राजपथ - जनपथ
डीएमएफ पर ईडी की नजर से...
डीएमएफ में गड़बड़ी की ईडी पड़ताल कर रही है। फंड बनने के बाद से जिलों में यदा-कदा शिकायतें आती रही हैं। सत्ता हो या विपक्ष, दोनों पक्ष के सदस्य विधानसभा में मामला उठा चुके हैं। चूंकि डीएमएफ से जिला स्तर पर काम स्वीकृत हो जाता है, और भुगतान में भी देरी नहीं होती है, इसलिए डीएमएफ से काम के लिए मारामारी रहती है। और अब जब ईडी ने पड़ताल शुरू की है, तो पंचायत स्तर पर हलचल मच गई है।
सुनते हैं कि डीएमएफ से पंचायतों को अधोसंरचना मद से काम स्वीकृत हुए थे। एक-दो जगह में तो एक-दो किश्त जारी भी हुए। मगर आगे की किश्त लेने के लिए सरपंच, और पंचायत प्रतिनिधियों ने दबाव बनाना बंद कर दिया है। इससे पहले तक पंचायत के लोग डीएमएफ फंड के लिए कलेक्टोरेट के चक्कर लगाते थे, लेकिन ईडी की जांच के चलते निचले स्तर तक भय का माहौल बन गया है। चुनाव आचार संहिता के लगने से जिला मुख्यालय से लेकर पंचायत तक डीएमएफ से निर्माण कार्य स्वीकृत कराने की होड़ मची हुई थी। यह तकरीबन बंद हो चुका है। इससे विशेषकर सत्तापक्ष से जुड़े लोग निराश हैं।
रूबरू इम्तिहान से खुल गई पोल
दो साल बाद प्रदेश के विश्वविद्यालयों में ऑफलाइन परीक्षा हुई, तो विद्यार्थियों की पढ़ाई का स्तर भी पता चला है। कोरोना काल में घर बैठकर प्रश्न पत्र हल करने की सुविधा थी। इसका विद्यार्थियों ने खूब फायदा उठाया, और दो साल तक सबको मनमाफिक नंबर मिल गए। अब जब कॉलेजों में प्रश्न पत्र हल करने की बारी आई, तो पोल खुल गई। तकरीबन सभी विश्वविद्यालयों में विशेषकर स्नातक स्तर की परीक्षाओं के रिजल्ट खराब आए हैं।
एनएसयूआई ने सीएम से मिलकर दो विषय में पूरक परीक्षा की पात्रता देने के लिए गुहार लगाई है। सरकार इस पर विचार भी कर रही है। मगर शिक्षाविद इससे सहमत नहीं हैं। एक सरकारी विवि के विधि विभाग के एक प्रोफेसर ने उत्तरपुस्तिका को लेकर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि बीए एलएलबी की एक छात्रा ने उत्तर पुस्तिका में अपनी पारिवारिक स्थितियों का जिक्र किया, और लिखा कि उनकी सगाई हो चुकी है, और शादी होने वाली है। ऐसे में जीवन आपके हाथ में है।
इसी तरह कई परीक्षार्थी तो प्रलोभन भी दे रहे हैं, और अपना मोबाइल नंबर तक लिखे हैं। ऐसे सैकड़ों किस्से सामने आ रहे हैं। इन सबको देखकर शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालय के लोग किसी तरह की छूट के खिलाफ हैं। मगर चुनाव को देखते हुए सरकार क्या कुछ करती है यह देखना है।
4 लाख भी डूबे तबादला भी नहीं
इस समय पैसा कमाने के लिए पसीना बहाने की जरूरत नहीं पड़ती । बस थोड़ी सी बुद्धि की जरूरत होती है। ऐसे ही एक अफसर ने बुद्धि लगाकर कमा लिए चार लाख। मामला है पढऩे पढ़ाने वाले विभाग का है। इसी विभाग के एक अफसर को दबंग महिला एसीएस हाल में निकाल बाहर कर चुकी हैं। हम एक नये मामले की बात बता रहे हैं।
डेढ़ दशक से एक ही शिक्षा संस्थान में कार्यरत सहायक प्राध्यापक राजधानी या आसपास तबादले के लिए जोर लगाया । मंत्री, संत्री सबको आवेदन दिया। काम नहीं बना। आखिरी में गांधीजी के अनुयायी एक अफसर से मुलाकात हुई। बात चार लाख में पटी। भुगतान भी कर दिया। इससे पहले कि यह अफसर विभाग के सचिव से चिडिय़ा बिठवाते सचिव का तबादला हो गया और ये अफसर भी विभाग से चलता कर दिए गए। अब वो सहायक प्राध्यापक फिर चक्कर काट रहे हैं।
कितने पानी में हैं, आजमा लीजिए...
इस बार विधानसभा चुनाव में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का पहले से कहीं ज्यादा इस्तेमाल होने जा रहा है। जो नेता इन पर सक्रिय नहीं थे वे अचानक वाट्सएप पर गुड मॉर्निंग, गुड नाइट संदेश देने लगे हैं। फेसबुक में कई कांग्रेस भाजपा और दूसरे दलों के नेताओं ने नए नए पेज तैयार किए हैं और थोक में फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रहे हैं। फैन्स क्लब पेज बन रहे हैं। कांग्रेस भाजपा दोनों ने ही सोशल मीडिया कैंपनिंग के लिए अपनी-अपनी टीम बना ली है। सोशल मीडिया इंफ्ल्यूएंशनर्स की पूछ-परख दोनों दलों में बढ़ गई है। अलावा इसके आम आदमी पार्टी भी सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर सक्रिय है।
इधर कुछ वेबसाइट और ऐप्स भी लोगों को काम में लगाकर माहौल चुनावी बनाने में मदद कर रहे हैं, जिसके जरिये संभावित दावेदार अपने को तौल रहे हैं। राइजिंग पोल जैसी कुछ वेबसाइट हैं, जिसमें टिकट का इच्छुक कोई नेता अपनी स्थिति को तौल सकता है। एक पोल क्रियेट करिये, अपनी और दूसरे दावेदारों की सूची बनाकर लोगों से पूछिये कि आप इनमें से किसे विधायक के रूप में देखना पसंद करेंगे। लोग अपनी पसंद के विकल्प पर क्लिक कर देते हैं और सामने रिजल्ट दिखाई देने लगता है। जिनको लिंक भेजा गया है, परिणाम को वे ही देख सकते हैं, कोई दूसरा नहीं। इसलिये यदि किसी दावेदार को बेहद कम वोट मिल रहे हैं, तब भी इसका पता उन लोगों को ही चलेगा, जिन्होंने पोल में भाग लिया है।
जाहिर है दावेदार यह लिंक अपने परिचितों, संपर्कों और समर्थकों को ज्यादा भेज रहे हैं। इससे पोल उनके पक्ष में दिखाई देता है। पर हर बार ऐसा नहीं होता। कांग्रेस के एक भूतपूर्व विधायक को बड़ी निराशा हुई। उन्होंने पोल क्रियेट किया और अपने संपर्कों को वोटिंग के लिए लिंक भेजा। नतीजा, यह रहा कि उसके विरोधी दावेदार के मुकाबले बेहद कम वोट मिले। विरोधी को हजारों वोट मिल गए, खुद वे हजार भी क्रास नहीं कर पाए। उन्होंने चार दिन के भीतर ही पोल डिलीट कर दिया। वेबसाइट में यह ऑप्शन भी मिलता है कि आप पोल को किसी भी समय डिलीट कर सकते हैं।
रियलटी शो में अबूझमाड़ का दर्द
जैसा आप लोग सामान्य जिंदगी जी रहे हैं, अबूझमाड़ में ऐसा कुछ नहीं है...। हमें वहां बहुत डर लगा रहता है। अबूझमाड़ एक नक्सली एरिया है.., लेकिन आज यहां लाइट में आए, हम लोगों बहुत अच्छा लग रहा है। यहां जो खाना खाया वह नसीब नहीं होता हम लोगों को..। यह हमारी पहली पीढ़ी है जिसने पढ़ाई की है...। हम चाहते हैं, वहां हम और हमारे परिवार के लोग सुरक्षित रहें। मगर वहां यह माहौल नहीं है। वहां पर जीना आसान नहीं है। हम लोग बरसात आने से पहले 4 माह का खाना इक_ा करके रख लेते हैं, क्योंकि वहां छोटे बड़े पुल पुलिया टूट कर बह जाते हैं...।
सोनी टीवी पर इन दिनों चल रहे एक बड़े पापुलर शो- इंडियाज गॉट टैलेंट में अबूझमाड़ मलखंभ अकादमी की टीम ने हैरतअंगेज शारीरिक कौशल दिखाया। शायद छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोगों को भी मालूम नहीं था कि बस्तर के सबसे दुरूह माने जाने वाले इलाके अबूझमाड़ में बच्चों को इतनी अच्छी मलखंब ट्रेनिंग मिल रही है।
ऊपर लिखी बातें अबूझमाड़ के बारे में अकादमी के सीनियर ग्रुप के एक युवक ने मंच से बताई। भले ही इस तरह के टीवी शो में बहुत सारे इमोशनल सीन जानबूझकर डाले जाते हैं, स्क्रिप्टेड भी होते हैं, पर मनोरंजन के चैनल देखने वाले लाखों दर्शकों तक अबूझमाड़ से बाहर निकलकर मुंबई पहुंचे युवक अपनी बात रख पाए।
जो तीन होस्ट इस कार्यक्रम में थे, उनमें एक किरण खेर थीं, जो चंडीगढ़ से सांसद भी हैं। उन्होंने सरकार का थोड़ा बचाव किया, कहा- सरकार काफी काम कर रही है। आगे और भी होगा। दूसरे होस्ट बादशाह थे, जो पहले भी बस्तर के एक छात्र सहदेव दिर्दो को प्रमोट कर चुके हैं। तीसरी होस्ट शिल्पा शेट्टी थीं, जिन्हें अबूझमाड़ नाम ही ठीक तरह से बोलते नहीं बन रहा था। कह रही थीं- अबू-झमाड़।