राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : प्रोटेम का टोटका
17-Dec-2023 4:18 PM
	 राजपथ-जनपथ : प्रोटेम का टोटका

प्रोटेम का टोटका 

प्रदेश में अब तक जितने भी प्रोटेम स्पीकर हुए हैं, वो बाद में मंत्री नहीं बन पाए। हालांकि प्रोटेम स्पीकर की भूमिका स्पीकर, और नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने तक ही सीमित रहती है। मंत्री पद से जुड़ी कोई बाध्यता भी नहीं है। बावजूद इसके प्रोटेम स्पीकर को मंत्री बनने का मौका नहीं मिला। अब जब रामविचार नेताम प्रोटेम स्पीकर बनाए गए हैं, तो अंदाजा लगाया जा रहा है कि पूर्व में चली आ रही धारणा बदल सकती है। 

नेताम पांच बार के विधायक हैं। उन्हें कैबिनेट में जगह मिल सकती है। हालांकि उनसे पहले के प्रोटेम स्पीकर को मंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाया था। राज्य बनने के बाद महेन्द्र बहादुर सिंह प्रोटेम स्पीकर बनाए गए थे। उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। इसके बाद राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल प्रोटेम स्पीकर रहे, उस समय कांग्रेस की सरकार ही बदल गई थी। ऐसे में शुक्ल के मंत्री बनने का सवाल ही नहीं था।  

इसके बाद की विधानसभा में बोधराम कंवर ने प्रोटेम स्पीकर के रूप में नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाई। उस समय भी कांग्रेस सत्ता से बाहर रही इसलिए सीनियर कांग्रेस विधायक कंवर को मौका नहीं मिला। वर्ष-2013 में सीनियर विधायक सत्यनारायण शर्मा को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया। तब भी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी, और  सत्यनारायण शर्मा मंत्री बनने से रह गए। वर्ष-2018 में 15 साल की भाजपा की सरकार हट गई, और कांग्रेस की सत्ता में वापिसी हुई।  इसके बाद कांग्रेस विधायक रामपुकार सिंह प्रोटेम स्पीकर बनाए गए, लेकिन रामपुकार के लिए मंत्रिमंडल में जगह नहीं बनी।  

लोक निर्माण या लोक व्यवधान

राजधानी का सबसे व्यस्ततम रिंग रोड में रिंग रोड एक को गिना जाता है। टाटीबंद से सरोना, रायपुरा , भाठागांव, पचपेड़ी नाका से तेलीबांधा तक इस रिंग रोड का बहुत बुरा हाल है। सर्विस रोड में बड़े शो रूम की गाडिय़ां और ट्रक खड़े रहते हैं। 

लेकिन सरकार के किसी विभाग को इससे कोई वास्ता नहीं है, परिवहन विभाग को फुर्सत नहीं है। सर्विस रोड में रोज स्कूली बच्चे बड़ी संख्य़ा में आटो और स्कूटी से गुजरते हैं। लोक निर्माण विभाग को इसके सर्विस लेन में मुरम डालना था, मुरम तो नहीं मिट्टी उँडेल दी गई है। दीपावली के पहले सडक़ पर मिट्टी के 20 ढेर लगाए गए थे वे अब तक बराबर नहीं किये गए हैं। सर्विस लेन का आधा हिस्से में ढेर लगा है। वाहन दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। लगता है कि अफसरों भी मंत्रिमंडल के इंतज़ार में हैं।

बगावत की आहट एमपी से...?

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने नये चेहरों को मौका दिया। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा तो पहली बार ही विधानसभा पहुंचे हैं। इन राज्यों में क्रमश: वसुंधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान और डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री रह चुके हैं। चुनाव अभियान के दौरान ही भाजपा नेतृत्व ने बड़े बदलाव का संकेत दे दिया था। वसुंधरा राजे के अनेक समर्थक विधायकों की टिकट पहले चरण में काट दी गई। हालांकि दूसरी बार की सूची में कई करीबियों का नाम भी आया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी ऐसा हुआ। मोदी ने इन तीनों राज्यों के प्रचार में किसी भी क्षेत्रीय नेता का उल्लेख अपने चुनावी दौरों में नहीं किया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भी। वे सिर्फ मोदी की गारंटी की बात कर रहे थे।

मुख्यमंत्री चयन के बाद चौहान ने भी बाकी नेताओं की तरह खुद को पार्टी का अनुशासित कार्यकर्ता बताते हुए नेतृत्व के निर्णय को स्वीकार करने की बात कही, लेकिन पद से हटने के तुरंत बाद वे प्रदेश में दौरे कर रहे हैं। अपने सोशल मीडिया पेज पर वे लगातार ऐसी फोटो और वीडियो डाल रहे हैं, जिनमें महिलाएं भावुक होकर उनसे गले लग रही हैं, रो रही हैं। चौहान बयान भी दे रहे हैं कि मुझे मामा और लाडली बहनों के भाई का फर्ज निभाने से कोई नहीं रोक सकता। जब यह चर्चा निकली कि उनको पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है, चौहान ने कह दिया कि वे मध्यप्रदेश छोडक़र कहीं नहीं जाएंगे। चौहान ने लाडली बहना योजना पर चुनाव को फोकस किया था। भाजपा को इसका चुनाव में बहुत लाभ मिला। इसे महतारी वंदन योजना के नाम से छत्तीसगढ़ के संकल्प पत्र में भी शामिल किया गया, यहां भी फायदा हुआ।

ऐसा कहा जा सकता है कि इन तीनों राज्यों में सिर्फ मध्यप्रदेश ही ऐसा है जहां से मुख्यमंत्री को हटाया गया। बाकी दोनों में तो पूर्व मुख्यमंत्रियों का दावा था। शायद चौहान इसीलिए व्याकुल दिख रहे हैं। चौहान ने अपने सोशल मीडिया पेज पर दल का कोई चिन्ह नहीं रखा, सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री लिख रखा है। वे अपनी नाराजगी छिपा नहीं पा रहे हैं। शायद छला हुआ महसूस कर रहे हैं। सवाल यह आ रहा है कि क्या वे उसी राह पर चलने जा रहे हैं, जिस पर कभी उमा भारती और कल्याण सिंह गए थे। राजस्थान में वसुंधरा राजे ने अपने समर्थक विधायकों के साथ भोज का आयोजन कर नेतृत्व पर दबाव बनाया था, पर बाद में भजनलाल को आशीर्वाद दिया। छत्तीसगढ़ में स्पीकर बनाये जाने के निर्णय पर डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि मुझसे पूछ कर नहीं दिया गया है पद, पर दिया गया है तो जिम्मेदारी निभाएंगे। यानि तीनों प्रदेशों के नेतृत्व परिवर्तन में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच ‘बेहद खुशी’ जैसी बात कहीं नहीं है। मंत्रिमंडल के गठन के बाद यह और स्पष्ट होगा।

तस्करी के लिए सडक़ बना दी...

छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़, महासमुंद, गरियाबंद, धमतरी, कोंडागांव, बस्तर (जगदलपुर) और सुकमा जिले ओडिशा राज्य से जुड़ते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद हर साल सीजन में हजारों क्विंटल धान ओडिशा के जिलों से तस्करी कर छत्तीसगढ़ की सोसाइटियों में खपाया जाता है। यह शिकायत इस साल भी है। चेक पोस्ट बनाये गए हैं लेकिन कच्चे रास्तों से सीमा पार कर ली जाती है। जो धान भारी वाहनों में भरकर लाया जाता है, उसके लिए बिचौलिये चेक पोस्ट पर तैनात कर्मचारियों से साठगांठ भी कर लेते हैं। इस बार तो चुनाव के चलते करीब एक माह तक धान तस्करी पर निगरानी भी ठीक तरह से नहीं हुई। वैसे कार्रवाई भी हो रही है। हाल के कुछ दिनों में ही एक हजार क्विंटल से अधिक तस्करी का धान जब्त किया गया है। पर यह तस्करी का छोटा सा टोकन जैसा हिस्सा है। अभी एकड़ पीछे 15 क्विंटल धान खरीदने की ही छूट है। जब सरकार 21 क्विंटल खरीदने लगेगी तो किसानों के पंजीयन का बिचौलिये और अधिक इस्तेमाल कर सकेंगे। धान तस्करी का यह कारोबार कितना बड़ा है, उसका अंदाजा इस सडक़ से लगाया जा सकता है। ओडिशा के बरगढ़ जिले की सोहेला तहसील के झांजी पहाड़ पर यह कच्ची सडक़ जेसीबी मशीन से तैयार की गई है। दावा है कि यह सडक़ जंगल काटकर अवैध रूप से तैयार की गई है, ताकि तस्करी का धान आसानी से छत्तीसगढ़ पहुंचाया जा सके।  

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