी जो शुरुआती जानकारी आई है उसके मुताबिक करीब दो किलोमीटर पहले से ही डिब्बे लडख़ड़ाते हुए पटरी पर दौड़ रहे थे। अकलतरा स्टेशन पर एक कर्मचारी ने सूझबूझ दिखाते हुए लाल झंडी दिखाई और मालगाड़ी रोकी। 

बालासोर रेल हादसे के बाद रेलवे बोर्ड ने एक एडवाइजरी सभी जोन में भेजकर कहा था कि लोको पायलटों से 24 घंटे से अधिक काम ना लिया जाए। लोको पायलटों ने यह भी बयान दिया था कि इसके बावजूद उनको कई-कई दिन तक चलने के लिए मजबूर किया जाता है। क्या बहुत ज्यादा ओवरटाइम ड्यूटी भी बढ़ते हादसों का कारण बन रहा है?

गंगरेल में मदिरालय

गंगरेल बांध छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।यहां लोग दोस्तों और परिवार के साथ घूमने के लिए आते हैं। सैर-सपाटा, पिकनिक करके लौटते हैं। कई परिवार रिसोर्ट में ठहरते भी हैं। शायद अब प्रशासन को इस खूबसूरत वादी में मौज मस्ती का सामान अधूरा लग रहा है, इसीलिए यहां अब एक बार और शराब दुकान खोलने का निर्णय लिया गया है। ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है। उनका कहना है कि यहां पहुंचने वाले लोग केवल बांध घूमने के लिए नहीं बल्कि अंगारमोती माता का दर्शन करने के लिए भी आते हैं। परिवार सहित लोग निश्चिंत होकर इस पर्यटन स्थल पर इसीलिए आ जाते हैं क्योंकि यहां शराब पीकर उत्पात मचाने की घटनाएं बहुत कम हैं। 
देखा जाए, प्रशासन ग्रामीणों की मांग पर क्या फैसला लेता है। शराब की सुविधा यहां के पर्यटन को और पॉपुलर करेगा या आने वालों को निराश।

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