राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : चुनाव और खर्च की कहानियाँ
12-Dec-2023 4:26 PM
राजपथ-जनपथ : चुनाव और खर्च की कहानियाँ

चुनाव और खर्च की कहानियाँ 

विधानसभा चुनाव में इस बार दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस, और भाजपा ने अपने प्रत्याशियों को फंड की कमी नहीं होने दी। पहले तो निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार के नेता चुनाव के चलते कर्ज के बोझ तले दब जाते थे। दुर्ग के बड़े नेता दिवंगत पूर्व सांसद ताराचंद साहू को अपना पहला विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए अपनी जमीन बेचनी पड़ी थी। उन्होंने अपनी जमीन राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय को बेची थी। हालांकि बाद में चुनाव जीतने के बाद उसी जमीन को वापस भी ले लिया। वीरेन्द्र पाण्डेय को धीरे-धीरे कर जमीन की राशि वापस लौटाई। 

कुछ इसी तरह का हाल राजनांदगांव के पूर्व सांसद अशोक शर्मा का भी रहा। अशोक शर्मा एक बार चुनाव हारने के बाद अगला लोकसभा चुनाव सिर्फ इसलिए नहीं लड़ा कि वो अपना पुराना कर्ज नहीं चुका पाए थे। बाद में अशोक शर्मा की जगह पार्टी ने डॉ. रमन सिंह को प्रत्याशी बनाया, जो बाद में चुनाव जीतकर केन्द्रीय राज्य मंत्री बने, और बाद में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। मगर ये सब गुजरे जमाने की बातें हैं। अभी तो दुर्ग संभाग के एक भाजपा प्रत्याशी ने पार्टी से चुनाव फंड मिलते ही अपना पुराना कर्ज उतारा, और बाकी राशि को चुनाव में लगाया। दिलचस्प बात ये है कि कम खर्च के बावजूद प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 

रायपुर संभाग की एक सीट से भाजपा प्रत्याशी को लेकर यह कहा जा रहा है कि चुनाव नतीजे आने के ठीक पहले बचत राशि बैंक से निकाल लिया था। पार्टी ने सभी प्रत्याशियों के खाते में 40-40 लाख रुपए जमा कराए थे। प्रत्याशी ने ज्यादा खर्च नहीं किया। और बाकी करीब 8 लाख रुपए पार्टी को वापस करने के बजाए खर्च दिखा दिया।  खाते में अभी मात्र 117 रूपए बैलेंस रह गए हैं। ये अलग बात है कि प्रत्याशी बुरी तरह चुनाव हार गए। पार्टी अब प्रत्याशी के चुनाव खर्च का हिसाब किताब कर रही है। 

इस्तीफा न देने वालों का क्या होगा?

सरकार बदल गई है, लेकिन निगम-मंडल में बैठे कई कांग्रेस नेताओं ने अब तक पद छोड़ा नहीं है। इन्हीं में से एक अपेक्स बैंक के चेयरमैन बैजनाथ चंद्राकर भी हैं। चंद्राकर को संचालक मंडल के सदस्यों ने सामूहिक इस्तीफा देने की सलाह दी है, लेकिन वो न तो खुद इस्तीफा दे रहे हैं, और न ही बाकी संचालकों को इस्तीफा देने से रोक रहे हैं। 
धान खरीदी का सीजन चल रहा है। ऐसे में बैजनाथ चंद्राकर के अब तक पद नहीं छोडऩे को लेकर कई तरह की चर्चा चल रही है। दूसरी तरफ, सरकार ने भी अपनी तैयारी कर रखी है। जिन्होंने अब तक इस्तीफा नहीं दिया है। एक आदेश जारी कर सबकी नियुक्तियां निरस्त करने का आदेश जारी किया जा सकता है। देखना है कि आदेश कब जारी होता है। 

मंत्रिमंडल में जगह से दोगुने नाम

इस वक्त जब भाजपा मंत्रिमंडल के संभावित नामों पर हर तरफ चर्चा गर्म है, यह बात भी निकल रही है कि भाजपा को कुछ उसी तरह पेशोपेश का सामना करना पड़ सकता है, जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल के गठन दौरान था। धनेंद्र साहू, अमितेश शुक्ल, सत्यनारायण शर्मा, रामपुकार सिंह जैसे वरिष्ठ नेता भी मंत्रिमंडल से बाहर रह गए थे। पहली बार जीते हुए विधायकों को मंत्री पद नहीं मिलेगा, यह नियम भी दावेदारों की सूची को छोटी करने के लिए बनाया गया।

भाजपा में इस बार सरगुजा से कई कद्दावर नेता जीत आए हैं। रेणुका सिंह तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में ही थीं, उनसे इस्तीफा ले लिया गया है। यहीं से रामविचार नेताम और भैयालाल राजवाड़े भी मंत्री रह चुके हैं। नेताम तो काफी वरिष्ठ और राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। कोरबा के लखनलाल देवांगन संसदीय सचिव रह चुके हैं। इधर बिलासपुर में तीन बड़े नेता जीत कर आए हैं। धरमलाल कौशिक, अमर अग्रवाल, धर्मजीत सिंह ठाकुर। कौशिक विधानसभा अध्यक्ष रह चुके, नेता प्रतिपक्ष रहे और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी। अमर अग्रवाल लगातार मंत्रिमंडल में रहे। धर्मजीत सिंह पांचवी बार के विधायक हैं, भले ही वे भाजपा में नए हैं। इससे लगे मुंगेली जिले में दो सीटें हैं, जिनमें से अरुण साव का नाम तो सीएम के लिए चला, दूसरे वरिष्ठ विधायक, पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद, पुन्नूलाल मोहले को भी डिप्टी सीएम बनाने की मांग उठ गई है। रायपुर में भी बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, कुरुद से अजय चंद्राकर, नवागढ़ के दयालदास बघेल, सब पहले की भाजपा सरकारों में मंत्री रहे हैं। बस्तर में केदार कश्यप और लता उसेंडी मंत्री रह चुकी हैं। विक्रम उसेंडी विधायक के अलावा सांसद भी रहे हैं। डॉ. रमन सिंह को स्पीकर की जिम्मेदारी देने की चर्चा है।

पहली बार जीते जिन विधायकों को मंत्रिमंडल में लेने की बात हो रही है, उनमें अरुण साव, ओपी चौधरी और विजय शर्मा शामिल हैं। पहली बार जीते राजेश अग्रवाल ने उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के गढ़ में सेंध लगाई। सरगुजा सीट संभागीय मुख्यालय भी है। सांसद के रूप में गोमती साय के पास एक बड़ा क्षेत्र था, अब उन्हें उससे कम वजन वाले ओहदे में काम करना है।

इस तरह बीजेपी विधायकों में करीब दो दर्जन ऐसे हैं, जिनको दावेदार कहा जा सकता है। यहां जगह 13 की ही है, सूची आने पर मालूम होगा कि इनमें से किन-किन का सितारा चमका।

कल्पना से परे नेता की अमीरी

कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य धीरज साहू के रांची, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के ठिकानों पर की गई छापेमारी में 500 करोड़ से ज्यादा रकम की आयकर विभाग और बैंकों के अधिकारियों ने बरामद की है। गिनती पूरी नहीं हुई है, नोट गिनने की मशीन हांफ रही हैं। भारत में अब तक की यह सबसे बड़ी नगदी की बरामदगी भी बताई जा रही है।

दिलचस्पी हो सकती है कि इस नेता ने राज्यसभा का नामांकन भरते समय शपथ पत्र में अपनी कितनी प्रॉपर्टी बताई थी? सिर्फ 34 करोड़ 84 लाख रुपये! अपने ऊपर उन्होंने 2.36 करोड़ रुपये की देनदारी भी दिखाई। टैक्स रिटर्न में सालाना आमदनी बताई थी 1 करोड़ रुपये। बैंकों में अपनी जमा रकम 15 लाख दिखाई, पत्नी के नाम केवल 1.25 लाख और दो आश्रितों के नाम पर करीब 10 लाख 84 हजार रुपये। बाकी कुछ जमा योजनाओं में निवेश है, घर, जेवर, बाइक, कार आदि हैं।

मगर, एफिडेविट में कमाई और कुल प्रॉपर्टी की जो घोषणा है, वह तो बरामद रकम का एक छोटा हिस्सा भी नहीं है। मुमकिन है नगदी के अलावा जमीन-जायदाद और मिलें।
बीजेपी नेताओं ने धीरज साहू की एक पोस्ट सोशल मीडिया ढूंढकर पर डाली है, जिसमें उन्होंने नोटबंदी के फैसले की आलोचना की थी। मगर यह जब्ती बताती है कि नोटबंदी से उनका ज्यादा कुछ बिगड़ा नहीं। कांग्रेस ने सांसद पर कोई एक्शन नहीं लिया है लेकिन यह जरूर कहा है कि ये रुपये कहां से आए, उनको बताना चाहिए। आयकर विभाग उन पर क्या कार्रवाई करता है, यह उसका मसला है लेकिन यह समझना मुश्किल नहीं है कि चुनावी शपथ-पत्र में सब ब्यौरा सही हो, यह जरूरी नहीं। हमारा नेता कई गुना अधिक अमीर हो सकता है, जितना हम उनके बारे में सोच पाते हैं।

छत्तीसगढ़ में यादव विधायक...

मध्यप्रदेश में यादव समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद सौंपने की हलचल छत्तीसगढ़ में भी है। यहां भी समाज के लोगों ने खुशियां बांटी, परंपरागत नृत्य करके भी इजहार किया। मध्यप्रदेश में यादव समाज के सात विधायक हैं। इनमें कांग्रेस के पास केवल एक है।  यह सीट सचिन सुभाषचंद्र यादव के पास आई है। सुभाष यादव अविभाजित मध्यप्रदेश में उप-मुख्यमंत्री रहे। राजस्थान में चार यादव समाज के विधायक हैं, दो भाजपा के, दो कांग्रेस के। इनमें से एक बाबा बालकनाथ का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए भी चला है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार जरूर नहीं बनी, पर यादव कांग्रेस प्रत्याशियों पर मतदाताओं ने ज्यादा भरोसा जताया। खल्लारी में द्वारिकाधीश यादव, चंद्रपुर में रामकुमार यादव तथा भिलाई नगर में देवेंद्र यादव को कांग्रेस टिकट पर जीत मिली। भाजपा के पास विधायक गजेंद्र यादव हैं, जिन्होंने दुर्ग शहर सीट से अरुण वोरा को हराया। इन आंकड़ों को देखकर अनुमान लगा सकते हैं कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव में यादव समाज का झुकाव कांग्रेस की ओर अधिक रहा होगा।  मगर, यह देखना होगा कि क्या मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनाने का फायदा छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिलेगा? 

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