राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : ख़ुद को आबंटन !
11-Dec-2023 4:08 PM
	 राजपथ-जनपथ :  ख़ुद को आबंटन !

ख़ुद को आबंटन !

सीएम पद से हटने के बाद भूपेश बघेल अब शंकर नगर स्थित जयसिंह अग्रवाल के सरकारी बंगले में रहेंगे। राज्य बनने के बाद यह बंगला मुख्य सचिव के लिए ईयर मार्क था। मगर 2018 में भूपेश सरकार ने इस बंगले को राजस्व मंत्री अग्रवाल को आवंटित कर दिया। 

भूपेश बघेल ने चुनाव नतीजे आने के बाद राजस्व मंत्री का बंगला खुद के लिए आवंटित कर लिया है। राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल चुनाव हार चुके हैं, और उन्हें वैसे ही बंगला खाली करना था। भूपेश बघेल से पहले दो पूर्व सीएम अजीत जोगी, और डॉ. रमन सिंह को बंगला आबंटन पर काफी विवाद हुआ था।  

अजीत जोगी तो सीएम पद से हटने के बाद शंकर नगर स्थित एक  बंगला अपने लिए चाहते थे। मगर यह बंगला अमर अग्रवाल को आबंटित कर दिया गया, जो उस समय वित्त मंत्री थे। बाद में जोगी को पूर्व सीएम होने के नाते कटोरा तालाब स्थित सागौन बंगला आबंटित किया गया। 

रमन सिंह को सीएम हाउस के पीछे ई-वन बंगला आबंटित किया गया था, जो उन्हें पसंद नहीं आया। फिर वो मौलश्री विहार स्थित निजी बंगले में रहने चले गए। मगर भूपेश बघेल विवादों से बचने के लिए खुद होकर नए सीएम के शपथ से पहले ही अपनी पसंद से बंगला और स्टॉफ आवंटित कर लिया है। यह भले ही नियमानुसार न हो, लेकिन उनसे जुड़े लोगों को लगता है कि बंगला आबंटन पर कोई विवाद नहीं होगा। देखना है आगे क्या होता है। 

सीएम सचिवालय 

चर्चा है कि आईएएस के वर्ष-2009 बैच के अफसर सुनील जैन सीएम सचिवालय में आ सकते हैं। सुनील जशपुर जिले के ही रहवासी हैं, और नए सीएम विष्णुदेव साय से अच्छी जान-पहचान भी है। 

जैन डीपीआई में हैं, और स्कूल शिक्षा विभाग के विशेष सचिव भी हैं। वो बलौदाबाजार, और महासमुंद कलेक्टर रहे हैं। विशेष सचिव स्तर के अफसर सुनील जैन नागरिक आपूर्ति निगम के एमडी भी रहे हैं। सीएम सचिवालय में प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों के नामों की भी चर्चा है। 

कुछ अफसरों के नामों पर विचार हो रहा है। चर्चा तो यह भी है कि केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ सुबोध सिंह अथवा रजत कुमार की वापसी भी हो सकती है। अगले एक हफ्ते के भीतर इन सब पर फैसला हो सकता है। 

आदिवासी सीएम की मांग उठाने वाले

भारतीय जनता पार्टी में रहते हुए नंदकुमार साय लगातार प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग करते रहे। लगभग चार दशक तक पार्टी में रहने के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर केबिनेट मंत्री दर्जा दिया गया। रायगढ़-जशपुर जिलों की तीन सीटों में से किसी भी के लिए उन्होंने टिकट मांगी थी, पर नहीं मिली। अब सरकार चली गई तो उनको क्या जिम्मेदारी मिलेगी, अभी मालूम नहीं। इसी तरह पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर भी आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग करते रहे। इस बार उन्हें अपनी परंपरागत सीट रामपुर से हार का सामना करना पड़ा है और वे विधानसभा में नहीं होंगे। नंदकुमार साय ने अपनी महत्वाकांक्षा छिपाई भी नहीं। उनका आरोप था कि राजनाथ सिंह के साथ मिलकर डॉ. रमन सिंह ने उनको मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया।

राज्य बनने के 23 साल बाद पहली बार अविवादित आदिवासी नेतृत्व प्रदेश को मिला है। इस समय नंदकुमार साय और ननकीराम कंवर को इस बात के लिए याद किया जा सकता है कि अनुशासित पार्टी के कही जाने वाली भाजपा में रहते हुए उन्होंने सार्वजनिक बयान देकर कई बार आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठाई और मुद्दे को जिंदा रखा। यह जरूर है कि यह अवसर खुद उनको नहीं मिल सका।

जूदेव के भरोसेमंद साथी

नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को लेकर माना जाता है कि वे स्व. दिलीप सिंह जूदेव के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक थे। 1990 में जूदेव से उनकी पहली मुलाकात हुई, जब वे बगिया के सरपंच थे। जूदेव की सिफारिश पर उन्हें तपकरा सीट से विधानसभा की टिकट दी गई और वे करीब 25 हजार वोटों से जीतकर अविभाजित मध्यप्रदेश की विधानसभा में पहुंचे। सन् 1998 तक विधायक रहे। 1999 से 2014 तक चार बार सांसद बने, केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह मिली, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी तीन बार रहे। जूदेव के निधन के बाद भी उनके परिवार से साय का रिश्ता मजबूत बना हुआ है। हालांकि साय को राजनीति विरासत में मिली है। उनके दादा बुधनाथ साय 1947 से 1952 तक मनोनित विधायक रहे। उनके पिता के बड़े भाई नरहरि प्रसाद साय दो बार, 1962 और 1977 में विधायक तथा इसके बाद 1977 से 1979 तक सांसद रहे।

सरगुजा में कांग्रेस की कलह...

चुनाव के बाद बृहस्पत सिंह ने फिर ऐसा कुछ कह दिया है कि सरगुजा में सिंहदेव समर्थक कांग्रेसियों का पारा चढ़ गया। बृहस्पत सिंह ने कांग्रेस प्रभारी कुमारी सैलजा और पूर्व उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को लेकर बयानबाजी की थी। कहा कि वह हिरोइन की तरह फोटो खिंचवाती रही, सिंहदेव ड्राइवर बने रहे। सैलजा प्रभावशाली नेताओं के हाथ बिक गई थीं।

सरगुजा में सिंहदेव सहित सभी कांग्रेस प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है। बृहस्पत इस तोहमत से बच गए क्योंकि उनकी तो टिकट ही काट दी गई थी। नतीजा आने के बाद गुस्सा जायज था और यह सिंहदेव पर भी निकलना था। पर जैसी भाषा का इस्तेमाल उन्होंने किया है उसे सरगुजा के कांग्रेसियों ने महिला सम्मान के साथ जोड़ा। अभी भी जिला पंचायत, नगर-निगम में कांग्रेस है। इसके अलावा कई पूर्व विधायक हैं। सबकी एक बैठक हुई और एकमत से उन्होंने बृहस्पत सिंह को पार्टी से बाहर करने की मांग कर दी है।

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