राजपथ - जनपथ
टीम नड्डा में छत्तीसगढ़ का दबदबा
भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ को प्रतिनिधित्व दिया गया है, उतना पहले कभी नहीं मिला। पूर्व सीएम रमन सिंह, सरोज पांडेय, और लता उसेंडी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। यही नहीं, छत्तीसगढ़ में लंबे समय तक काम कर चुके सौदान सिंह को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है।
हालांकि सौदान सिंह को मध्यप्रदेश के कोटे से लिया गया है। मगर सौदान सिंह की छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन में सबसे ज्यादा पकड़ मानी जाती है। इससे पहले धरमलाल कौशिक, और विष्णुदेव साय भी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह पा चुके हैं। पवन साय, और बृजमोहन अग्रवाल विशेष आमंत्रित सदस्य हैं ही। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश से ज्यादा महत्व संगठन में छत्तीसगढ़ के नेताओं को मिला है। अब इसका चुनाव में कितना फायदा मिलता है यह देखना है।
रेणुका सिंह की शिकायत
खबर है कि केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह के खिलाफ स्थानीय भाजपा नेता मुखर हो रहे हैं। पिछले दिनों पार्टी के सहप्रभारी नितिन नबीन सरगुजा दौरे पर थे, तो कई नेताओं ने रेणुका के खिलाफ खुलकर शिकायतें की।
शिकायतकर्ता नेताओं का कहना था कि रेणुका सिंह फोन तक नहीं उठाती है। ऐसे में किसी भी समस्या से उन्हें अवगत कराने का कोई मतलब नहीं है। यही नहीं, दो-तीन दिन पहले अंबिकापुर में पार्टी की एक प्रेस कांफ्रेंस का स्थानीय मीडिया ने बहिष्कार कर दिया।
उस समय भी बात आई कि मीडिया के विज्ञापन का बिल का पार्टी नेताओं ने भुगतान नहीं किया है। चर्चा है कि बिल के भुगतान की जिम्मेदारी रेणुका सिंह के ऑफिस पर थी। इस मामले की शिकायत भी सहप्रभारी तक पहुंची है। कहा जा रहा है कि तमाम शिकायतों को लेकर नितिन नबीन और अन्य नेताओं ने रेणुका सिंह से बात भी की है। अब शिकायतें दूर होती है या नहीं, यह देखना है।
सरकारी काम निजी भुगतान
तेलीबांधा से वीआईपी रोड तक सौंदर्यीकरण का पेंच अभी तक सुलझ नहीं पाया है। विधानसभा के आखिरी सत्र में बृजमोहन अग्रवाल के सवाल के जवाब में नगरीय प्रशासन मंत्री ने रोचक अंदाज में जवाब दिया कि सौंदर्यीकरण-सड? निर्माण का काम किसने किया है, यह हमें नहीं मालूम।
सौंदर्यीकरण-सड? निर्माण पर ढाई करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। बताते हैं कि पहले निर्माण का काम हो गया और फिर टेंडर आमंत्रित किया गया था। तब राष्ट्रीय सड? प्राधिकरण (एनएचएआई) ने कुछ बिंदुओं पर आपत्ति की थी। इसके बाद आनन-फानन में टेंडर निरस्त किया गया। जाहिर है कि निर्माण हुए हैं तो भुगतान भी हुआ होगा।
चर्चा है कि निगम के पदाधिकारियों और अफसरों ने सीएसआर मद से भुगतान के लिए रास्ता निकाल लिया। यानी भुगतान उद्योगपतियों द्वारा किया गया। ये अलग बात है कि सरकार इसका जवाब नहीं दे पा रही है।
बस्तर की काली मिर्च सबसे तेज
बस्तर की एक और उपलब्धि राष्ट्रीय स्तर पर दर्ज की गई है। कोंडागांव की काली मिर्च-16 ब्रांड को स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् और भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम ने अपने शोध में पाया है कि उत्पादन की मात्रा, गुणवत्ता और सर्वश्रेष्ठ का निर्धारण करने की दूसरे मापदंडों में यह शीर्ष पर है। केरल और पूर्वोत्तर के राज्यों में तीखी लाल ,काली मिर्च का व्यावसायिक उत्पादन होता है लेकिन बस्तर की काली मिर्च-16 अब तक पाई गई अन्य प्रजातियों की मिर्च से बेहतर है। आमतौर पर मिर्च के पौधे से उत्पादन 4 से 5 किलो होता है लेकिन काली मिर्च-16 एक पौधे में 8 किलो तक उगाई जा सकती है। भारतीय मसाला बोर्ड की पत्रिका स्पाइस इंडिया के ताजा अंक में इसका विवरण दिया गया है।
छापे के बाद गायब अफसर
बीते दिनों कोरबा के नगर निगम आयुक्त प्रभाकर पांडे के सरकारी आवास और दूसरे कुछ ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापा मारा था। इसके बाद से ही पांडे कोरबा से बाहर हैं। दफ्तर पहुंच रहे हैं, न ही घर पर दिखाई दे रहे हैं। दफ्तर में उनके मातहत भी कह रहे हैं कि कहां हैं, उनको कोई जानकारी नहीं। आमतौर पर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और जिले के अन्य विभाग प्रमुख, कलेक्टर को अपने अवकाश की जानकारी देकर जाते हैं। पर खबर है कि कलेक्टर कार्यालय से भी उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही है। रायगढ़ कलेक्टर रहते हुए आईएएस रानू साहू के यहां छापा पड़ा था तब वे भी कई दिनों से गायब हो गईं। बाद में उनका तबादला हो गया। पर प्रभाकर पांडे के मामले में ऐसा नहीं हुआ। राज्य प्रशासनिक अधिकारियों की पदोन्नति की दो दिन पहले सूची जारी हुई है जिसमें ज्यादातर लोगों को पुरानी जगह से हटाकर नई जगह पर भेजा गया है। पांडे का पद यथावत रखा गया है। भारतीय जनता पार्टी ने इसको मुद्दा भी बना लिया है और उन्होंने पुलिस में शिकायत की है कि हमारे आयुक्त लापता हैं ,जिसके चलते शहर की व्यवस्था बिगड़ रही है।
साव के मुकाबले साहू
प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद अरुण साव पर यह जिम्मेदारी आ गई है कि परंपरागत रूप से भाजपा को साथ देने के बावजूद सन् 2018 में कांग्रेस के खाते में चले गए साहू समाज के वोटों को वापस खींच लें। कैबिनेट मंत्री और मौके मौके पर मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने गए ताम्रध्वज साहू की भी अपने समाज में अच्छी पकड़ है। वे दो दशक से अधिक समय तक अपने समाज का नेतृत्व कर चुके हैं। बिलासपुर लोकसभा सीट के सांसद होने और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर होने के कारण जिले के साहू समाज पर साव का गहरा प्रभाव है। अब जब चुनाव के पहले मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों में फेरबदल किया गया तो एक बार फिर ताम्रध्वज साहू को बिलासपुर की जिम्मेदारी दे दी गई है। कांग्रेस की सोच हो सकती है कि बिलासपुर लोकसभा सीट और जिले के साहू वोट एक तरफा साव के प्रभाव में ना आए। ताम्रध्वज को जिले का प्रभार मिलने के बाद इसमें मदद मिलेगी। वैसे पहले भी इसी सरकार के दौरान एक बार ताम्रध्वज साहू जिले के प्रभार को संभाल चुके हैं, पर अधिक दौरा नहीं करते थे। अभी जो प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल थे वह कम से कम रायपुर से कोरबा आते जाते छत्तीसगढ़ भवन में रुक जाते थे। वे अधिकारियों को कार्यकर्ताओं से भेंट मुलाकात करके जिले का हाल-चाल जानते थे। अब यह देखना होगा कि साहू बचे हुए 90-100 दिनों में कितनी बार अपने प्रभार के जिले में पहुंचेंगे।