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कमउम्र ब्रिटिश यौन शिक्षा से लेकर हिन्दुस्तानी नाबालिग अनजानों तक
26-May-2024 5:44 PM
कमउम्र ब्रिटिश यौन शिक्षा से लेकर हिन्दुस्तानी नाबालिग अनजानों तक

ब्रिटिश सरकार ने स्कूली बच्चों को यौन शिक्षा देने की मौजूदा नीति को बदलते हुए 9 बरस उम्र तक के बच्चों को किसी भी तरह की यौन शिक्षा देने पर रोक लगा दी है। सरकार की नीति के बारे में ब्रिटिश मीडिया में बड़ी बहस छिड़ी हुई है, और अब तक स्कूलों में यह शिक्षा देने वाले शिक्षक इस नई सीमा के खिलाफ हैं। इस नीति में बच्चों को सेक्स और रिश्तों के बारे में पढ़ाया जाता है, अब तक 9 बरस से छोटे बच्चों को भी काफी कुछ बताया जाता था, लेकिन सरकार अब इस पर रोक लगा रही है। शिक्षकों का मानना है कि बच्चों के मन में जिस उम्र से जिज्ञासा आने लगती है, उस उम्र से अगर उन्हें उनके जवाब नहीं मिलेंगे, तो फिर वे गलत जगहों से वे जवाब तलाशने लगेंगे जो कि पोर्नोग्राफी की वेबसाइटें भी हो सकती हैं, और इसके अलावा वे आसपास गलत लोगों के शिकार भी हो सकते हैं। ब्रिटिश शिक्षकों का यह मानना है कि चार बरस की उम्र से ही बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श की जानकारी समझाना शुरू हो जाना चाहिए ताकि वे अपने यौन शोषण से बच सकें। ऐसा न होने पर वे कुछ लोगों के नाजायज छूने का मतलब नहीं निकाल पाएंगे। इस शिक्षा के तहत स्कूली बच्चों को ट्रांसजेंडर और दूसरे एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के लोगों के बारे में भी बताया जाता है, उनके अपने शरीर के बारे में बताया जाता है, और गर्भधारण जैसी चीजों को भी समझाया जाता है। ब्रिटेन कम उम्र में गर्भवती होने वाली स्कूली छात्राओं की समस्या भी झेल रहा है, और यह माना जाता है कि छात्राओं को यौन शिक्षा मिलने से वे गर्भवती होने से, या सेक्स-बीमारियों से बचेंगी। 

ब्रिटिश अखबार गॉर्डियन के एक इंटरव्यू में ऐसी एक जानकार शिक्षा शास्त्री ने यह कहा कि अब बच्चों के तन, मन, और उनकी समझ, ये सब कुछ पहले के मुकाबले कम उम्र में विकसित हो रहे हैं। इसलिए उनके मन में जिज्ञासाएं कम उम्र में पैदा हो रही हैं। ब्रिटेन में अभी सत्तारूढ़ संकीर्णतावादी कंजरवेटिव पार्टी का शासन है जिसके कई सांसद इस बात को लेकर नाखुश हैं कि बच्चों को स्कूलों में कम उम्र से ही शरीर, सेक्स, और यौन संबंधों के बारे में जरूरत से अधिक पढ़ाया जा रहा है। एक किस्म से मौजूदा सरकार जो कि चुनाव की घोषणा कर चुकी है, और दो महीने की भी मेहमान नहीं है, वह एक बड़ा फैसला ले रही है जिससे वहां के सारे लोग सहमत भी नहीं हैं। 

मैं ब्रिटेन के इस ताजा घटनाक्रम को हिन्दुस्तान के अपने इलाके से जोडक़र देखना चाहता हूं जहां पर हर दिन एक से अधिक पुलिस रिपोर्ट या गिरफ्तारी ऐसे मामले में हो रही है जिसमें नाबालिग को बहला-फुसलाकर किसी बालिग ने उससे सेक्स किया, ऐसा कहा जाता है कि शादी का झांसा दिया, और फिर शादी नहीं की तो इस सेक्स को बलात्कार कहकर उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत से ऐसे गिरफ्तार व्यक्ति को चाहे जो सजा हो जाए, यह बात समझने की जरूरत है कि ऐसे देहसंबंधों से, और बाद में मामले के अदालत तक पहुंचने से खुद लडक़ी का भी बड़ा नुकसान होता है। उसे नाबालिग रहते हुए ऐसे देहसंबंधों के तमाम खतरों से वाकिफ तो रहना चाहिए था। 

आज देश भर में हर दिन कई जगहों पर नवजात शिशु नालों या घूरों पर फेंके हुए मिलते हैं। हो सकता है इनमें से कुछ ऐसी कम उम्र नाबालिग लड़कियों के बच्चे भी हों जो कि भारत की क्रूर समाज व्यवस्था के चलते इन्हें जन्म देने का हौसला न कर पाती हों। अभी सुप्रीम कोर्ट तक ऐसे मामले पहुंचे हुए जिनमें बलात्कार या किसी दूसरे तरह से गर्भवती हुई नाबालिग लडक़ी की ओर से मेडिकल समय सीमा पार हो जाने के बाद भी गर्भपात की इजाजत मांगी जा रही है, और सुप्रीम कोर्ट ने अजन्मे बच्चे के अधिकार को अधिक बड़ा मानते हुए 7वेें-8वें महीने के ऐसे बच्चे के गर्भपात की इजाजत नहीं दी। अब नाबालिग बच्चे हिन्दुस्तान में जगह-जगह दूसरे नाबालिगों से बलात्कार करते पकड़ा रहे हैं, लड़कियां जगह-जगह गर्भवती हो रही हैं, और सेक्स से फैलने वाली बीमारियों के तो कोई पुलिस-आंकड़े होते नहीं हैं। इसलिए अपने बदन, सेक्स, और रिश्तों की जो पढ़ाई ब्रिटेन में होती है, और जिसकी उम्र अब बढ़ाकर 9 बरस की जा रही है, वैसी कोई पढ़ाई हिन्दुस्तान में किशोरावस्था में पहुंचने पर भी नहीं होती। नतीजा यह होता है कि लडक़े-लड़कियां मां-बाप बनने के लिए शारीरिक रूप से तैयार हो जाते हैं, सेक्स उनकी एक स्वाभाविक जरूरत बन जाता है, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी जरा भी नहीं रहती। नतीजा यह होता है बहुत से लोग असुरक्षित सेक्स में फंस जाते हैं, बहुत से नाबालिग सेक्स-वीडियो में फंस जाते हैं, और फिर ब्लैकमेलिंग से लेकर तमाम दूसरे किस्म के जुर्म के शिकार हो जाते हैं। 

ऐसी हालत रहने पर भी हिन्दुस्तान में आज बच्चों और किशोरों को, छात्र-छात्राओं को, किसी को भी देह की शिक्षा देने पर समाज का एक दकियानूसी तबका झंडे-डंडे लेकर उठ खड़ा होता है। यह तबका हिन्दुस्तान की एक इतिहास में कभी न रही हुई ऐसी संस्कृति का हवाला देता है जिसमें मानो सेक्स रहा ही न हो। इनके तेवरों का नतीजा यह होता है कि नई पीढ़ी के बदन सेक्स के लायक हो जाते हैं, वे सेक्स में उलझ जाते हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में कोई वैज्ञानिक और सामाजिक समझ नहीं दी जाती। जिन नाबालिग बच्चों को सेक्स में नहीं उलझना चाहिए था, उनके सामने भी सीखने का अकेला जरिया पोर्नोग्राफी रह जाता है, आसपास के ऐसे मुजरिम रह जाते हैं जिनकी कि बच्चों से सेक्स में दिलचस्पी रहती है, आसपास के अपने से उम्र में कुछ बड़े लोग रह जाते हैं जो कि आसानी से बरगलाकर अपने से छोटे लोगों को सेक्स की तरफ धकेल देते हैं या खींच लेते हैं। 

किसी भी देश या समाज को पाखंड में जीना छोड़ देना चाहिए। लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि आज की पीढ़ी कौन से युग में जी रही है, उस पर कौन से प्रभाव हैं, प्रकृति ने नई पीढ़ी के बदन में किस उम्र से कैसी जरूरतें पैदा करना शुरू कर दिया है। इसके साथ-साथ आज इंटरनेट की मेहरबानी से पूरी दुनिया एक गांव की तरह होकर रह गई है, और सोशल मीडिया के तरह-तरह के प्लेटफॉर्म तमाम बच्चों को बाकी दुनिया से रूबरू करवा देते हैं। नतीजा यह होता है कि एक देश के टीनएजर्स दूसरे देश के किशोर-किशोरियों के सामने सांस्कृतिक चुनौतियां पेश करते हैं, और कहीं जवाबी रील बनने लगती हैं, तो कहीं जवाबी टिकटॉक। 

ऐसे में बच्चों को उनके बदन और दूसरे के साथ संबंधों की बुनियादी शिक्षा से बचाकर इस पीढ़ी को एक खतरे के अलावा और कुछ नहीं दिया जा रहा। बच्चों के तन और मन तो अपने वक्त पर जवान हो जाएंगे, लेकिन तब तक उनकी समझ अगर समाज की कोशिश से अनजान बनाकर रखी जाएगी, तो वे बदन और रिश्तों के खतरों को भी नहीं समझ पाएंगे, और हिन्दुस्तान में आज यह बात बहुत बड़े पैमाने पर नुकसान कर रही है। 

दकियानूसी राजनीतिक विचारधारा को जहां मौका लगता है, वह समाज से प्रगतिशील समझ की चीजों को पीछे धकेलने लगती है। ब्रिटिश सरकार की इस ताजा नीति की जमकर आलोचना भी हो रही है, और यह बात भी साफ है आज वहां जिस उम्र के बच्चों को इस शिक्षा की जरूरत है, उससे कम से कम 50 बरस अधिक बड़े सांसद अपनी सरकार पर दबाव डालकर यौन शिक्षा को 9 बरस की उम्र तक रोक रहे हैं। यह बात तय है कि आधी सदी पहले की तन-मन की सामाजिक जरूरतें अलग थीं, आज कम्प्यूटर-मोबाइल, और सोशल मीडिया के युग में ये जरूरतें एक अलग ही दर्जे की हो गई हैं। राजनेता हर मामले में फैसले लेने के लिए सबसे काबिल नहीं रहते हैं। खासकर शिक्षा नीति से तो नेताओं को अपने आपको दूर रखना चाहिए क्योंकि यह सिर्फ विशेषज्ञों की समझ की बात है, और उन्हीं के फैसलों पर इन्हें छोडऩा चाहिए। राजनेताओं को जिंदगी के हर दायरे के विशेषज्ञ मान लेने से ऐसे तमाम दायरों का कुछ या काफी हद तक नुकसान होगा, उससे बचना चाहिए, और आने वाली पीढ़ी को समझदार और सावधान बनने से रोकना नहीं चाहिए।  

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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