राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : नोटों के पीछे का राज क्या है?
19-Sep-2023 5:40 PM
राजपथ-जनपथ :  नोटों के पीछे का राज क्या है?

नोटों के पीछे का राज क्या है?
क्या कांग्रेस विधायक रामकुमार यादव पार्टी की अंदरूनी खींचतान के शिकार हुए हैं? इस पर पार्टी के अंदरखाने में चर्चा चल रही है। कुछ लोग बताते हैं कि विधायक का नोटों के बंडल के साथ वीडियो लीक होने के पीछे स्थानीय कांग्रेस नेताओं की भूमिका रही है। 

कहा जा रहा है कि वीडियो सक्ती रेस्टहाऊस का है, और तीन माह पुराना है। हल्ला है कि विधायक महोदय, दो अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ रेत के कारोबार का हिसाब किताब करने बैठे थे। दोनों कांग्रेस नेता रेत के कारोबार से जुड़े रहे हैं। वो पलंग पर नोटों का बंडल रखकर विधायक के साथ चर्चा में मशगुल थे, तभी एक अन्य शख्स ने वीडियो बना दिया। 

जिस शख्स ने वीडियो बनाया है वो खुद कैमरे में नजर नहीं आ रहा है, लेकिन उसकी पहचान पलंग पर बैठे कांग्रेस नेता के भाई के रूप में  की गई है। चर्चा है कि विधायक से जुड़े कांग्रेस नेताओं ने ही वीडियो बनवाया है। कांग्रेस में प्रत्याशी चयन का दौर चल रहा है, ऐसे में सोच समझकर वीडियो को लीक कराया गया। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं है। मगर सीएम भूपेश बघेल ने खुलकर विधायक का बचाव किया है। बावजूद इसके विवाद थम नहीं रहा है। चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी सैलजा ने पूरे प्रकरण की जानकारी ली है, और दावा किया जा रहा है कि विधायक की टिकट भी खतरे में पड़ सकती है। देखना है कि आगे क्या होता है। 

रामगोपाल का विकल्प 
प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल निजी कारणों से सक्रिय राजनीति से दूर हैं। मगर पार्टी उनकी जगह किसी और को कोष का दायित्व संभालने की जिम्मेदारी नहीं दे रही है। पार्टी के अंदरखाने में रामगोपाल के विकल्प के तौर पर चार कारोबारी, और अनुभवी नेताओं के नाम पर चर्चा हुई थी। एक नाम फाइनल भी हो गए थे, लेकिन जिस कारोबारी नेता के नाम पर सहमति बनी थी उनका कुछ समय पहले ही ऑपरेशन हुआ है। लिहाजा, उन्होंने जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया। 

चुनाव में कोषाध्यक्ष की भूमिका काफी अहम होती है। प्रत्याशियों के खर्च से लेकर रोजमर्रा के संगठन की गतिविधियों के संचालन के लिए फंड की व्यवस्था की जिम्मेदारी उन पर होती है। पार्टी नेताओं का मानना है कि रामगोपाल अब तक यह काम बेहतर ढंग से निभाते रहे हैं। अब वो खुद ईडी की रडार पर हैं, तो उनका विकल्प ढूंढना कठिन है। एक फार्मूला यह भी है कि अलग-अलग संभागों में फंड से जुड़े काम स्थानीय प्रमुख नेताओं को सौंप दिए जाए। देखना है कि पार्टी फंड मैनेजमेंट किस तरह करती है। 

न नौ मन तेल होगा...
इन दिनों जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) की जोगी शपथ रथ यात्रा प्रदेश में चल रही है, जिसमें 30 दिन के भीतर 60 विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है। जेसीसी ने पिछले चुनाव की तरह ही अपने चुनावी वादों का शपथ-पत्र तैयार किया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व विधायक अमित जोगी ने 10 वायदे किए हैं। कहा है कि वायदे पूरे नहीं कर सका, तो सूली पर चढ़ा देना।  

इन 10 घोषणाओं में वह सब है जो छत्तीसगढ़ को सपनों का प्रदेश बनता है। जैसे गरीब परिवारों को पांच लाख रुपए की आर्थिक मदद, 2 बीएचके मकान, बेरोजगारों को तीन हजार रुपए भत्ता, 4000 रुपए क्विंटल धान, सरकारी और निजी संस्थानों में 95 प्रतिशत रिजर्वेशन, सभी का मुफ्त इलाज, देश विदेश में उच्च शिक्षा के लिए 100 प्रतिशत अनुदान। और भी ऐसे ही कुछ।

एक आम छत्तीसगढिय़ा वोटर को इससे ज्यादा और क्या चाहिए? मगर परेशानी यह है कि जेसीसी की सरकार बनने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। यदि कांग्रेस और भाजपा में से कोई भी दल ऐसा करने की घोषणा करें तो जरूर उसकी जीत पक्की हो सकती है। वैसे भी दोनों दलों में घोषणाओं की होड़ तो लगी हुई है ही।

नोट की तरफ नहीं देखने का अर्थ
किसी घर के सामने यदि रोजाना मारुति कार खड़ी हुई देखेंगे तो आपका ध्यान उधर नहीं जाएगा। लेकिन वहीं अगर मर्सिडीज़ खड़ी हो गई तो चौंक जाएंगे, उसे निहारते रह जाएंगे। पता करेंगे कि किसकी है, कैसे आई। जिज्ञासा का मनोविज्ञान कहता है कि कोई भी अनोखा दृश्य हमें आकर्षित करता है और उसके बारे में ज्यादा जानने के लिए उत्सुक होते हैं। 15 सेकंड का एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ है जिसमें दिखाई दे रहा है कि नोटों के गड्डियों के बगल में कुर्सी पर कांग्रेस विधायक रामकुमार यादव बैठे हुए हैं। उनका जवाब यह है कि इन नोटों की तरफ वे देख नहीं रहे हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि इतने नोट वे अक्सर देखा करते हैं, उनके लिए यह कौतूहल की बात नहीं है? 

पुराने अन्दाज के संगठन महामंत्री
भाजपा में संगठन महामंत्री का बड़ा अहम पद और प्रतिष्ठा होती है । एक तरह से प्रदेश के हाईकमान वही होते हैं। इस पद पर संघ के ही पूर्ण कालिक व्यक्ति को बिठाया जाता है। लेकिन भाजपा में आने के बाद उनकी कद,काठी रहन सहन एटीट्यूट सब बदल जाता है । कोई स्व.गोविंद सारंग की तरह तो कोई सौदान सिंह की तरह चर्चित हो जाते है।
 
वर्तमान के पवन साय को लेकर पार्टी के ही लोगों ने कई तरह से कान भरे। इसके प्रभाव में ओम माथुर, नितिन नवीन, अरुण जामवाल तक आए लेकिन बाद में सभी का मन और दृष्टिकोण बदलना पड़ा। अब तो सब कहते हैं पवन जी के पास जाइए। ये तो हुई संगठन के कामकाज की बात। व्यक्तिगत रूप में भी उतने ही लो प्रोफाइल वाले। 
पिछले दिनों एक नेता जशपुर के पास इनके घर गए। भाजपा के सत्ता में रहते संगठन महामंत्री बने साय का घर लगता ही नहीं। वरना लोग पुराने भाई साहब की विदिशा में कोठी की भी चर्चा करते हैं। कवेलू का मकान।घर में वाहन के नाम पर एक साइकल। कांसे ,जर्मन और पीतल के बर्तन, लकड़ी का पलंग आदि आदि। रात में घर में कुंडी नहीं लगती। पवन साय दरवाजे खोलकर सोते हैं। वही आदत ठाकरे परिसर में भी । दिन में सामान्य भोजन और रात को सिर्फ दाल का पानी, मीनू होता है । संघ में इनसे अच्छा लाठीचार्ज करने वाला ( लट्ठमार, दंड प्रदर्शक) नहीं है। रोज की प्रैक्टिस करते हैं।

हाथियों से मौतें, हाथियों की मौत
कोरबा जिले के कटघोरा वन मंडल में इस समय 45 से अधिक हाथियों का दल विचरण कर रहा है। ये हाथी केंदई, पसान, कोरबी आदि इलाकों में दिखाई दे रहे हैं। यहां पिछले सप्ताह हाथियों के हमले की तीन घटनाएं हुईं। इनमें तीन महिलाओं सहित चार लोगों की मौत हो गई। इसी से लगे मरवाही वन मंडल में अगस्त महीने से पांच हाथियों का दल विचरण कर रहा है। दोनों ही जगह पकती हुई फसल को रौंदकर हाथियों ने बहुत से किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया। इधर धरमजयगढ़ वन मंडल में 55 हाथियों का दल घूम रहा है। रविवार की खबर है कि हाथियों ने 25 किसानों की दर्जनों एकड़ फसल बर्बाद कर दी।  कोरबा वन मंडल में भी 22 हाथियों का दल अगस्त से मौजूद है।

ऐसा नहीं है कि हाथी ही ग्रामीणों की जान ले रहे हैं। बीते 10 सितंबर को धरमजयगढ़ वन मंडल में एक हाथी की फिर करंट लगने से मौत हो गई। यहां ज्यादातर हाथियों की मौत बाढ़ में करंट प्रवाहित करने से ही हो रही है स्वाभाविक मौत कम हैं। याद होगा कि कोरबा जिले के पसान इलाके में एक हाथी के शावक को गांव वालों ने पिछले साल मार डाला और उसके शव को जमीन में गाड़ दिया था। इसमें एक जनपद सदस्य सहित 12 लोग गिरफ्तार किए गए थे। 

जाहिर है कि हाथियों और आदिवासियों के बीच द्वंद्व बढ़ता जा रहा है। हाथी लगातार आक्रामक हो रहे हैं और अपनी फसल तथा अपनी सुरक्षा की चिंता ग्रामीण भी हमलावर हो रहे हैं। मरवाही वन मंडल के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो यह सारा टकराव संचालित और प्रस्तावित कोयला खदान क्षेत्रों में हो रहा है। हाल के दिनों की खबरों को देखें। 

एसईसीएल ने घोषणा की है कि एशिया के इस सबसे बड़े कोरबा जिले की गेवरा कोयला खदान को वह दुनिया का सबसे बड़ा खदान बनाने जा रही है। उत्पादन बढ़ाकर डेढ़ गुना किया जाएगा। यहां से परिवहन के लिए पेंड्रारोड तक रेल कॉरिडोर का काम तेजी से चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी परियोजना के पहले चरण का कुछ दिन पहले अपने रायगढ़ प्रवास के दौरान उद्घाटन किया। इसी से लगे पेलमा कोलियारी पर खनन शुरू करने के लिए पिछले महीने एसईसीएल ने अडानी की एक कंपनी के साथ एमडीओ किया है। 

देश का 19.8 प्रतिशत कोयला छत्तीसगढ़ में है। संयोग से हाथियों का प्राकृतिक आवास भी इसी क्षेत्र में है। झारखंड और उड़ीसा से खदानों के कारण विस्थापित हाथी भी छत्तीसगढ़ में घूम रहे हैं। खदानों का विस्तार तो छत्तीसगढ़ में बड़ी तेजी से हो रहा है लेकिन हाथियों के लिए सुरक्षित गलियारा बनाने की योजनाएं कागजों में ही है। आंशिक रूप से बादलखोल अभयारण्य का एक हिस्सा एलिफेंट कॉरिडोर के रूप में मौजूद है। पर, लेमरू रिजर्व पर अभी सिर्फ फाइल चल रही है। ([email protected])

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