राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : एजी कौन?
21-Dec-2023 4:20 PM
राजपथ-जनपथ : एजी कौन?

एजी कौन?

सरकार के सर्वोच्च विधि अधिकारी यानी एडवोकेट जनरल की नियुक्ति पर मंथन हो रहा है। भूपेश सरकार के हटने के बाद एजी सतीश चंद्र वर्मा ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से एजी दफ्तर में नई नियुक्तियों पर चर्चा चल रही है। 

आम तौर पर एजी की नियुक्ति में सरकार राजनीतिक प्रतिबद्धता-विचारधारा को भी ध्यान में रखती है। भूपेश सरकार ने सबसे पहले नामी वकील कनक तिवारी को एजी बनाया था, लेकिन उनकी सरकार से पटरी नहीं बैठ पाई, और फिर सरकार का कहना रहा कि कनक तिवारी ने  इस्तीफा दे दिया, कनक तिवारी आज भी कहते हैं कि उन्होंने कोई इस्तीफ़ा नहीं दिया था। इसके बाद सतीश चंद्र वर्मा को एजी बनाया गया। भूपेश सरकार पूरे पांच साल मुकदमों में उलझी  रही, और बड़े प्रकरणों की पैरवी के लिए सुप्रीम कोर्ट से वकील बुलाए जाते रहे। 

इन सबके बीच एडिशनल एजी, डिप्टी एजी तो सालभर के भीतर कई बार बदले गए। इससे पहले रमन सरकार में ऐसी स्थिति नहीं बनी थी। अब एजी दफ्तर को व्यवस्थित करने के लिए अनुभवी और काबिल वकीलों को नियुक्त करने के लिए रायशुमारी चल रही है। एजी के लिए रमन सरकार के समय के पूर्व एजी जेके गिल्डा का नाम चर्चा में है। हालांकि गिल्डा को एजी बनाए जाने के समय भी काफी विवाद हुआ था। 

रमन सरकार में एडिशनल अथवा डिप्टी एजी रहे कई सीनियर वकील भी एजी की दौड़ में बताए जा रहे हैं। पूर्व एडिशनल एजी किशोर भादुड़ी, यशवंत सिंह ठाकुर के अलावा प्रफुल्ल भारत चर्चा में है। इससे परे सीनियर एडवोकेट मनोज परांजपे, अपूर्व कुरुप, आशीष श्रीवास्तव, प्रतीक शर्मा, व विवेक शर्मा के नाम की चर्चा है। संकेत है कि हफ्ते भर के भीतर एजी, और एडिशनल एजी व डिप्टी एजी बनाए जा सकते हैं। 

बेचैन भावी मंत्री 

कैबिनेट का जल्द विस्तार होने वाला है। सीनियर विधायकों के समर्थक काफी सक्रिय हैं। ऐसे ही एक संभावित मंत्री ने अपने करीबी समर्थकों को अभी से हिदायत दे रखी है कि मंत्री बनने के बाद भी पहले जैसी स्थिति नहीं रहेगी। रमन राज में ज्यादा कोई देखने वाला नहीं था। अब दिल्ली के लोग माइक्रोस्कोप लगाकर बैठे हैं। सीनियर विधायक तो मंत्री पद को लेकर सशंकित हैं। 

इन दिनों एक पूर्व मंत्री तो काफी बेचैन दिख रहे हैं। वजह यह है कि पूर्व मंत्री का चुनाव में बजट से अधिक खर्च हो गया। अब क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण में उनका नाम फिट बैठता नहीं दिख रहा है। पार्टी के भीतर रोज नए-नए फार्मूले की चर्चा है। हाल ये है कि ओपी चौधरी को छोडक़र कोई भी सूची में अपना नाम होने का दावा नहीं कर पा रहा है। पिछले दिनों कैबिनेट के विस्तार के हल्ला मात्र से कई सीनियर विधायकों ने राजभवन का फोन घड़घड़ा दिया था। देखना है कि किसका नंबर लग पाता है।

साय असहाय..

भारतीय जनता पार्टी से बेहद नाराज होकर, अपने चार दशक पुराने रिश्ते को तोडक़र नंद कुमार साय ने इस साल महीने में कांग्रेस का दामन थाम लिया। सरगुजा जशपुर में वैसे तो कांग्रेस के पास 2018 में पूरी की पूरी सीट आ गई थी लेकिन 2023 के चुनाव में उनका इस्तेमाल आंदोलनरत आदिवासियों को संतुष्ट करने और धर्मांतरण के मुद्दे पर भाजपा के प्रचार को शिथिल करने के लिए किया जा सकता था। मगर इसकी जरूरत महसूस नहीं की गई। कांग्रेस प्रवेश करते ही उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष बना दिया गया। यह एक सांत्वना थी। चुनाव के कुछ महीने पहले ऐसी नियुक्ति का अधिक महत्व नहीं था। भाजपा में रहते हुए मुख्यमंत्री पद का दावा करने वाले साय को बड़ा झटका तब लगा जब उन्होंने अपने प्रभाव की तीन सीटों में से किसी भी एक से टिकट देने का विकल्प पार्टी के सामने रखा, लेकिन उनके लिए जगह नहीं बनाई गई। संभवत: कांग्रेस से अलग होने का विचार वे इतनी जल्दी नहीं करते यदि उन्हें टिकट मिल जाती या फिर नहीं मिलने की स्थिति में प्रदेश में कांग्रेस दोबारा सत्ता पर काबिज हो जाती। 

कांग्रेस छोडऩे की घटना पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने उनको अपना मार्गदर्शक और वरिष्ठ नेता बताया है। भाजपा में उनके वापस लौटने की संभावना पर भी उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया ही दी है। इधर पूर्व मंत्री अमरजीत भगत का बयान भी दिलचस्प है। उनका कहना है कि भाजपा ने साय को कांग्रेस में जासूसी के लिए भेजा था। भगत अपने बयान का शायद कुछ सबूत न दे सकें, मगर इससे यह साबित होता है कि साय को कांग्रेस में लेने से पहले भगत जैसे सरगुजा के प्रमुख नेताओं से भी कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया था।

आखिर साय, भाजपा छोड़ कांग्रेस में और फिर बाहर निकल आने में जल्दबाजी में क्यों थे? वैसे प्रवेश के समय ही भाजपा के लोग कह रहे थे कि जाने से ज्यादा वो कितने दिन रहते हैं यह देखने वाली बात होगी। 

अब सब उनके भाजपा प्रवेश को लेकर जेल बंगले से ठाकरे परिसर तक चर्चा है। साय के एक करीबी ने संगठन के नेताओं सीएम शपथ के बाद कॉल किया था। उसी रणनीति के तहत वे सीएम से रात अंधेरे मिल आए थे। लेकिन संगठन के कर्ता-धर्ता साय बिल्कुल पक्ष में नहीं है। साय के पार्टी छोडऩे पर  30 अप्रैल की शाम विष्णु देव और पवन साय, उनके सरकारी से तीन घंटे इंतजार के बाद लौट आए थे। वो भूले नहीं हैं। लेकिन आदिवासी बड़े सह्रदय होते हैं। 

पति के भरोसे में सरपंची

सहसपुर लोहारा के बड़ौदा कला ग्राम की सरपंच जगवंती बाई को बर्खास्त किया गया। एक वीडियो सोशल मीडिया पर चला था जिसमें दिखाई दे रहा था कि जाति निवास प्रमाण पत्र पर सरपंच की जगह उसका पति हस्ताक्षर कर रहा था। 10 माह तक जांच चली फिर बर्खास्तगी हुई। जांच के दौरान पता चला कि सरपंच निरक्षर हैं। निश्चित रूप से उनका पति प्रभावशाली व्यक्ति होगा और उसी के नाम पर उनकी पत्नी को गांव के मतदाताओं ने वोट दिया हो।  यह मामला तो कम से कम एक ऐसी सरपंच का है जिसने पढ़ाई लिखाई नहीं की है लेकिन कई पढ़ी-लिखी महिला पदाधिकारियों की भी उनके घर के पुरुष सदस्य नहीं चलने देते। सरकारी दफ्तरों की बात ही अलग है, घर के बाहर बरामदे में लगने वाली बैठक भी पुरुष संभालते हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसे मामले आ चुके हैं, जब पति या रिश्तेदारों की दखलंदाजी के चलते पंचायत और जनपद की महिला पदाधिकारियों को न केवल बर्खास्त होने की बल्कि कोर्ट कचहरी जाने की नौबत भी आ चुकी है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ग्राम प्रधान के पति की याचिका को खारिज करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि पंचायत में नामांकन के समय महिला प्रत्याशियों से शपथ-पत्र लिया जाए कि वह सारा काम खुद ही करेंगी, उनका कोई पुरुष रिश्तेदार नहीं। इस बात की पूरी गुंजाइश है कि शपथ पत्र के बावजूद महिला जनप्रतिनिधियों के अधिकार पर पुरुष सदस्य कब्जा कर सकते हैं लेकिन कानून का थोड़ा सा डर तो बना रहेगा। बशर्ते यूपी का निर्देश छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों में भी लागू करने के लिए कोई पहल करे। 

कौन सा व्यंजन चखना चाहेंगे?

मोती सेठ को किसी के प्रकोप का डर ही नहीं है। उसने अपने लोकशाही ढाबे में बड़ी-बड़ी जांच एजेंसियों और कार्रवाई के तरीकों के नाम पर डिश रखे हैं। जैसे ईडी डिश, सीबीआई डिश, देश भक्ति डिश, निलंबन, गोलमाल डिश। विशेष वस्त्र में आने पर 25 पर्सेंट डिस्काउंट की भी बात लिखी है। यह ढाबा किस जगह है, पक्का मालूम नहीं क्योंकि सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले ने यह बताया ही नहीं है। वैसे यह महाराष्ट्र के किसी जगह की हो सकती है।

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