राजपथ - जनपथ
तीन सीटें चिंतनीय
नवा रायपुर के जैनम भवन में हुई भाजपा की बैठक में दिग्गजों ने लोकसभा चुनाव पर मंथन किया। चर्चा का मुख्य विषय यह था कि प्रदेश की सभी 11 सीटें कैसे हासिल की जाए। अभी पार्टी के पास 9 सीटें हैं। पार्टी के रणनीतिकार जांजगीर-चांपा, और महासमुंद व राजनांदगांव को लेकर ज्यादा चिंतित नजर आए। इन क्षेत्रों के विधानसभा सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा है। जांजगीर-चांपा की तो सभी 8 विधानसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को हार का मुख देखना पड़ा है।
सुनते हैं कि मंत्री पद से वंचित दो सीनियर विधायक लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहते हैं। बैठक खत्म होने के बाद एक ने तो प्रदेश प्रभारी ओम माथुर से करीब पौन घंटे अकेले में चर्चा की। विधायक तो अच्छी मार्जिंन से चुनाव जीतकर आए हैं, लेकिन लोकसभा प्रत्याशी बनने के लिए उन्हें उपयुक्त नहीं समझा जा रहा है। फिर भी भाजपा कई तरह का प्रयोग करती है। देखना है कि पार्टी आगे क्या फैसला लेती है।
नाम देने की जरूरत नहीं
सरकार के निगम-मंडलों में नियुक्तियां होनी है। प्रदेश प्रभारी ने इस सिलसिले में कुछ चुनिंदा लोगों से चर्चा भी की है। बताते हैं कि करीब दर्जनभर निगम-मंडलों के पदाधिकारियों की नियुक्ति माहांत तक हो जाएगी।
कहा जा रहा है कि एक-दो मंत्रियों ने अपनी तरफ से कुछ नाम भी सुझा दिए थे। मगर उन्हें टोक दिया गया कि किसी का नाम देने की जरूरत नहीं है। पहली लिस्ट में जो भी नाम होंगे, उनके लिए नाम जागृति मंडल से आएंगे। संकेत साफ है कि साय सरकार में इस बार संघ परिवार को खास महत्व दिया जाएगा।
कुर्सी बचाने में कामयाब
भूपेश सरकार द्वारा नियुक्त किए गए कुछ अफसर अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो गए हैं। इन्हें पहले हटाने की चर्चा चल रही थी। जिन दो अफसरों को हटाने पर विचार किया गया था, वो खुद भी भूपेश सरकार की नाराजगी झेल चुके हैं। इन अफसरों ने अपने संपर्कों के जरिए शीर्ष स्तर तक यह बात पहुंचाई। इसके बाद उन्हें हटाने का फैसला फिलहाल टाल दिया गया है। एक अफसर तो सीएम के गृह इलाके के रहवासी हैं, और इसका उन्हें फायदा भी मिला। हालांकि कुछ कार्रवाई अभी होनी है। देखना है आगे क्या होता है।
महाधिवक्ता के लिए संघ से नाम
सरकार अब तक महाधिवक्ता की नियुक्ति नहीं कर पाई है। इस वजह से सरकार की तरफ से कुछ मामलों में हाईकोर्ट में पक्ष नहीं रखा जा सका है।
इधर, महाधिवक्ता के लिए कई नाम चर्चा में हैं। विधि विभाग खुद डिप्टी सीएम अरूण साव संभाल रहे हैं, जो कि हाईकोर्ट में उप महाधिवक्ता रह चुके हैं। चर्चा है कि डिप्टी सीएम ने भी अपनी पसंद रखी है। संघ परिवार से भी नाम आए हैं। भूपेश सरकार में कुछ समय अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे सीनियर अधिवक्ता का नाम भी चर्चा में है। हल्ला है कि किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनने की वजह से देरी हो रही है। फिर भी अगले कुछ दिनों में महाधिवक्ता कार्यालय के गुलजार होने की उम्मीद जताई जा रही है।
संघर्ष के दिन लौट आए
15 साल विपक्ष में रहने के बाद सन् 2018 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में दोबारा सत्ता हासिल कर पाई थी। मगर 5 साल बाद फिर वही संघर्ष शुरू हो गया है, जैसा भाजपा की तीसरी बार की सरकार को हटाने के दौर में किया गया। बीजापुर जिले में क्रॉस फायरिंग से 6 माह की बच्ची की मौत के मामले में कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी के साथ पांच नेताओं की कमेटी बनाकर जांच कराई जा रही है। हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई के खिलाफ बनाई गई कांग्रेस की एक समिति सरगुजा से दौरा करके लौट चुकी है। एक दूसरी समिति और दौरे पर जा रही है। खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज इसका नेतृत्व करेंगे। नालंदा परिसर के निर्माण की मांग को लेकर बिलासपुर में धरना आंदोलन भी किया जा चुका है।
चुनाव परिणाम को आए अधिक दिन नहीं हुए हैं। पार्टी के लोग सदमे से अभी तक उबर नहीं पाए हैं। हार जाने वाले और टिकट से वंचित हो जाने वाले दोनों ही तरह के कार्यकर्ताओं को अपने नेताओं से बड़ी शिकायत है। पर, कुछ कहने-सुनने का समय नहीं रह गया है। सामने लोकसभा चुनाव में उसी बीजेपी से निपटना है, जिसने हाल ही में शिकस्त दी। सन 2019 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बन जाने के बाद भी लोकसभा की सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली। इस बार विपक्ष में रहते हुए मैदान में उतरना है। अभी दोगुनी ऊर्जा की जरूरत है। पर, 2018-19 में पार्टी की एकजुटता जिन चेहरों की वजह से देखी गई थी, उनका जादू इस बार भी चलेगा?
क्रुरता की पराकाष्ठा
कांकेर के जंगल में शिकारियों ने जानवरों को मारने के लिए बम रखा। इस लकड़बग्घे ने उसे चबा लिया। पूरा सिर क्षत-विक्षत दिखाई दे रहा है। किसी तरह इस घायल और दर्द से छटपटाते लकड़बग्घे को जाल में कैद किया गया। उसे इलाज के लिए रायपुर जंगल सफारी पहुंचाया गया है। दुआ करें कि इसकी जान बच जाए।
भाजपा के कोप से बच गए
विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आचार संहिता लागू थी और विपक्ष में रहकर चुनाव लड़ रही भाजपा ने कई जिलों में कलेक्टरों पर पक्षपात का आरोप लगाया। बलौदा बाजार में चुनाव प्रचार के दौरान कलेक्टर चंदन कुमार के निर्देश पर भाजपा के दो कार्यकर्ताओं को महतारी वंदन फॉर्म भरवाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। तब के भाजपा प्रत्याशी और अब सरकार में मंत्री टंक राम वर्मा के नेतृत्व में भाजपा ने सिटी कोतवाली और तहसील दफ्तर में जमकर प्रदर्शन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस हार के डर से बौखला गई है। प्रशासन का दुरुपयोग कर रही है। अभी जब 88 अफसर की जम्बो ट्रांसफर सूची आई तो उसमें लोग ढूंढ रहे थे, कलेक्टर का नाम। 19 कलेक्टरों को हटाया गया लेकिन उनकी कुर्सी यथावत है। भाजपा को शायद लग रहा हो कि गिरफ्तारी का उनको फायदा मिला। चुनाव जीत गए तो बीती बात भुला देनी चाहिए।
पत्रकारों के बहाने
सेवा के दौरान काम और उच्च अधिकारियों को दबाव से कुंठित जो अधिकारी रिटायरमेंट का इंतजार करते हैं और रिटायरमेंट आता है तो सरकारी मकान, गाड़ी नौकर के लिए संविदा हासिल करते हैं। और जब यह सेवा भी खत्म होने लगती है तो सेवा में बने रहने फिर कोई जुगाड़ । राजधानी जिले में भी एक ऐसे ही अफसर की चर्चा है। कलेक्टर साहब के बदलने से पहले इन अपर कलेक्टर ने स्वयं को प्रेस क्लब के बरसों से टल रहे चुनाव कराने निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करा लिया। अब यह चुनाव हाईकोर्ट के निर्देश पर हो रहे हैं तो इन्हें हटाने का प्रश्न ही नहीं । ये तभी हटेंगे जब नई कार्यकारिणी की सूची कोर्ट में प्रस्तुत होगी। पूर्व गृह मंत्री के रिश्तेदार इन साहब की सेवा मार्च तक है। और साहब को लोकसभा चुनाव के लिए वोटर लिस्ट बनाने की भी जिम्मेदारी दी गई है तो कार्यकाल और बढ़ सकता है । ([email protected])