राजपथ - जनपथ
टिकट दिख गई !
आईटी का जमाना है। कई बार मोबाइल से मैसेज भेजते वक्त ऐसी चूक हो जाती है, जिससे यूजर को हंसी का पात्र बनना पड़ जाता है। कुछ ऐसा ही सरगुजा संभाग के भाजपा नेता के साथ हुआ। हुआ यूं कि पार्टी के एक प्रभावशाली नेता को पिछले दिनों किसी काम से हैदराबाद जाना था। नेताजी ने फ्लाइट की टिकट कराने की जिम्मेदारी सरगुजा के नेता को दी थी।
उन्होंने टिकट कराया भी, और वाट्सएप से टिकट भेजते समय थोड़ी चूक हो गई। टिकट उनके अपने मोबाइल के स्टेटस में दर्ज हो गया। इसके बाद पार्टी के अंदरखाने में सरगुजा के नेता के प्रभावशाली नेता से आर्थिक संबंध की भी चर्चा होने लगी। खैर, गलती सुधार ली गई, और स्टेटस से टिकट को हटा लिया गया। तब तक बात का बतंगड़ बन चुका था।
समितियों की अब कांग्रेस की बारी
कांग्रेस में सचिवों, और संयुक्त महासचिवों की नियुक्ति की तैयारी है। चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने प्रमुख नेताओं से नाम भी ले लिए हैं। दो, या तीन महासचिव बनाए जाएंगे। इसमें आरक्षण को ध्यान में रखा जाएगा।
इसी तरह पार्टी की समन्वय समिति की बैठक में कुछ अहम समितियों के मुखिया के नाम भी तय होने की चर्चा है। इनमें अनुशासन कमेटी के चेयरमैन की जिम्मेदारी धनेन्द्र साहू को दी जा सकती है।
इसी तरह चुनाव अभियान समिति के प्रमुख के लिए डॉ. चरणदास महंत, और घोषणा पत्र के लिए सरकार के मंत्री मोहम्मद अकबर के नाम की चर्चा है। सूची हफ्ते- दस दिन में जारी होने की उम्मीद जताई जा रही है।
सबको पीछे छोड़ देने का राज
सरकार ने वी श्रीनिवास राव, और अनिल साहू को पीसीसीएफ के पद पर प्रमोट कर दिया है। मगर उनकी पोस्टिंग का मसला अभी अटका पड़ा है। श्रीनिवास राव प्रभारी पीसीसीएफ के रूप में प्रशासन संभाल रहे हैं। मगर अनिल साहू सीनियर हैं, और वो पर्यटन बोर्ड के एमडी रहे हैं। सरकार ने कल ही अनिल साहू मूल विभाग में लौटने के इच्छा पूरी कर दी है। ऐसे में फिर महकमे में सीनियर-जूनियर को लेकर बहस चल रही है। इससे पहले 7 अफसरों को सुपरसीड कर श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ प्रशासन का दायित्व सौंपा गया था, तो इसकी खूब चर्चा हुई थी। और अब जब पोस्टिंग की फाइल सीएम के पास है, तो फिर से इस पर महकमे में चर्चा हो रही है। देखना है कि सीएम क्या फैसला लेते हैं।
पद राष्ट्रीय, कद स्थानीय
विधानसभा चुनाव के करीब आते-आते भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में फेरबदल में छत्तीसगढ़ का वजन इस लिहाज से बढ़ा है क्योंकि अपेक्षाकृत बड़े राज्य मध्यप्रदेश की तरह यहां पर भी तीन पदाधिकारी शामिल किए गए हैं। मगर पहले जब डॉ. रमन सिंह को अकेले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर थे तो उनका महत्व अलग था। अब सांसद सरोज पांडेय और डॉ. रमन सिंह के मंत्रिमंडल का कभी हिस्सा रहीं लता उसेंडी को भी उनके ही बराबर ओहदा दिया गया है। इसके कई मायने जानकार निकाल रहे हैं। एक तो यह ध्यान रखा गया कि डॉ. रमन सिंह का केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह अवहेलना कर रहा हो, ऐसा नहीं लगना चाहिए। एक पूर्व मुख्यमंत्री और 15 साल तक राज्य की सत्ता संभालने वाले वरिष्ठ नेता इतने सम्मान के हकदार तो हैं। दूसरा यह कि पूर्व मंत्री केदार कश्यप और सांसद मोहन मंडावी के अलावा भी कुछ प्रभावशाली चेहरों की बस्तर में जरूरत है। बीते चार साढ़े साल तक लगभग हाशिये में रहीं उसेंडी को सीधे डॉ. रमन सिंह और वरिष्ठ सांसद सरोज पांडेय के बराबर दर्जा देना बताता है कि बस्तर में भाजपा को हर हाल में अच्छा परिणाम चाहिए। प्रदेश के सर्वाधिक मंत्रियों के साथ दुर्ग जिला कांग्रेस का गढ़ जैसा है। यहां सरोज पांडेय पर भाजपा की स्थिति मजबूत करने के लिए विश्वास जताया गया है।
सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस की तरह भाजपा में भी पदों के नाम के अनुरूप दायित्व नहीं देने का चलन बढ़ रहा है। डॉ. सिंह पिछली कार्यकारिणी के दौरान जब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे तब भी पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में उन्हें अलग से कोई प्रभार नहीं दिया गया। उन्हें किस राज्य का प्रभार दिया और वहां कब-कब सक्रिय रहे यह लोगों को याद नहीं पड़ता। ऐसा ही मकसद लता उसेंडी और सरोज पांडेय को नियुक्त करने के पीछे हो सकता है। पद के साथ राष्ट्रीय जुड़ जाने का महत्व तो है पर काम शायद उनसे केवल बस्तर और दुर्ग संभाग में पार्टी की स्थिति संभालने का लिया जाए।
उधार मांगने वालों को चेतावनी
इस ठेले वाले की पीड़ा वही समझ सकता है। उधार मांगने वालों से पूछ रहा है कि क्या छिंदवाड़ा छोड़ दें? ये छोड़ देंगे तो कोई दूसरा ठेला यहां लग जाएगा, लेने वाले उससे उधार ले लेंगे। फिर, यह समस्या अकेले किसी एक शहर की तो है नहीं, जिस शहर में चले जाएं- उधार मांगने वाले मिलेंगे। (सोशल मीडिया से)
कोई छोटा-बड़ा जिला नहीं
आईएएस, आईपीएस अफसरों का जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है और वे वरिष्ठ होते जाते हैं, उन्हें छोटे से बड़े जिलों का कमान सौंपा जाता है, फिर उसके बाद मंत्रालय या डेपुटेशन पर केंद्रीय विभागों में लिए जाते हैं। इधर आईएएस सौरभ कुमार ने जून 2021 से जुलाई 2022 तक राजधानी रायपुर में कलेक्टर की जिम्मेदारी संभाली, उसके बाद जुलाई 2022 से जुलाई 2023 तक बिलासपुर कलेक्टर रहे। अब उन्हें कोरबा की जिम्मेदारी दे दी गई है। उनके साथ उल्टा हो रहा है। मगर इसमें किसी की दो राय नहीं हो सकती कि कोरबा जिले को संभालना बिलासपुर और रायपुर से भी ज्यादा मुश्किल है। झा और सौरभ कुमार दोनों को ही अपनी-अपनी जगह पर एक-एक साल ही हुए थे। इसलिये चुनाव आयोग की ओर से भी कोई बंदिश नहीं थी। इस बार तो कोरबा कलेक्टर संजीव कुमार झा के खिलाफ मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने कोई मोर्चा भी नहीं खोला, फिर भी हो गया। बिलासपुर में भी किसी विधायक, नेता ने कलेक्टर सौरभ कुमार के बारे में सार्वजनिक शिकायत नहीं की है। यह जरूर है कि जमीन संबंधी मामलों, जमीन अधिग्रहण में फर्जी मुआवजा हासिल करने के मामलों की जांच में पिछले एक साल से कुछ तेजी दिखाई दे रही थी।