राजपथ - जनपथ
रायपुर से निकलकर बढ़े नकवी
रायपुर में पले बढ़े, और प्रतिष्ठित चिकित्सक नकवी भाईयों में सबसे बड़े डॉ. एस डब्ल्यू नकवी मध्यप्रदेश सरकार में स्पेशल डीजीपी के पद पर प्रमोट हो गए हैं। आईपीएस के 90 बैच के अफसर डॉ. नकवी राज्य बंटवारे के बाद मध्य प्रदेश कैडर में चले गए। उनकी गिनती काबिल अफसरों में होती है।
डॉ. एस डब्ल्यू नकवी रायपुर के बैजनाथ पारा के रहवासी हैं। उनके पिता डॉ. एसएस अली रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में बायो साइंस विभाग के प्रमुख रहे हैं। तीन भाइयों में सबसे बड़े डॉ. नकवी ने रायपुर होलीक्रास स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, और रायपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की उपाधि अर्जित की। एमडी करने के बाद वो आईपीएस के लिए सेलेक्ट हुए।
आईपीएस अफसर के रूप में अलग पहचान बनाई। वो केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर भी रहे, और तीन साल ईडी में वेस्टर्न जोन के इंचार्ज रहे। मध्यप्रदेश पुलिस में एडीजी (इंटेलिजेंस) सहित कई अहम पदों पर सेवाएं दी। वर्तमान में एडीजीपी के रूप में उनकी पोस्टिंग नारकोटिक्स विभाग के प्रमुख के रूप में की गई है। डॉ. नकवी के दोनों छोटे भाई डॉ. जव्वाद, और डॉ. अब्बास नकवी रायपुर के रामकृष्ण केयर अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
स्मार्ट सिटी की जांच
रायपुर नगर निगम के विपक्ष के पार्षदों ने स्मार्ट सिटी के कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, और गड़बड़ी की शिकायती दस्तावेज लेकर केन्द्रीय मंत्री से भी मिले। केन्द्र सरकार ने बकायदा जांच टीम भी भेजी। टीम करीब 6 महीना पहले आई थी। जांच का आगे क्या हुआ, किसी को कुछ पता नहीं है।
सुनते हैं कि केन्द्र ने विभाग के अफसरों अथवा किसी जांच एजेंसी के बजाए हैदराबाद की एक निजी फर्म को जांच का जिम्मा दिया था। फर्म करीब 6 सौ करोड़ के कथित घोटाले की जांच की है। जांच के एवज में करीब 12 लाख रुपए का भुगतान होना था। कुछ लोगों को शंका है कि इतनी कम राशि पर जांच का कोई निष्कर्ष निकल पाना मुश्किल है।
हल्ला तो यह भी है कि स्मार्ट सिटी के ठेकेदारों, और अन्य लोगों ने जांच के फर्म को मैनेज कर लिया है। जितनी मुंह, उतनी बातें। पार्षद भी जांच रिपोर्ट पर रुचि नहीं ले रहे हैं। वजह यह है कि पार्टी के दबाव में शिकवा-शिकायतें तो कर दी, लेकिन वो भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी रूप में भागीदार रहे हैं। हालांकि सांसद सुनील सोनी अभी भी जांच-कार्रवाई को लेकर दबाव बनाए हुए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
प्रदेश के मुस्लिम वोट किस तरफ ?
पहले के किसी चुनाव में भाजपा ने जो नहीं किया वह अब करने जा रही है। मुसलमानों के पिछड़े तबके, जिन्हें पसमांदा कहते हैं, उनको पार्टी से जोडऩे का अभियान चलाया जा रहा है। भाजपा मानती है कि कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दलों में सिर्फ उन्हीं मुसलमानों को अब तक मौका मिला है, जो ऊंची जाति के हैं। पिछड़ी तबके के मुसलमान किसी एक दल के साथ कभी नहीं गए। मध्य भारत के राज्यों में पार्टी एक स्नेह यात्रा भी निकाल रही है, साथ ही सूफी समागम समारोह रखने की योजना है जो साल भर देश के अलग-अलग भागों में होगा।
आगामी विधानसभा चुनाव के चलते छत्तीसगढ़ में भी तेजी से यह अभियान चल रहा है। रायपुर में पिछले माह भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रखी गई थी। करीब डेढ़ माह से प्रदेश में मोदी मित्र अभियान चलाया गया है, जिसमें खास तौर पर मुस्लिमों को ही भाजपा का सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया। दावा किया गया है कि इस दौरान 4000 से अधिक लोगों को जोड़ लिया गया।
छत्तीसगढ़ में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 5 लाख है। लोकसभावार देखें तो रायपुर में सबसे ज्यादा करीब 90 हजार, उसके बाद बिलासपुर में 65 हजार, राजनांदगांव में 37 हजार और बस्तर में करीब 16 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। मगर, छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां लोकसभा चुनाव में जरूर परिस्थितियां भिन्न हो पर स्थानीय चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक अलग ट्रेंड रहा। मुस्लिम मतदाताओं ने एकतरफा वोट किसी दल को नहीं दिया। वे उम्मीदवार से प्रभावित होकर वोट डालते रहे हैं। इसका लाभ भाजपा को भी मिलता रहा। सन् 2018 के चुनाव में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया था, पर वे परिणाम नहीं दिला पाए। कुछ भाजपा प्रत्याशियों ने तो अपने यहां इसी वजह से योगी का कार्यक्रम कराने से मना कर दिया था, क्योंकि उन्हें अपने मुस्लिम वोटों के बिखर जाने का डर था।
एक तटस्थ मुस्लिम जो कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस को वोट देते रहे हैं, उनका सवाल है कि पसमांदा मुस्लिमों को अन्य मुस्लिम मतदाताओं से अलग करके देखने का आखिर कितना असर होगा? मॉब लिंचिंग और अत्याचार की घटनाओं में ज्यादातर शिकार तो निचले तबके ही लोग हैं। उपद्रव, हिंसा का असली पीडि़त हिंदू समाज में भी दलित और पिछड़ा ही होता है- ऊंची जाति के लोग नहीं। फिर भी आसन्न विधानसभा चुनाव के बीच भाजपा का मुस्लिम मतदाताओं से दोस्ती का अभियान कांग्रेस को सचेत तो करता ही है।
एक पान में क्या गद्दारी भला..
राजकुमार कॉलेज रायपुर के सामने करबला मोहल्ले की यह पान दुकान आते-जाते लोगों का ध्यान अपने नाम से खींच लेता है। गद्दार नाम है, पर ग्राहकों को परहेज नहीं है। तभी तो चौराहे पर चल रही है। बगल में चाय की दुकान है, उसने भी नाम रखा है- पनौती चाय वाला।
तो, सबके सब रिपीट हो जाएंगे?
प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल की हर बात पर लोग भरोसा कर लेते हैं। पर एक बात पर नहीं हो रहा है कि सिर्फ दो चार विधायकों की परफार्मेंस रिपोर्ट सही नहीं है, बाकी सबने पिछले साढ़े चार साल अच्छा काम किया। उन कांग्रेसियों को तो एक रत्ती इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा, जो टिकट की दौड़ में लगे हुए हैं।
वे मुख्यमंत्री के बयान के बावजूद कोशिश में लगे रहना चाहते हैं। क्योंकि उनके पास कई दूसरी रिपोर्ट्स भी हैं जो 30-35 विधायकों के प्रदर्शन को निराशाजनक बताती है। हालांकि ये रिपोर्ट अधिकारिक रूप से जारी नहीं की गई है। टिकट के दावेदारों का कहना है कि यदि दो चार को छोडक़र बाकी विधायकों को कांग्रेस रिपीट करने जा रही है, तो उसे 75 पार की उम्मीद तो छोड़ देनी चाहिए।