राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : प्रमोशन का इंतजार
31-Dec-2023 4:29 PM
राजपथ-जनपथ : प्रमोशन का इंतजार

प्रमोशन का इंतजार 

प्रदेश के वर्ष-2006 बैच के आईपीएस अफसरों का प्रमोशन ऑर्डर नहीं निकल पाया है। इस बैच के अफसर मयंक श्रीवास्तव, बी.एस.ध्रुव, और आर.एन.दास, प्रमोट होकर आईजी बनने वाले हैं। मगर विजिलेंस क्लीयरेंस में देरी की वजह से प्रमोशन अटका है। 

यही नहीं, वर्ष-2010 बैच के आईपीएस अफसर प्रमोट होकर डीआईजी बनने वाले हैं। इनमें अभिषेक मीणा, गिरजाशंकर जायसवाल, सदानंद कुमार, दुखूराम आंचला, बी.पी.राजभानू, सरजूराम सलाम, और अन्य एक-दो अफसर हैं। मध्यप्रदेश में तो प्रमोशन ऑर्डर निकल गया। मगर यहां इन अफसरों को कुछ दिन इंतजार करना होगा। प्रमोशन के साथ-साथ इनमें से कुछ अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। 

टीना, यानी देयर इज नो अल्टरनेटिव 

डीजीपी अशोक जुनेजा लोकसभा चुनाव तक रह सकते हैं। इसका कार्यप्रणाली से कोई संबंध नहीं है। जुनेजा का कार्यकाल जून में खत्म हो रहा है। उन्हें हटाने की भी चर्चा थी, लेकिन सीनियर अफसरों की कमी का फायदा उन्हें मिलता दिख रहा है। 

जुनेजा की कार्यप्रणाली को लेकर शिकायतें रही हैं। खुद भाजपा ने चुनाव आयोग से इसकी शिकायत कर हटाने की मांग की थी। खैर, जुनेजा के ठीक नीचे 90 बैच के अफसर राजेश मिश्रा हैं, जो कि स्पेशल डीजी के पद पर हैं। मिश्रा जनवरी में रिटायर हो रहे हैं। 

एक चर्चा यह है कि आईबी में स्पेशल डायरेक्टर स्वागत दास को यहां लाया जा सकता है। मगर दिक्कत यह है कि स्वागत दास रिटायर हो चुके हैं, और उन्हें एक्सटेंशन मिला हुआ है।  इस सिलसिले में कुछ उदाहरण भी दिए जा रहे हैं। मसलन, यूपी के सीएस डी.एस. मिश्रा को रिटायरमेंट के बाद तीन बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है। छत्तीसगढ़ के मसले पर केन्द्र क्या कुछ करती है, यह देखना है।

फिर बदलेगा मेले का नाम

5 साल पहले सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने जनवरी महीने में ही राजिम कुंभ का नाम बदलकर माघी पूर्णिमा मेला कर दिया था। विधानसभा में तब के संस्कृति मंत्री ताम्रध्वज साहू ने तर्क दिया था कि यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति को परिलक्षित करता है। उन्होंने सन् 1909 के गजेटियर को पढक़र भी सुनाया था, जिसमें इसका जिक्र पुन्नी मेले के रूप में था। यह बताया कि छत्तीसगढ़ के अलावा नागपुर, भंडारा, मंडला, नरसिंहपुर और कटक से भी लोग इसमें शामिल होते थे। 

भाजपा शासन काल में 13 वर्षों तक महानदी, पैरी और सोढुर नदी के संगम पर लगने वाले इस मेले को राजिम कुंभ के नाम से जाना गया। इस नामकरण और देशभर के साधु संतों को इसमें आमंत्रित कर भव्य रूप देने में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की पहल और दिलचस्पी थी। राजिम कुंभ और पुन्नी मेला दोनों ही नाम विधानसभा में पारित विधेयक के चलते कानून का दर्जा रखते हैं। इसलिए अब जब मेले की तारीख करीब आ रही है और फिर से आयोजन की तैयारी शुरू हो रही है, नाम को अध्यादेश के जरिए बदला जाएगा। 

राजिम के लोगों को लगता है कि कुंभ का नाम देने से इसमें मेले की पहचान देशभर में हो गई थी। अब संयोग से संस्कृति विभाग फिर से बृजमोहन अग्रवाल के पास है, राजिम का यह गौरव दोबारा स्थापित हो जाएगा।

उल्लेखनीय कि सन 2014 के आयोजन में कुंभ नाम को लेकर दो शंकराचार्यों के बीच मतभेद सामने आए थे। निश्चलानंद सरस्वती ने राजिम मेले को कुंभ मानने से इनकार कर दिया था। आयोजकों को उन्होंने उन्हीं के मंच से फटकार भी लगाई थी।  इसके कुछ दिन बाद शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि कुंभ एक पर्व का द्योतक है। शास्त्रों में कहीं नहीं लिखा है कि कुंभ केवल चार होंगे, आखिर अर्ध कुंभ भी तो लगते हैं।

बहरहाल, अनेक लोगों का मानना है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों का नाम बदलने का फैसला धार्मिक या ऐतिहासिक आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक है।

पेड़ बचाने की फिक्र में

टाइगर और लेपर्ड शाकाहारी नहीं है लेकिन जंगलों में रहते हैं क्योंकि पेड़-पौधे उन छोटे वन्य जीवों को खुराक देते हैं, जो इनका शिकार होते हैं। नई कोयला खदान के लिए हसदेव में पेड़ों की कटाई का एक चरण फोर्स की घेराबंदी के बीच पूरा हो चुका है, तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद। सोशल मीडिया पर लगातार इस बात की पीड़ा अलग-अलग तरह से उभर रही है। इस तस्वीर के जरिये यह कहने की कोशिश हो रही है कि इंसानों को पेड़ बचाने की फिक्र हो या ना हो, जानवरों को तो है।

योग्यता में कमी की बात..

सत्तारूढ़ भाजपा के उन वरिष्ठ और अनुभवी विधायकों का भी अपने क्षेत्र में गर्मजोशी से स्वागत सत्कार हो रहा है, जिन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। फिर भी समर्थक और कार्यकर्ता मायूस हैं। उन्हें सांत्वना देना भी जरूरी है। कुरूद पहुंचने पर विधायक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर का गाजे-बाजे के साथ जबरदस्त स्वागत हुआ। अपने भाषण में उन्होंने दो खास बातें कही- एक तो यह कि मेरी योग्यता में भले ही कोई कमी रह गई होगी, मगर विकास के लिए प्रयास में कोई कमी नहीं रखूंगा। दूसरी बात यह भी कि नया नेतृत्व तैयार करना है। 
क्या चंद्राकर योग्यता में कमी की बात मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने के संदर्भ में कह रहे हैं? और क्या भविष्य में चुनाव नहीं लडऩा चाहते? आप अनुमान लगाइए।

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