राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जैजैपुर पर दीवान की नजर
31-Jul-2023 2:43 PM
राजपथ-जनपथ : जैजैपुर पर दीवान की नजर

जैजैपुर पर दीवान की नजर

रिटायर्ड एडिशनल कलेक्टर एमडी दीवान भी विधिवत कांग्रेस में शामिल हो गए। दीवान रिटायरमेंट के ठीक पहले जांजगीर-चांपा में एडिशनल कलेक्टर थे। उस वक्त आरपीएस त्यागी कलेक्टर थे। त्यागी, और दीवान की काफी छनती थी। बताते हैं कि त्यागी ने कलेक्टर रहते ही राजनीति में आने का मन बना लिया था, और वो निजी कार्यक्रमों में ज्यादा रूचि लेते थे। एक तरह से जिले में प्रशासन की बागडोर दीवान ही संभालते थे। 

त्यागी रिटायर होने के तुरंत बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। लेकिन दीवान रिटायर होने के बाद लंबे समय तक संविदा में काम करते रहे। अब संविदा की अधिकतम उम्र भी पार हो गई है, तो वो अपने कलेक्टर की राह पर चलते हुए राजनीति में आ गए। ये अलग बात है कि त्यागी कांग्रेस छोड़ चुके हैं, और भाजपा में आ गए हैं। 

दीवान ने उनसे अलग रास्ता अपनाते हुए कांग्रेस में शामिल होना उचित समझा। वैसे भी दीवान की पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है। उनके चाचा लंबे समय तक जांजगीर-चांपा जिले के मंडी अध्यक्ष रहे हैं। दीवान की नजर जैजैपुर विधानसभा सीट पर है। पिछले चुनाव में कांग्रेस यहां तीसरे नंबर पर थी। कांग्रेस जैजैपुर में कुछ नया प्रयोग करने की सोच रही है। देखना है कि दीवान मौका मिलता है या नहीं। 

दीवान का एक और कांग्रेस कनेक्शन है। जब वे सरकारी नौकरी में आये, तब वे और चरणदास महंत दोनों ही साथ-साथ नायब तहसीलदार थे।  हालांकि दीवान, महंत से एक साल सीनियर थे, लेकिन उनसे पारिवारिक संबंध रहे हैं। महंत राजनीति में जल्द ही आ गये थे, दीवान अब आये हैं। 

कोषाध्यक्ष बदलेगा?

चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस अपना कोषाध्यक्ष बदल सकती है। वर्तमान में रामगोपाल अग्रवाल पार्टी का कोष संभाल रहे हैं। वो नागरिक आपूर्ति निगम के चेयरमैन भी हैं। इससे परे रामगोपाल पर ईडी का शिकंजा कसा है। ऐसे में उनका कोषाध्यक्ष पद पर बने रहना मुश्किल हो गया है। चुनाव के समय में कोषाध्यक्ष का पद काफी अहम रहता है। 

पार्टी विकल्प के तौर पर दो नामों पर विचार कर रही है। इनमें अरूण सिंघानिया, और पारस चोपड़ा हैं। अरुण प्रदेश के बड़े बिल्डर हैं, और सबके भरोसेमंद भी हैं। इससे परे चोपड़ा सीए हैं, और पहले भी पार्टी के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। हाल के दिनों में उनका कद बढ़ा है। उन्हें चुनाव समिति में भी रखा गया है। इन सबके बावजूद कोषाध्यक्ष की नियुक्ति में सीधे हाईकमान की दखल रहती है। ऐसे में पार्टी क्या कुछ फैसला लेती है यह देखना है। 

बाघ की खाल को भी गिन लिया?

देशभर के बाघों के आंकड़े आने के बाद पता चला है कि छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या 19 से घटकर 7 रह गई है। इसके अलावा 10 ऐसे बाघ हैं, जो टाइगर रिजर्व से बाहर हैं। तीन साल में बाघ संरक्षण के नाम पर 183 करोड़ खर्च करने का नतीजा यह निकला है। विधानसभा में आए इस जवाब के बाद वन मंत्री ने खर्च को लेकर विभाग के अफसरों का बचाव भी किया, पर अब गिनती के आंकड़े आने के बाद किसी के पास कुछ कहने के लिए कुछ बचा नहीं है। बस, एक सच्चाई और स्वीकार कर लेनी चाहिए कि इनकी तीनों टाइगर रिजर्व में कुल मिलाकर 7 नहीं केवल 6 बाघ हैं। उदंती अभयारण्य में अब एक भी टाइगर नहीं। गणना के मुताबिक 7 में से 5 अचानकमार अभयारण्य में तथा एक-एक उदंती-सीतानदी तथा एक इंद्रावती में दर्ज है। पर, रिपोर्ट भेजने और गणना के नतीजे आने के बीच, हाल ही में बाघ के दो खाल जब्त किए गए। इसमें से एक को वन विभाग के अफसरों ने ही उदंती-सीतानदी अभयारण्य का माना। इसका मतलब यह हुआ कि यहां के एकमात्र बाघ को मार दिया गया है। अब वहां कोई भी बाघ नहीं है। बाघों की कुल संख्या भी 7 नहीं सिर्फ 6 रह गई है। वन विभाग के एक अफसर ने यह बयान दे दिया कि नक्सली मूवमेंट के कारण इंद्रावती, उदंती में ट्रैप कैमरे नहीं लगाये जा सके, इसलिए पूरी गिनती नहीं हो पाई। ये जवाब ऐसा है मानो ट्रैप कैमरे लगते तो नक्सल इलाकों से धड़ाधड़ बाघ बाहर निकल आते। यह कहते हुए वे यह भूल रहे हैं कि अचानकमार अभयारण्य जहां एक दशक पहले से 18 से 24 टाइगर होना बताया जाता था, वहां केवल 5 कैसे रह गए? यहां तो कैमरों की कोई कमी नहीं।

धोबी घाट जैसा लगा नगर निगम  

सीधे-सीधे धरना प्रदर्शन कोई करे तो आजकल न तो अफसरों का ध्यान जाता है न ही मीडिया में जगह मिलती। संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने कल रायपुर में गैस सिलेंडर की काठी बनाई और शव के साथ महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया। सीएम और मंत्रियों का मुखौटा लगाकर भ्रष्टाचार और शराब घोटाले के खिलाफ भाजपा कुछ समय पहले प्रदर्शन कर चुकी है। नियमितीकरण की मांग पर शासकीय विभागों के कर्मचारियों को घुटनों के बल चलकर प्रदर्शन करते देखा गया। मृत पंचायत शिक्षाकर्मियों के आश्रित सरकार में कोई भी नौकरी पाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, उन्होंने कुछ दिन पहले मुंडन करा लिया था। कुछ की मांगें पूरी हो रही हैं, कुछ की नहीं। पर आम लोगों का ध्यान ऐसे आंदोलन की ओर खिंचता है और लोगों को पता चलता है कि आखिर मांगें क्या हैं। इससे सरकार असहज तो होती ही है।

इसे ही समझते हुए जगदलपुर के जवाहर वार्ड के निवासियों ने अनोखा प्रदर्शन किया। वार्ड में लंबे समय से पानी की किल्लत है। पीने के अलावा निस्तारी जल का संकट कायम है। कई बार पार्षद और नागरिकों ने नगर-निगम के अधिकारियों से समस्या हल करने की मांग की लेकिन ध्यान नहीं दिया गया। वार्ड के नागरिक बाल्टी, बकेट में घर के कपड़े लेकर आ गए और नगर निगम दफ्तर के सामने सीढ़ी पर बैठकर कपड़े धोने लगे। पहले लोगों को समझ नहीं आया, माजरा क्या है। पर नागरिकों ने बताया कि मोहल्ले में कपड़ा धोने के लायक भी पानी नहीं आता। क्या करें, हमें मजबूरी में यहीं आकर कपड़े धोना पड़़ रहा है। जब तक पानी का संकट दूर नहीं होगा, कपड़ा धोने यहीं आएंगे। बहरहाल, विरोध प्रदर्शन का यह तरीका कामयाब रहा। नगर निगम आयुक्त ने वार्ड का भ्रमण कर न केवल पानी की बल्कि और दूसरी समस्याओं को भी दूर करने का आश्वासन दिया है।

तालाब पर उतरकर अपील

इस अनोखे प्रदर्शन में मांग से ज्यादा अपील है, क्योंकि फरियाद सरकार से नहीं अपने मतदाताओं से की जा रही है। चौबे कॉलोनी रायपुर का तालाब (स्वामी आत्मानंद सरोवर) प्रदूषित हो रहा है। वार्ड के पार्षद अमर बंसल ने पाया कि धार्मिक आयोजनों के बाद पूजन सामग्री तालाब में बहा देने के कारण यह स्थिति बनी है। वे तालाब में उतर गए और अपील की, कि ऐसा नहीं करें। तालाब को समाज के लिए बचाकर रखें। आज राजधानी और दूसरे शहर-गांवों में तालाबों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है। ऐसे में जो बच गए हैं, उनकी ही हिफाजत हो जाए तो बड़ी बात होगी।

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