राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : सर्वे और टिकट काटने की लंबी कहानी
16-Dec-2023 4:28 PM
राजपथ-जनपथ : सर्वे और टिकट काटने की लंबी कहानी

सर्वे और टिकट काटने की लंबी कहानी  


विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में जंग छिड़ी हुई है। टिकट से वंचित पूर्व विधायक पार्टी के रणनीतिकारों के खिलाफ मुखर हैं। पूर्व विधायकों के बयान से कांग्रेस में हडक़म्प मचा हुआ है।

दरअसल, जिन 22 विधायकों की टिकट कटी थी, उनमें से दो सत्यनारायण शर्मा और देवती कर्मा ने तो खुद होकर चुनाव नहीं लडऩे का ऐलान कर दिया था। उनकी जगह बेटों को टिकट दी गई थी।

जिन विधायकों की टिकट कटी थी, उनके पीछे यह आधार दिया गया था कि सर्वे रिपोर्ट में उनकी पोजिशन अच्छी नहीं है। यानी उन्हें जीतने लायक नहीं माना गया था। सीएम भूपेश बघेल कई बार कह चुके हैं कि सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही टिकट काटी गई है। अब पार्टी के भीतर सर्वे एजेंसियों की रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। अंदर की खबर यह है कि पार्टी ने चुनाव से पहले तीन सर्वे एजेंसियों की सेवाएं ली थी। हल्ला है कि इन एजेंसियों को करोड़ों का भुगतान किया गया था।

जिन एजेंसियों की सेवाएं ली थी उनमें से एक बेंगलुरू की एजेंसी है। इसके अलावा दो अन्य एजेंसी रैफी के कर्ता-धर्ता कोई चौधरी है। एक अन्य एजेंसी एक वकील से जुड़ी है। कहा जा रहा है कि एक एजेंसी सीधे कांग्रेस हाईकमान को रिपोर्ट करती रही है। बाकी दो एजेंसियां भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा को रिपोर्ट करती रही हैं।

सुनते हैं कि कर्नाटक की एजेंसी ने चुनाव के दो महीने पहले अपनी रिपोर्ट में बता दिया था कि कांग्रेस को अधिकतम 40 सीटें ही मिल सकती हैं। यह भी बताया कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं में सरकार को लेकर काफी नाराजगी है। साथ ही चेताया था कि कार्यकर्ताओं का सहयोग प्रत्याशियों को नहीं मिलेगा। बाकी दो एजेंसियों की राय इस  के ठीक उलट थी। उनकी रिपोर्ट में सरकार को लोकप्रिय बताई गई थी। विधायकों के खिलाफ नाराजगी का भी जिक्र किया था। बताते हैं कि इस ने राहुल गांधी के साथ प्रदेश के चुनिंदा नेताओं की बैठक में अपना प्रजेंटेशन दिया था।

बाद में कोर कमेटी की बैठक में तीनों सर्वे एजेंसियों के प्रमुखों को बुलाया गया था। यह बैठक सीएम हाऊस में हुई थी।  चर्चा है कि बैठक में जिन विधायकों के खिलाफ ज्यादा असंतोष हैं उनकी टिकट काटने का फैसला लिया गया। इसके बाद कुछ जगहों पर तो दिग्गज नेता भूपेश बघेल, टी.एस.सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू व डॉ.चरणदास महंत ने अपने करीबियों को अडक़र टिकट दिलवाया।

भूपेश ने बलौदाबाजार से छाया वर्मा की टिकट फाइनल न होने पर धरसीवां से टिकट दिलवा दिया। इसी तरह भूपेश वैशाली नगर से मुकेश चंद्राकर को टिकट दिलवाने में सफल रहे जबकि वहां कई और मजबूत नाम थे। टी.एस.सिंहदेव की वजह से बृहस्पत सिंह और चिंतामणि की टिकट काटकर नया प्रत्याशी उतारा गया। ताम्रध्वज साहू ने तो लोरमी से थानेश्वर साहू को टिकट देने की जिद कर जीताने की भी गारंटी ली। इसमें डॉ.चरणदास महंत भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी अपने करीबी विजय केशरवानी को बेलतरा से टिकट दिलवा दिया। दिलचस्प बात यह है कि सिंहदेव और ताम्रध्वज जैसे नेता, जो कि जीताने की गारंटी लेकर अपने करीबियों को टिकट दिला दिए थे, वो खुद चुनाव हार गए। बाकी सिफारिशी प्रत्याशियों का भी दुर्गति रही। जिन 22 सीटों पर प्रत्याशी बदले गए थे, उनमें से मात्र 6 जगहों पर पार्टी जीतने में कामयाब रही। अब जब टिकट काटने का फार्मूला फेल रहा तो टिकट से वंचित पूर्व विधायकों की नाराजगी वाजिब दिख रही है। टिकट से वंचित ये सारे पूर्व विधायक भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं, और अब जब ये एफआईआर कराने का फैसला ले लिया है, तो खुद भूपेश बघेल के लिए असहज की स्थिति पैदा हो गई है। क्योंकि दो सर्वे एजेंसियां उनकी अपनी पसंद की थी। देखना है कि नाराज पूर्व विधायकों को भूपेश बघेल और पार्टी कैसे समझाते हैं। 

रोशनी सिर्फ ईंटों पर...

धूल से लिपटी हुई इस बच्ची को मां छोड़ गई है। गोद में खेलने वाले शिशु की रखवाली के लिए। खयाल इतना है कि वह दूध की बोतल और पानी का गिलास भी रख गई है। 
ईंटों पर लिखा है- रोशनी। तस्वीर झारखंड की है, पर यह परिवार किसी दूसरे राज्य से प्रवास करने वाला भी हो सकता है। छत्तीसगढ़ का भी हो सकता है। यहां से प्रवास करने वाले श्रमिक भी दूसरे राज्यों में इसी तरह संघर्ष भरा जीवन जीते हैं।

फिलहाल सिर्फ पुराना बोनस

विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपनी घोषणाओं में आधिकारिक रूप से कर्ज माफी को शामिल नहीं किया था। इसके विपरीत कुछ नेताओं ने बीच-बीच में कहा है कि वे कर्ज माफी के खिलाफ हैं। मगर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान किसानों के 2 लाख तक का कर्ज माफ करने का वादा किया था। पूर्व मंत्री, विधायक उमेश पटेल ने विजय शर्मा से अपना वादा पूरा करने की मांग की है।

मंत्रिपरिषद की पहली बैठक में मोटे तौर पर 25 दिसंबर को पूर्व की भाजपा सरकार के दौरान रुका हुआ धान बोनस और 18 लाख प्रधानमंत्री आवास पर फैसला लिया गया। प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदी पर फैसला नहीं लिया गया, जबकि इस समय धान खरीदी तेजी से हो रही है। किसान समिति प्रबंधकों से अधिक धान लेने की मांग कर रहे हैं तो उनको बताया जा रहा है कि कोई आदेश नहीं मिला है। वहीं 3100 रुपये के भुगतान के लिए समर्थन मूल्य के अलावा बोनस की बाकी राशि किस तरह कब दी जाएगी, इसे लेकर भी केबिनेट ने कुछ तय नहीं किया।

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