राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कुछ ज्यादा लिख दिया तो गलत क्या?
01-Jan-2024 4:13 PM
राजपथ-जनपथ : कुछ ज्यादा लिख दिया तो गलत क्या?

कुछ ज्यादा लिख दिया तो गलत क्या?

वह अलग दौर था जब किसी अखबार में किसी सरकारी महकमे या अफसर की कार्यप्रणाली पर कुछ छपने पर ऊपर से नीचे तक हडक़ंप मच जाता था और जांच शुरू हो जाती थी। धीरे-धीरे अखबारों की संख्या बढ़ी और मीडिया के अलग-अलग अवतार सामने आ गए। साथ ही अफसरों ने प्रशासन की खामियों पर छपने वाली खबरों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। इसके बावजूद कि अखबार में छपी खबरें प्राय: दूसरे मीडिया प्लेटफॉर्म से अधिक विश्वसनीय होते हैं।

इस बात को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने अफसरों को बखूबी समझा दिया है। अपने 11 माह के कार्यकाल में उन्होंने अनेक खबरों को संज्ञान में लिया है। कुछ मामलों में सीधे-सीधे नोटिस जारी कर जवाब मांगा, कुछ पर जनहित याचिका दर्ज कर सुनवाई शुरू कर दी है। ऐसा ही एक मामला सिम्स हॉस्पिटल की बदहाली का है। मंत्रालय के अफसर के अलावा बिलासपुर कलेक्टर की इस मामले में कई बार पेशी हो चुकी है।  बीते दिनों उनकी ओर से यह तर्क दिया गया कि अखबारों में छपी कई बातें सही नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा कि मीडिया से हम अपेक्षा तो करते हैं कि वह स्वस्थ पत्रकारिता करें और किसी व्यक्ति को जानबूझकर अपमानित न करें लेकिन सभी को ध्यान रखना होगा कि हम जनता की सेवा के लिए हैं। उस राज्य में, जिसका उद्देश्य लोक कल्याण है। अगर खबरों में 10 प्रतिशत भी सत्यता है तो वह गलत कैसे हैं? कई बार होता है कि कोई बात बढ़ा-चढ़ाकर कह दी गई हो, पर पूरी खबर गलत कैसे हो सकती है? व्यवस्था ठीक रखना तो उनका काम नहीं है, वरना उनसे पूछा जाता। जो वे लिखते हैं उनमें कहीं ना कहीं सत्यता तो है ही। अस्पताल के निरीक्षण में आपने यह सब देखा ही है।

जिन अधिकारियों में मीडिया और खासकर अखबार को गंभीरता से लेने की आदत छूट चुकी है, उनको चीफ जस्टिस की टिप्पणी के बाद सतर्क हो जाना चाहिए।

बाकी सबसे तो ईवीएम ठीक है

चर्चा है कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में बुरी हार के बाद पूर्व सीएम भूपेश बघेल को राज्य की राजनीति से अलग कर यूपी का प्रभार देने की तैयारी कर ली थी। मगर पूर्व सीएम ने इंकार कर दिया। उन्होंने हाईकमान से कह दिया कि वो फिलहाल 5 साल तक छत्तीसगढ़ में ही बने रहना चाहते हैं।

हल्ला तो यह भी है कि दिल्ली में हार की समीक्षा बैठक में यह कहा गया कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस जीतते-जीतते हार गई क्योंकि सरकार की छवि एक ‘करप्ट’  सरकार की बन गई थी। इस पर भूपेश बिफर गए थे और कहा बताते हैं कि अगर मेरी छवि भ्रष्ट थी तो पिछले चुनाव में 68 सीट कैसे जीत गए थे? कुल मिलाकर हार पर कांग्रेस के अंदरखाने में रार जारी है। खास बात यह है कि प्रदेश का कोई भी नेता हार की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है। ईवीएम पर दोष मढक़र चुप्पी साध लिए हैं।

महंत के इलाके में जीत ही जीत

नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद भी हैसियत में कमी नहीं आई है। डॉ. महंत न सिर्फ खुद जीते बल्कि जांजगीर-चांपा लोकसभा क्षेत्र की सारी सीटें कांग्रेस जीत गई। उत्तर और मध्य भारत में जांजगीर-चांपा के अलावा छिंदवाड़ा ही ऐसी संसदीय सीट है जहां के विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को शत प्रतिशत सफलता मिली है।

छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ का गढ़ है। छिंदवाड़ा लोकसभा में 7 विधानसभा सीटें आती हैं। खुद कमलनाथ छिंदवाड़ा शहर की सीट से चुनाव जीते हैं। ये अलग बात है कि विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस बुरी तरह हार गई। इससे परे जांजगीर-चांपा लोकसभा में 8 सीटें आती हैं। और यह महंत के प्रभाव वाला इलाका है।

जांजगीर-चांपा लोकसभा सीट अनारक्षित थी तब वो दो बार यहां से सांसद रहे। इस बार विधानसभा चुनाव में सभी 8 सीटों पर कांग्रेस फतह हासिल हुई है। महंत को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है, इसके पीछे बड़ी वजह उनके अपने इलाके में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन होना भी रहा है।

अब कोर ग्रुप का इंतजार

प्रदेश भाजपा के कोर ग्रुप का पुनर्गठन होना है। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद कोर ग्रुप से उनका हटना तय है। इसके अलावा कई और नेताओं की छुट्टी हो सकती है।

किरण देव प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं। स्वाभाविक रूप से वो कोर ग्रुप का अहम हिस्सा होंगे। इसके अलावा अरुण साव, विजय शर्मा, और ओपी चौधरी भी कोर ग्रुप में रह सकते हैं। यही नहीं, बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम, सरोज पाण्डेय, लता उसेंडी, व धरमलाल कौशिक भी कोर कमेटी में यथावत सदस्य रह सकते हैं। चर्चा है कि भाजपा की सबसे ताकतवर कोर कमेटी में जगह पाने के लिए कई नेताओं ने प्रयास तेज कर दिए हैं। देखना है कि सूची में किनको जगह मिलती है।

रियायती सिलेंडर के लिए कतार

हाल में जीते दूसरे राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी उज्ज्वला और बीपीएल कनेक्शन धारकों को लगभग 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने की घोषणा भाजपा सरकार ने की है। अचानक यह अफवाह फैल गई कि इसका लाभ लेने के लिए 31 दिसंबर से पहले केवाईसी अपडेट करना होगा। इसका असर यह हुआ कि प्रदेश भर की गैस एजेंसियों में रोजी मजदूरी करने वाले गरीब उपभोक्ताओं की कतार लगने लगी। अपडेट करने के नाम पर एजेंसी संचालकों ने ग्राहकों को जबरन गैस का पाइप थमाया और पैसे वसूले। फूड विभाग मौन बना रहा। अब जब 31 दिसंबर की तारीख निकल चुकी है तब यह सूचना दी जा रही है कि 31 मार्च 2024 तक केवाईसी अपडेट किया जा सकेगा। अभी भी फूड विभाग की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा रहा है। दरअसल केवाईसी अपडेट सभी तरह के उपभोक्ताओं के लिए एक नियमित प्रक्रिया है। इंडेन और भारत गैस जैसी कुछ कंपनियों ने ऐप भी लॉन्च कर दिया है, जिसके जरिये उपभोक्ता खुद ही अपनी केवाईसी अपडेट कर सकता है। यह जरूर है कि इसमें फेस रिकॉग्नाइजेशन के लिए एक और ऐप इंस्टॉल करना होगा। यदि यह प्रक्रिया मुश्किल लगे तब भी गैस एजेंसी में जाकर केवाईसी अपडेट करने हड़बड़ी जैसी कोई बात तो है ही नहीं। सरकार की ओर से भी कोई अधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है कि रियायती दर पर गैस सिलेंडर का लाभ लेने के लिए नवीनतम केवाईसी जरूरी है।

सोने का सलीका नहीं

ट्रेन आने में देर हो तो लोग प्लेटफार्म पर नहीं तो कहां सोएंगे? मगर प्लेटफॉर्म में जगह तो ठीक चुनना चाहिए? सब इस तरह पसर जाएंगे, तो सेल्फी लेने के इच्छुक लोगों को परेशानी खड़ी हो सकती है। पता नहीं जीआरपी ने इन्हें उठाकर ठीक जगह सोने के लिए क्यों नहीं कहा। नाहक, कांग्रेस ने सेल्फी की जगह यात्रियों की फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर डाल दी है। ([email protected])

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