राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : नए महाधिवक्ता का इंतजार
15-Dec-2023 4:04 PM
	 राजपथ-जनपथ : नए महाधिवक्ता का इंतजार

नए महाधिवक्ता का इंतजार

हाईकोर्ट में सुनवाई टलना कोई नई बात नहीं है पर सरकार बदलने के बाद एक और कारण इसके लिए खड़ा हो गया है। सरकार की पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं की नई टीम तैयार नहीं हुई है। हाईकोर्ट में हाल के दिनों में ध्वनि प्रदूषण और बिलासा एयरपोर्ट मामलों की सुनवाई अगले माह के लिए टल गई। कांग्रेस सरकार में नियुक्त महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं। सुनवाई के दौरान पिछली सरकार के दौरान नियुक्त अधिवक्ता, सरकार की ओर से दायित्व के चलते खड़े हो रहे हैं लेकिन जवाब दाखिल करने के लिए समय मांग रहे हैं। ऐसे मामले जिनमें प्रदेश सरकार भी पक्षकार है, उनकी सुनवाई में तेजी नए महाधिवक्ता और उनकी टीम की नियुक्ति होने के बाद ही आएगी। इसके लिए भाजपा शासनकाल में उप-महाधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में काम कर चुके कुछ नाम चल रहे हैं। प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री अरुण साव स्वयं हाईकोर्ट के उप-महाधिवक्ता रह चुके हैं। इसलिये काफी संभावना है कि महाधिवक्ता की नियुक्ति में उनकी राय महत्वपूर्ण होगी। भाजपा की पिछली सरकार में जुगल किशोर गिल्डा महाधिवक्ता थे। वे इस समय नागपुर तथा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं।

गजब का मैसेज 

भाजपा नेताओं के वाट्सएप ग्रुप में एक मैसेज की खूब चर्चा हो रही है।
यह कहा गया कि जल्दबाजी में लिया गया फैसला, आपको नंदकुमार साय बना देगा।
जोश, होश और हिन्दुत्व के लिए लिया गया निर्णय आपको विजय शर्मा बना देगा।
आगे लिखा है कि गलत लोगों से दोस्ती आपको कका भूपेश बघेल बना देगा।
जातिगत न्याय, आपको मोहम्मद अकबर बना देगा। 
अन्याय होने पर भी सहते रहने का परिणाम आपको टीएस बाबा बना देगा।
शांत निस्वार्थ भाव से अपनी संस्था, अपने परिवार, और अपने क्षेत्र के लिए ईमानदारी से काम करना  आपको विष्णुदेव साय बना देगा।
अभिमन्यु की तरह घेरकर मारने वालों के खिलाफ लडऩा आपको ईश्वर साहू बना देगा। 

कौन बनेंगे मंत्री?

कैबिनेट में जगह पाने के लिए सीनियर विधायकों में होड़ मची है।  मगर कुछ ऐसे चेहरे हैं जिन्हें कैबिनेट में जगह मिलना तय माना जा रहा है। इनमें पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी भी हैं। चौधरी के पहले सीएम, और फिर डिप्टी सीएम बनने की चर्चा थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मगर वजनदार विभाग के साथ मंत्री पद तय माना जा रहा है। 

भाजपा के तीन पूर्व मेयर लखनलाल देवांगन, किरणदेव, और प्रबोध मिंज अच्छी मार्जिंग से चुनाव जीतकर आए हैं। लुंड्रा से विधायक प्रबोध मिंज दो बार अंबिकापुर के मेयर रहे हैं। प्रबोध, उरांव मसीही समाज से आते हैं। सरगुजा इलाके में इस बार मसीही समाज का भाजपा को भरपूर समर्थन मिला। यही वजह है कि प्रबोध का नाम भी चर्चा में है।

दूसरी तरफ, कोरबा के पूर्व मेयर लखनलाल देवांगन पहले कटघोरा से भी विधायक रहे हैं। वो संसदीय सचिव भी थे। पार्टी ने इस बार कोरबा से चुनाव मैदान में उतारा, और भूपेश सरकार के मंत्री जयसिंह अग्रवाल को बुरी तरह हराया। लिहाजा, उन्हें कैबिनेट में जगह दिलाने के लिए संघ के पदाधिकारी भी प्रयासरत है। इससे परे किरणदेव जगदलपुर से रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतकर आए हैं। मेयर के रूप में  काफी सफल रहे हैं। संगठन के पसंदीदा हैं। देखना है कि तीनों पूर्व मेयर में किसे जगह मिलती है।

अब अध्यक्ष कौन?

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव के डिप्टी सीएम बनने के बाद पार्टी के अंदरखाने में नए अध्यक्ष की नियुक्ति पर विचार चल रहा है। इस सिलसिले में दुर्ग के सांसद विजय बघेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल का नाम प्रमुखता से उभरा है। इन सबके बीच प्रदेश प्रभारी ओम माथुर दिल्ली रवाना होने से पहले पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के घर भी गए थे। 

चर्चा है कि माथुर की बृजमोहन से सरकार, और संगठन की गतिविधियों पर बातचीत हुई है। प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने के बाद लोकसभा की सभी 11 सीट जीतने का लक्ष्य तय किया है। पार्टी के सबसे सीनियर विधायक बृजमोहन को कैबिनेट की तीन बड़ी कुर्सियों में जगह नहीं मिल पाई है। माथुर से चर्चा के बाद अंदाजा लगाया जा रहा है कि बृजमोहन को संगठन अथवा सरकार में कोई बड़ा ओहदा मिल सकता है। देखना है आगे क्या होता है। 

कांग्रेस में निलंबन, निष्कासन..

कांग्रेस, भाजपा दोनों में ही परंपरा रही है कि जीत मिलने पर श्रेय केंद्रीय नेतृत्व और उनके चेहरों को दिया जाता है और हार हो जाने का ठीकरा कार्यकर्ताओं पर फोड़ा जाता है। कांग्रेस की प्रदेश में अप्रत्याशित पराजय के बाद टिकट से वंचित पूर्व विधायक और हारे हुए प्रत्याशी प्रदेश के शीर्ष नेताओं भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव और कांग्रेस प्रभारी कुमारी सैलजा और चंदन यादव पर आरोप लगा रहे हैं। बृहस्पत सिंह ने सिंहदेव और कुमारी सैलजा पर, तो विनय जायसवाल ने चंदन यादव पर गंभीर किस्म के आरोप लगाए हैं। जयसिंह अग्रवाल ने सीधे बघेल को घेरा। महंत रामसुंदर दास इस पचड़े में नहीं पड़े कि बताएं किस वजह से रायपुर में सारी सीटें साफ हुई। उन्होंने अपनी हार को सबसे बड़ी बताते हुए खामोशी से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से ही इस्तीफा दे दिया।

कांग्रेस ने हार की समीक्षा के लिए अब तक कोई बैठक नहीं बुलाई। बैठक हो जाती तो शायद उसी में भड़ास निकल जाती और जो एक के बाद एक निष्कासन, निलंबन और कारण बताओ नोटिस जारी करने की नौबत ही नहीं आती। इधर असंतुष्ट 15-20 नेता हाईकमान से बात करने के लिए दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे थे- दो पूर्व विधायकों डॉ. जायसवाल व बृहस्पत सिंह को निष्कासित ही कर दिया गया और अग्रवाल को कारण बताओ नोटिस थमा दी गई।

कुछ महीनों में ही लोकसभा चुनाव हैं। मार्च 2024 के आखिरी सप्ताह में आचार संहिता लागू होने की संभावना है। इसी बीच प्रदेश में नई सरकार को अपनी पहाड़ जैसी घोषणाओं को पूरा करते हुए दिखने की जरूरत है। जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा है कि कांग्रेस के लिए यह मौका है कि वह एकजुट होकर लोकसभा के तत्काल भिड़ जाए, लेकिन जिस तरह टकराव अभी दिख रहा है वह खत्म नहीं हुआ तो फिर निराशा हाथ लगेगी।

दो दिग्गज, और चर्चा  

इन दिनों देश के तीन राज्यों में जबरदस्त जीत के बाद भाजपा के फैसले कई लोगों को समझ में नहीं आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश भी इन तीन राज्यों में शामिल हैं। दोनों ही जगह लंबे अरसे तक मुख्यमंत्री रहे हुए डॉ रमन सिंह और शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री फिर से बनने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन वैसा नहीं हुआ। अब ऐसी चर्चा है कि डॉक्टर रमन सिंह को छत्तीसगढ़ विधानसभा का अध्यक्ष बनाया जा रहा है, लेकिन शिवराज सिंह के आंसू पोंछते हुए, महिलाओं के उनके लिए रोते हुए वीडियो चारों तरफ फैल रहे हैं। इस बीच दिल्ली में भाजपा की जानकारी रखने वाले एक पत्रकार ने यह बताया है कि आने वाले महीनों में शिवराज सिंह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है, दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव के बाद रमन सिंह को लोकसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है, जिसके लिए उनका लोकसभा चुनाव लडक़र जीतना जरूरी होगा।

टिकट रद्द करने के मिले 2100 करोड़

यात्री, ट्रेन में सीटों की मारामारी के चलते टिकट कई सप्ताह पहले बुक करा लेता है,पर ट्रैवल प्लान बदलने के कारण उसको कई बार टिकट कैंसिल करानी पड़ती है। कई बार वेटिंग क्लीयर होने की उम्मीद होती है, नहीं हो पाती तो कैंसिल करा लेते हैं। बहुत बार ट्रेन ही रद्द हो जाती है, या फिर घंटों देर से चलती है। ऐसे सब मामलों में भी रेलवे की भारी भरकम कमाई है। एक आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला को रेलवे ने जवाब दिया है कि 2022-23 में लगभग 2109 करोड़ रुपये टिकट कैंसिल करने से उसे मिले हैं। बीते साल 1596 करोड़ मिले थे। 2020-21 में 710 करोड़ और 2019-20 में 1724 करोड़ मिले। 2020-21 में थोड़ी कम कमाई शायद इसलिए हुई क्योंकि कोविड महामारी के चलते अधिकांश ट्रेनों का परिचालन देशभर में बंद था। ट्रेन रद्द कराने के पीछे यात्री की कोई न कोई मजबूरी ही होती है। मगर रेलवे इनसे भी भरपूर कमाई कर रहा है। रेल टिकटों पर लिखा होता है कि यात्री ट्रेनों के किराये से हमारे खर्च की सिर्फ 57 प्रतिशत की भरपाई होती है, बाकी खुद वहन करता है। मगर, जिन्होंने यात्रा नहीं की, उनसे कितना कमा लिया, इसे टिकटों में नहीं छपा होता।

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