राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : किसकी पोस्टिंग क्यों?
04-Jan-2024 4:53 PM
राजपथ-जनपथ :  किसकी पोस्टिंग क्यों?

किसकी पोस्टिंग क्यों?

सीएम विष्णुदेव साय ने बिना हड़बड़ी के पखवाड़े भर बाद प्रशासनिक सर्जरी की है। साय ने उन अफसरों को अहम जिम्मेदारी दी है, जिनकी साख अच्छी रही है। एसीएस निहारिका बारिक सिंह को महज निमोरा में ग्रामीण विकास संस्थान का डीजी बनाया गया था, लेकिन अब  उन्हें पंचायत और ग्रामीण विकास के साथ-साथ आईटी का भी प्रभार सौंपा गया है। इसी तरह पिछले पांच साल लूप लाइन में रहीं आर संगीता को आबकारी के साथ-साथ आवास पर्यावरण विभाग का सेक्रेटरी बनाया गया है। 

संगीता दुर्ग, और महासमुंद कलेक्टर रह चुकी हैं। वो विभागीय मंत्री ओपी चौधरी की बैचमेट रही हैं। खास बात यह है कि संगीता पहली महिला अफसर हैं, जिन्हें आबकारी महकमा सौंपा गया है। पिछले पांच सालों में ईडी और अन्य तरह की जांच के चलते आबकारी विभाग चर्चा में रहा है। यही नहीं, अंकित आनंद को वित्त और योजना का प्रभार यथावत रखा गया है। 
साय ने डेढ़ दर्जन कलेक्टर भी बदले हैं। कुछ कलेक्टरों के खिलाफ विधानसभा चुनाव के दौरान शिकायत भी हुई थी। गौरव सिंह को रायपुर कलेक्टर बनाया गया है। गौरव सिंह सूरजपुर कलेक्टर रहे हैं। रायपुर जिला पंचायत के सीईओ भी रहे हैं। 

इसी तरह रिचा प्रकाश चौधरी को दुर्ग, डी. राहुल वेंकट को एमसीबी का कलेक्टर बनाया गया है। डी. राहुल वेंकट की भी साख बहुत अच्छी है। वो बिलाईगढ़-सारंगढ़ कलेक्टर रहे हैं। स्थानीय चर्चित कांग्रेस विधायक के दबाव की वजह से वेंकट को हटा दिया गया था। इसी तरह नए कलेक्टर रोहित व्यास, मयंक चतुर्वेदी भी बिना किसी के दबाव में आकर काम करने के लिए पहचाने जाते हैं। इसी तरह कुणाल दुदावत, और चंद्रकांत वर्मा को भी पहली बार कलेक्टरी का मौका मिला है। 

आईपीएस की जगह आईपीएस 

आईपीएस मयंक श्रीवास्तव को जनसंपर्क कमिश्नर बनाया गया है। मयंक, एडीजी दीपांशु काबरा की जगह लेंगे। मयंक श्रीवास्तव डीआईजी स्तर के अफसर हैं, और जल्द ही आईजी के पद पर प्रमोट होने वाले हैं। मध्यप्रदेश, और महाराष्ट्र में आईपीएस अफसरों की पोस्टिंग होते रही है। छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने सबसे पहले दीपांशु के रूप में आईपीएस अफसरों के पोस्टिंग शुरू की थी, और अब साय ने भी एक आईपीएस मयंक श्रीवास्तव पर भरोसा किया है। मयंक भी मिलनसार अफसर माने जाते हैं। 

सीबीआई को रोका किसने था?  

कल कैबिनेट के फैसलों की प्रेस ब्रीफिंग करते हुए पांच वर्ष पूर्व  सीबीआई पर रोक को लेकर डिप्टी सीएम अरुण साव ने नया खुलासा किया । उन्होंने कहा कि रोक संबंधी आदेश प्रशासनिक था, कल हुआ फैसला कैबिनेट का है। 

इसके बाद मंत्रिमंडल और कार्यपालिका के अधिकार, कर्तव्य के जानकार यह खोज रहे हैं कि आखिर ये प्रशासनिक रोक किस अफसर ने किस इंटरेस्ट से लगाई होगी। खोजकर्ता पांच वर्ष पूर्व के मंत्रालय, पीएचक्यू के आला अफसरों के एक,एक कर नाम ले रहे हैं। यह भी तलाश रहे हैं कि इनमें किस पर बड़े गंभीर आरोप रहे हैं। और यही कह रहे हैं कि कहीं इस वजह से तो रोक नहीं लगाई गई। 

बात तत्कालीन कैबिनेट के कर्तव्य की करें तो खोजकर्ता कह रहे हैं कि 15 वर्ष बाद नई सरकार आई थी। अफसरों के द्वारा भेजी प्रेसी को यह ठीक रहेगा, समझ कर तो सरकार ने हस्ताक्षर कर दिया होगा। फिर, उसी दौरान बंगाल की दीदी ने भी रोक लगाई थी। एक मजबूत दृष्टांत भी था 

दो युवा आईएएस अफसरों की बात...

ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल के दौरान बैठक में शाजापुर मध्यप्रदेश के कलेक्टर किशोर सान्याल ने एक ड्राइवर से तुनक कर पूछा- औकात क्या है तुम्हारी..। उनको ड्राइवर की औकात का पता चल गया। 24 घंटे के भीतर इस ऑफिसर को हटा दिया गया और उनको मंत्रालय में उप सचिव बना दिया गया। ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ में हुई थी। मई 2021 में सूरजपुर, छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन के दौरान अपनी दादी के लिए दवा लेने छात्र को बीच चौराहे पर कलेक्टर रणबीर शर्मा ने चांटा जड़ा और उसका मोबाइल फोन पटककर तोड़ दिया। कुछ घंटे के भीतर उनकी भी कलेक्टरी छिन गई थी। आज उस घटना के ढाई साल बाद रणबीर शर्मा को फिर कलेक्टर बना दिया गया है। वे बेमेतरा जिले की जिम्मेदारी संभालेंगे। अपने व्यवहार के लिए उन्होंने उसी वक्त माफी मांग ली थी, इसलिये उम्मीद कर सकते हैं कि वे अब आगे जनता के बीच अपने बर्ताव को लेकर सतर्क रहेंगे। आईएएस सान्याल भी युवा हैं। उन्होंने कुछ सफाई दी है, पर माफी नहीं मांगी है। हो सकता है आगे उनको अपनी भूल का एहसास हो। पर कुर्सी तो चली गई। शर्मा को ढाई साल लगे, इनको देखें, कब मिलेगा मौका..।

पारदर्शी परीक्षा के लिए आगे क्या?

छत्तीसगढ़ में अब तक लोक सेवा आयोग की जितनी परीक्षाएं हुईं, सबमें गड़बड़ी मिली। 2003 की स्कैलिंग में हेराफेरी के चलते कई अपात्र लोग शीर्ष पदों पर पहुंच गए। हाईकोर्ट में पीएससी ने भी मान लिया था कि गड़बड़ी हुई। फैसला उसके खिलाफ गया। हाईकोर्ट ने चयन सूची रद्द की और नए सिरे से स्कैलिंग का निर्देश दिया। वर्षों से पावरफुल पदों पर बैठे इन अफसरों की कुर्सी हिल गई। वे पदच्युत होने वाले थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई। इस आधार पर नहीं कि हाईकोर्ट का फैसला गलत था, या उनका चयन निष्पक्ष था। कुछ पुराने फैसलों के आधार पर स्थगन दिया गया कि वे वर्षों से नौकरी कर रहे हैं और चयन में उनकी नहीं बल्कि पीएससी की गलती है। अभी भी यह मामला लंबित है, सुनवाई पूरी नहीं हुई है। कह नहीं सकते कि फैसला इन अफसरों के पक्ष में आएगा या नहीं पर आज वर्षों बाद उनमें से कई लोगों को आईएएस अवार्ड हो चुका है और वे सरकार में बड़े पदों पर बैठे हैं।

इस बार मामला उठने के कुछ दिन बाद ही भाजपा नेता ननकीराम कंवर हाईकोर्ट पहुंच गए। इससे हुआ यह कि कई चयनित लोगों की ज्वाइनिंग रुक गई। न तो कोचिंग संस्थानों ने इन टापर्स की तस्वीरों के साथ इश्तेहार छपवाए न ही इन टॉपर्स ने मीडिया को अपनी संघर्षपूर्ण तैयारी के बारे में बताया ।

2003 और 2021 की परीक्षाओ में ही नहीं, बीच की परीक्षाओं में भी आयोग के अध्यक्ष, कार्यकारी अध्यक्ष और सदस्यों के परिवार के सदस्यों और नजदीकियों की नियुक्ति पर सवाल उठते ही रहे। मामले हाईकोर्ट में गये, एसीबी ने कार्रवाई की, पर गड़बड़ी जारी रही।

पहली बार किसी केंद्रीय एजेंसी के हाथ में पीएससी घोटाले की जांच हो रही है। यह खबर आते ही उन लाखों युवाओं को उम्मीद बंधी होगी, जिन्हें लगता है कि हमने तैयारी की लेकिन पदों पर कब्जा अफसर, नेताओं के बच्चों ने कर लिया। सीबीआई जांच का आदेश देकर सरकार एक कदम आगे तो बढ़ी है लेकिन आगे की परीक्षाएं फरवरी से शुरू हो रही हैं। एक और चुनावी वायदा यह था कि पीएससी परीक्षा का पैटर्न बदला जाएगा। प्रावधान कड़े होंगे, संघ लोक सेवा आयोग की तरह..। उस पर कोई निर्णय अभी सरकार ने नहीं लिया है।

मामा लाएंगे क्रांति?

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व मानकर चल रहा है कि तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में पार्टी की वापसी मोदी की गारंटी के कारण हुई। इस बात को पार्टी के बड़े-बड़े स्थानीय नेताओं ने मान भी लिया है। किसी को केंद्रीय मंत्री रहते चुनाव लड़ाया, कोई चौथी-पांचवीं बार जीतकर आया, मगर सिर्फ विधायक रह गए हैं-फिर भी खुश। नए लोगों को सीएम बना दिया गया, नये विधायकों को भारी-भरकम मंत्रालय दे दिये गए, फिर भी खामोशी से स्वीकार कर लिया। राजस्थान में तो पहली बार के विधायक सीएम बन गए। छत्तीसगढ़ में तो चलिये एक वरिष्ठ नेता को कमान सौंपी गई, पर मध्यप्रदेश में तीसरी बार के विधायक, जो शिवराज मंत्रिमंडल में मंत्री थे- उनके हाथ में सत्ता सौंपी गई है। सब देख रहे हैं कि केंद्रीय नेतृत्व का यह फैसला चौहान को साल रहा है। उन्होंने कल बयान दिया- कभी-कभी राजतिलक होते-होते वनवास मिल जाता है...। उन्होंने अपने सरकारी आवास पर एक नया बोर्ड लटकाया है, जिस पर लिखा है- मामा का घर। मीडिया के पूछने पर उन्होंने बताया कि मैं प्रदेश के बच्चों का मामा हूं, महिलाओं का भाई हूं। मेरा घर उनको ढूंढना न पड़े, इसलिये...। पर देखना यह है कि भांजे-भांजियों और बहनों से उनका यह अटूट लगाव लोकसभा चुनाव तक किस तरफ जाएगा। वे बाकी दो राज्यों के उपेक्षित नेताओं को कोई रास्ता तो नहीं बता रहे?

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