राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : पार्टी में खर्च की किच-किच
02-Aug-2023 6:17 PM
राजपथ-जनपथ : पार्टी में खर्च की किच-किच

पार्टी में खर्च की किच-किच

कांग्रेस में संकल्प शिविर के खर्चों को लेकर किचकिच हो रही है।  पार्टी के अंदरखाने में शिविर के लिए विधानसभा चुनाव से पहले टिकट के दावेदारों से राशि एकत्र करने की सहमति बनी थी। सभी विधानसभा क्षेत्रों में शिविर के लिए दावेदारों ने अंशदान भी किया था। मगर इस बार शिविर से पहले ही रायपुर संभाग के एक महिला विधायक के क्षेत्र में अलग तरह का विवाद खड़ा हो गया है।

बताते हैं कि इस बार एक-दो दावेदार, महिला विधायक से पिछले संकल्प शिविर का अपना अंशदान वापस मांग रहे हैं। चुनाव से पहले एक-दो दावेदार ने तो दबाव बनाकर अपना अंशदान वापस ले लिया था। महिला विधायक को चुनाव में भितरघात का खतरा था, इसलिए उन्होंने उनका हिस्सा वापस भी कर दिया था।

इस बार महिला विधायक ने भी शर्त रख दी है कि वो संकल्प शिविर का खर्च उठाने के लिए तैयार हैं, लेकिन कोई और टिकट की दावेदारी नहीं करेगा। बस, इसी बात को लेकर महिला विधायक, और दावेदारों के बीच वाद विवाद चल रहा है। चर्चा है कि अब इस मामले में प्रदेश नेतृत्व को दखल देना पड़ सकता है।

सीटें बदलकर...

चर्चा है कि भाजपा इस बार दिग्गज पार्टी नेताओं की विधानसभा सीट बदलकर चुनाव मैदान में उतार सकती है। पार्टी के रणनीतिकारों का अंदाजा है कि सीट बदलने से पार्टी को फायदा होगा।

कहा जा रहा है कि पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह को राजनांदगांव के बजाए कवर्धा अथवा डोंगरगांव सीट से चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। पार्टी के रणनीतिकारों का सोचना है कि राजनांदगांव पार्टी के लिए आसान सीट है। यहां किसी युवा नेता को लड़ाकर जीत हासिल की जा सकती है। मगर कवर्धा में मोहम्मद अकबर, और डोंगरगांव में दलेश्वर साहू के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार होने पर ही जीत मिल सकती है। इसके लिए रमन सिंह को उपयुक्त माना जा रहा है। खास बात यह है कि रमन सिंह डोंगरगांव और कवर्धा, दोनों जगह से विधायक रहे हैं।

कुछ इसी तरह की प्लानिंग सीएम भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र के लिए भी बन रही है। पार्टी सीएम के विधानसभा क्षेत्र पाटन से उनके भतीजे विजय बघेल को उतारकर घेरने की रणनीति बना रही है। विजय दुर्ग के सांसद हैं, और पाटन से एक बार चुनाव भी जीत चुके हैं। रायगढ़, बिलासपुर, और कसडोल में कुछ इसी तरह की प्लानिंग हो रही है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।

लड़कियां क्यों भाग रही हैं?

संसद में सरकार का जवाब आया है कि दो साल में 13 लाख 30 हजार लड़कियां गायब हो गईं। चिंताजनक है कि छत्तीसगढ़ से गायब होने वाली बच्चियों की संख्या 49 हजार से अधिक है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अलग से आंकड़ा मिलने लगा है, जिससे पता चलने लगा कि यह समस्या कितनी गंभीर है। भाजपा शासनकाल के दौरान एक आंकड़ा आया था, जिस पर विधानसभा में भी बहस हुई थी, बाद में एक राज्य स्तरीय निगरानी समिति भी बनाई गई। तब गायब लड़कियों की संख्या 19 हजार बताई गई थी। चिंता इस बात पर भी हो सकती है कि ज्यादातर गायब लड़कियां आदिवासी इलाकों से हैं। सरगुजा, जशपुर, कुनकुरी, रायगढ़ में दिल्ली, झारखंड की दर्जनों प्लेसमेंट एजेंसियां काम करती हैं। पर इधर अब बस्तर से भी इसी तरह की खबरें आने लगी हैं। निगरानी समिति ने अंतर्राज्जीय बसों और नजदीकी रेलवे स्टेशनों पर कुछ निगरानी बढ़ाई भी है। इसके बावजूद गायब होने की संख्या कम नहीं हो रही बल्कि बढ़ रही है। कुछ तो दोस्ती यारी के चक्कर में भागते हैं, ज्यादातर मामले जॉब ढूंढने के होते हैं। महानगरों में इनकी घरेलू नौकरानियों के रूप में मांग होती है। फिर इनका शारीरिक आर्थिक हर तरह से शोषण होता है, नारकीय स्थिति में रखा जाता है। कई मामले ऐसे भी हैं जब लड़कियों को दलालों के चंगुल से छुड़ाकर गांव वापस लाया गया, लेकिन बाद में वे फिर लापता हो गईं।

छत्तीसगढ़ में भाजपा ने महिला अपराधों को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार को घेरा है। यह जरूरी है, क्योंकि विपक्ष का काम यही है। पर दूसरी ओर मध्यप्रदेश है, जो बलात्कार और लड़कियों के गायब होने के मामले में देश में सबसे ऊपर है। संसद में ही पिछले दिनों यह बताया गया। वहां कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। समस्या की वजह शिक्षित हो चुकी लड़कियों के लिए स्थानीय स्तर पर सम्मानजनक रोजगार का नहीं होना है। छुड़ाकर लाई गई लड़कियों के पुनर्वास की तरफ सरकारों का ध्यान नहीं है। इसलिए सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की-समस्या मौजूद है।

छत की मरम्मत करते छात्र

पिछले दिनों एक तस्वीर आई थी जिसमें गरियाबंद की छात्राओं से भारी-भरकम की ट्रैक्टर से अनलोडिंग कराई जा रही थी। अब यह तस्वीर देखिये जो कोंडागांव जिला मुख्यालय के तहसील ऑफिस के सामने की स्कूल की है। बच्चों को खपरैल की मरम्मत के लिए छत पर चढ़ा दिया है। शिक्षक ने कहा है तो बच्चों को आदेश का पालन तो करना ही है। स्कूल भवन की हालत भी जर्जर दिखाई दे रही है।

जोगी को ऐसे याद किया भूपेश ने

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बिलासपुर में आठ जिलों के युवाओं से संवाद किया। एक छात्रा ने उनसे कॉलेज के दिनों का अनुभव जानना चाहा तो उन्होंने कलेक्टर के रूप में स्व. अजीत जोगी को याद किया। उन्होंने बताया कि वे सांइस कॉलेज रायपुर के हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। वहां के तीनों हॉस्टल में एक भी पंखा नहीं था। कलेक्टर के तौर पर अजीत जोगी कॉलेज का निरीक्षण करने के लिए पहुंचे। बघेल ने हॉस्टल के छात्रों के साथ मिलकर उनके सामने प्रदर्शन किया और पंखे लगाने की मांग की। जोगी ने बात सुनी, आठ दिन के भीतर मांग पूरी हो गई और सभी कमरों में पंखे लग गए। इस छोटे से किस्से को तो युवाओं ने बड़ी दिलचस्पी से सुना। अगर वे जोगी के साथ अपने राजनीतिक अनुभवों को साझा करते तो कहानी और अधिक दिलचस्प हो जाती।

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