राजपथ - जनपथ
खट्टे-मीठे तजुर्बे
नई सरकार के मंत्री अपने अपने विभाग की समीक्षा बैठक कर अफसर कर्मियों को समझने लगे हैं। पहली बार के मंत्रियों को पिकअप में कुछ समय लग सकता है। लेकिन उनमे से कुछ का पखवाड़े भर का परफॉर्मेंस काफी ठीक है। स्टाफ ही कहने लगा है कि चला लेंगे विभाग। बात पुराने अनुभवियों की करें तो, वे एक-एक अफसर की एक एक नस जानते हैं। मौका मिलते ही ब्लड प्रेशर नापने लगे हैं। परसों देर रात तक चली समीक्षा बैठक में मंत्री ने एक महिला अफसर की ऐसी नस पकड़ी की वो अब तबादले में जुट गई हैं। यह अफसर मंत्री जी के नए विभाग में संयुक्त सचिव है। वो जमीन और पढ़ाई लिखाई से जुड़े विभाग देख रही हैं। पुराने वाले यदुवंशी साहब लेकर आए थे। उनका तो तबादला पिछली सरकार में ही हो गया था, लेकिन नए साहब ने मैडम को विभाग में बनाए रखा। ये साहब भी कल विदा हो गए, लेकिन बिना अधिकृत आदेश के मैडम बनी हुई थी। पीए सूत्र बताते हैं कि भरी बैठक में मंत्री ने मैडम के अधिकृत विभाग में जमीन कारोबार को लेकर तीखा बोल दिया। उसके बाद से मैडम तबादले के लिए सक्रिय हो गई हैं।
नए-नए बॉस
कुछ अफसर पहली बार के मंत्रियों को लेकर आंकलन करने की भूल कर रहे हैं। और उसका खामियाजा भी फौरी भुगत रहे। इसके पीछे मुख्य दोष अफसरों का अंग्रेजी प्रेम। पहले स्वास्थ्य विभाग की बैठक में अफसरों इसका शिकार हो चुके हैं। और अब चिप्स के अफसर। बात दो दिन पहले की है। नई सरकार के मंत्रियों को तकनीक में नवाचार कर दिखाने को लेकर चिप्स के कुछ अफसर गुजरात मॉडल का अध्ययन कर लौटे। इसका यहां प्रेजेंटेशन दे रहे थे कि बड़े साहब फर्राटेदार अंग्रेजी में तकनीक समझा रहे थे कि सीएम डैशबोर्ड, मॉनिटरिंग पोर्टल का सॉफ्टवेयर मंत्रालय से पंचायत स्तर तक कैसे काम करेगा। युवा मंत्री सुनते रहे और अचानक उन्होंने भी अंग्रेजी में सवाल जवाब कर साहब, मातहतों को घेरा। तब सच्चाई सामने आई कि साहब गुजरात नहीं गए थे, जो गए थे उनसे फीडबैक लेकर प्रेजेंटेशन दे रहे थे। बैठक के बाद बाहर निकले लोग कहने लगे कि अब हर बैठक से पहले हर विभाग के अफसर कर्मी, पहली बैठक वालों से पता करके ही जाएं तो अच्छा रहेगा।
11 साल में 11 कलेक्टर
केंद्रीय कार्मिक एवं लोक शिकायत मंत्रालय ने सन् 2014 में एक आदेश निकाला था। इसमें कहा गया था कि केंद्र हो या राज्य सरकार, वह किसी आईएएस या आईपीएस को दो साल से पहले उनके पद से नहीं हटा सकेगी। यह नियम आईएफएफ अफसरों के संबंध में भी लागू होगा। यदि किसी शिकायत या प्रशासनिक व्यवस्था के चलते तबादले का कोई ठोस कारण बने भी तो फैसला राज्य स्तरीय सिविल सेवा बोर्ड करेगा। इस बोर्ड की अध्यक्षता मुख्य सचिव या उसी स्तर के अधिकारी करेंगे। उत्तर प्रदेश में एक आईएएस अफसर दुर्गा शक्ति को निलंबित किए जाने के बाद यह कदम उठाया गया था। मंशा यह थी कि राजनीतिक दबाव में तबादले न हों और जिस जगह पोस्टिंग दी गई है वहां अफसर को काम करने का पर्याप्त मौका मिले।
अभी हाल में एक साथ 19 कलेक्टर बदल दिए गए। कोई कलेक्टर कितने दिन किसी जिले में रह पाया, इसे जांचें तो रोचक जानकारी सामने आती है। जैसे दीपक कुमार अग्रवाल 11 बरस पुराने गरियाबंद जिले के 11वें कलेक्टर हैं। सन् 2012 में गरियाबंद जिला बना था। तब से अब तक जो दस कलेक्टर यहां रहे, उनका क्रम यह रहा- दिलीप वासनीकर, हेमंत कुमार पहारे, अमित कटारिया, निरंजन दास, श्रुति सिंह, श्याम धावड़े, छत्तर सिंह डेहरे, निलेश कुमार महादेव क्षीरसागर, नम्रता गांधी, प्रभात मलिक और आकाश छिकारा। सन् 2012 में ही मुंगेली जिला बना। अभी की तबादला सूची में राहुल देव का नाम नहीं है। मगर उसके पहले यहां नौ कलेक्टर रह चुके- त्रिलोक चंद्र महावर, डॉ. संजय अलंग, किरण कौशल, नीलम नामदेव एक्का, डोमन सिंह, डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे, पदुम सिंह एल्मा, अजीत वसंत और गौरव कुमार सिंह। अन्य नये जिलों से भी इसी तरह की जानकारी निकल सकती है। इनमें कोई भी कलेक्टर एक साल, सवा साल से ज्यादा नहीं रहा।
ऐसी स्थिति में कोई कहे कि कलेक्टर बिना राजनीतिक दबाव के काम करते हैं, तो इसे मजाक में लेना चाहिए।
गृह विभाग में हड़बड़ी नहीं...
एक साथ जारी 89 अफसरों की तबादला सूची के बाद पुलिस या गृह विभाग में बड़े फेरबदल की चर्चा चल निकली है। कहा जा रहा है कि यह सूची आज कल में ही निकल जाएगी। पर सूत्र यह भी बता रहे हैं कि ऐसी कोई जल्दी नहीं है। इसके मुताबिक आईएएस अफसरों की सूची इसलिए जल्दी निकालनी पड़ी क्योंकि लोकसभा चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग की तैयारी 6 जनवरी से शुरू हो रही है। मतदाता सूची में नाम जोडऩे, घटाने के अलावा डिप्टी कलेक्टर्स को जिम्मेदारी सौंपने, प्रशिक्षण देने का काम शनिवार से शुरू हो जाएगा। इसमें जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में कलेक्टर की प्रमुख भूमिका होती है। इस प्रक्रिया के प्रारंभ होने के बाद भी आईएएस, खासकर कलेक्टर्स का तबादला तो हो सकता था, लेकिन निर्वाचन के काम में व्यवधान पड़ता। लोकसभा चुनाव के लिए आईपीएस अफसरों की सीधी भागीदारी अभी शुरू नहीं हुई है। इसलिये तबादले होंगे तो जरूर, लेकिन ऐसी भी जल्दी नहीं है।
इंदौर में आदिवासियों की रैली...
इंदौर के टंट्या भील चौराहे से कलेक्ट्रेट की ओर निकली एक रैली। इसमें शामिल ज्यादातर लोग आदिवासी समुदाय से थे। उन्होंने राष्ट्रपति के नाम पर ज्ञापन सौंपा और हसदेव अरण्य को बचाने की गुहार लगाई। कहा कि अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ेंगे। हसदेव कांग्रेस सरकार के दौरान भी एक बड़ा मुद्दा था। देश-विदेश में प्रदर्शन हो रहे थे। अब जब नई सरकार बनने के बाद परसा ईस्ट-केते बासेन की नई खदान के लिए हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं, एक बार फिर विरोध की आवाज सरगुजा और छत्तीसगढ़ से बाहर गूंजने लगी है।
लोकसभा की हसरत बाकी है
विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद कई पूर्व मंत्री लोकसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। सुनते हैं कि दो पूर्व मंत्रियों ने तो अपने इरादे भी जाहिर कर दिए हैं। पार्टी के एक-दो प्रमुख नेता भी हारे हुए कुछ नेताओं को लोकसभा चुनाव लडऩे के पक्ष में हैं।
प्रमुख नेता 2014 के लोकसभा चुनाव का उदाहरण भी दे रहे हैं। तब विधानसभा चुनाव में हार के बाद ताम्रध्वज साहू लोकसभा चुनाव जीत गए थे। इस बार पार्टी का क्या रुख रहता है, यह देखना है।
कांग्रेस प्रभारियों की बिदाई की बेला
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी बदलने के बाद अब प्रभारी सचिव चंदन यादव, और सप्तगिरि उल्का व संयुक्त सचिव विजय जांगिड़ को भी बदला जा सकता है। चंदन यादव, सबसे पुराने हैं, उन्हें 6 साल से अधिक हो चुके हैं।
बताते हैं कि एआईसीसी में प्रभारी सचिवों को इधर से उधर से किया जा रहा है। ऐसे में चंदन यादव व उल्का का बदलना तय माना जा रहा है। एक चर्चा यह भी है कि डॉ. विनय जायसवाल द्वारा टिकट के लिए 7 लाख रुपए लेने के आरोप के बाद चंदन यादव असहज हैं। यद्यपि डॉ. विनय जायसवाल को पार्टी से निकाल दिया गया है, लेकिन चंदन अब आगे छत्तीसगढ़ में काम करने के इच्छुक नहीं है। देखना है कि आगे क्या कुछ बदलाव होता है।