संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हिजाब के पीछे तो मुस्लिम लडक़ी के कान-बाल हैं, पर प्रतिबंध के पीछे क्या है?
09-Feb-2022 1:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  हिजाब के पीछे तो मुस्लिम लडक़ी के कान-बाल हैं, पर प्रतिबंध के पीछे क्या है?

कर्नाटक का जो वीडियो सामने आया है वह पूरे हिन्दुस्तान और खासकर हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए भारी शर्मिंदगी का है कि किस तरह वहां मुस्लिम छात्राओं के हिजाब के खिलाफ साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा भगवा-केसरिया दुपट्टा पहनाकर झोंक दिए गए हिन्दू छात्रों की भीड़ ने हिजाब पहनी   एक अकेली मुस्लिम लडक़ी को घेरकर उसके खिलाफ नारेबाजी की और उसकी बेइज्जती की। यह बहादुर लडक़ी अकेली वहां से इस भीड़ के बीच से निकली, और उसने सोशल मीडिया पर देश के तमाम गैरसाम्प्रदायिक लोगों का दिल जीत लिया, लोगों की वाहवाही पाई। देश के कुछ सबसे तीखे कार्टूनिस्टों ने इस लडक़ी पर किए जा रहे हमले, और उस लडक़ी की बहादुरी पर धारदार कार्टून बनाए हैं। इस मामले में हमने दो-तीन दिन पहले ही इसी जगह लिखा था लेकिन इन तीन दिनों में घटनाएं इस तेजी से आगे बढ़ी हैं, और यह विवाद चल ही रहा है इसलिए हम इस पर एक बार लिखना जरूरी और जायज समझ रहे हैं।

कर्नाटक के इस हिजाब विवाद में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा है कि महिलाएं बिकिनी पहनें, या हिजाब, घूंघट डालें, या जींस पहनें, यह उनका अधिकार है जो कि भारत के संविधान में उसे दिया है इसलिए महिलाओं को प्रताडि़त करना बंद करें। ऐन चुनाव के वक्त प्रियंका गांधी का यह बयान एक हौसलामंद रूख है जो कि दकियानूसी या कट्टरपंथी वोटरों को नाराज करने की कीमत पर भी देश की लड़कियों और महिलाओं की बुनियादी हक की बात करता है और कट्टरपंथियों पर वार भी करता है। आमतौर पर राजनीति के लोग  ऐसी हिम्मत दिखाने से कतराते हैं, और गोलमोल जुबान में बात करते हैं, लेकिन प्रियंका गांधी ने साफगोई दिखाकर ठीक काम किया है। लोगों को याद होगा कि उत्तरप्रदेश से कांग्रेस ने एक ऐसी युवती को टिकट दिया है जिसने एक वक्त मिस इंडिया बिकिनी का खिताब जीता था, और उसकी पुरानी तस्वीरें निकालकर उसके खिलाफ प्रचार किया जा रहा है। यह करने वाले लोग यह भूल रहे हैं कि एक वक्त भाजपा की सांसद मेनका गांधी भी बॉम्बे डाईंग के तौलिये लपेटकर उनकी मॉडलिंग कर चुकी हैं, और स्मृति ईरानी भी टीवी सीरियलों पर कई तरह के किरदार कर चुकी हैं।

दूसरी तरफ कर्नाटक हाईकोर्ट में जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित की अध्यक्षता वाली बेंच में इस मामले पर सुनवाई चल रही है। सरकारी ड्रेसकोड के नाम पर वहां के स्कूल-कॉलेज से हिजाब हटाने के खिलाफ लगाई गई एक याचिका पर हाईकोर्ट जज ने कहा कि चूंकि सरकार इस अनुरोध पर राजी नहीं है कि दो महीनों के लिए छात्राओं को हिजाब पहनने दिया जाए इसलिए हम इस मामले पर मेरिट के आधार पर फैसला लेंगे। हाईकोर्ट ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय हमें देख रहा है और यह कोई अच्छी तस्वीर नहीं है। जस्टिस दीक्षित की पीठ ने कहा- हमारे लिए संविधान भागवत-गीता के सामान हैं। हमें संविधान के मुताबिक ही कार्य करना होगा, हम संविधान की शपथ लेने के बाद इस निष्कर्ष पर आए हैं कि इस मुद्दों पर भावनाओं को परे रखकर सोचा जाना चाहिए। सरकार कुरान के खिलाफ आदेश नहीं दे सकती, कपड़े पहनने का विकल्प मूल अधिकार है, हिजाब पहनना भी मौलिक अधिकार है, हालांकि सरकार मौलिक अधिकार को सीमित कर सकती है। अदालत का कहना है कि यूनिफॉर्म को लेकर सरकार का स्पष्ट आदेश नहीं है इसलिए हिजाब पहनना निजी मामला है, और सरकार का आदेश निजी हदों का उल्लंघन करता है। जस्टिस दीक्षित की बेंच ने सरकार से यह सवाल भी किया कि वे दो महीने के लिए हिजाब पहनने की अनुमति क्यों नहीं दे सकते, और समस्या क्या है?

इस बात को अनदेखा करना ठीक नहीं होगा कि कर्नाटक हाईकोर्ट की जिस बेंच ने ये सवाल किए हैं और यह सोच सामने रखी है उसके मुखिया एक हिन्दू जज हैं। और उनका रूख इस बात से भी दिखता है कि बेंच ने इस दौरान सिक्ख समुदाय से संबंधित विदेशी अदालतों के फैसलों का जिक्र देते हुए कहा कि सिक्खों के मामले में न सिर्फ भारत की अदालत ने, बल्कि कनाडा और ब्रिटेन की अदालतों ने भी उनकी प्रथा को आवश्यक धार्मिक परंपरा के तौर पर माना। हमारे पाठकों को याद होगा कि दो दिन पहले जब इस मुद्दे पर हमने इसी जगह लिखा उस वक्त हमने धार्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल को लेकर हिन्दुस्तान के साथ-साथ पश्चिमी देशों में भी सिक्खों को अपनी पगड़ी, कड़े, और प्रतीकात्मक कटार को लेकर मिली हुई कानूनी छूट का जिक्र किया था, और यह लिखा था कि मुस्लिम लड़कियों का हिजाब पहनने का आग्रह कोई अकेली धार्मिक मांग नहीं है। हिन्दू छात्र भी अपनी धार्मिक आस्था के अनुरूप बालों के पीछे चुटैया रखते ही हैं। इस धर्मनिरपेक्ष देश में भी हमने सरकारी कामकाज में चारों तरफ मोटेतौर पर हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों के इस्तेमाल की एक लंबी फेहरिस्त गिनाई थी।

अब आज यह समझने की जरूरत है कि यह पूरा बखेड़ा इस अंदाज में क्यों खड़ा हो रहा है? कर्नाटक के बाद अब मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने यह घोषणा की है कि वह भी स्कूल यूनिफॉर्म के नियम कड़े करके कर्नाटक की तरह ही हिजाब पर रोक लगाएगी। मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री ने कहा है कि हिजाब बैन होगा। मजे की बात यह है कि हिन्दुस्तान के अनगिनत सरकारी और निजी स्कूलों में लड़कियों के पोशाक की स्कर्ट पर हिन्दूवादी राज्य सरकारों को कोई आपत्ति नहीं है। स्कर्ट जो कि एक विदेशी पोशाक है, जिसमें लड़कियों के बदन का एक हिस्सा दिखता है, और जो कि बहुत से ठंडे प्रदेशों में सही पोशाक भी नहीं है, उसके खिलाफ किसी हिन्दूवादी सरकार या संगठन को कुछ नहीं लगा। अब ऐसे में जब कर्नाटक से यह बवाल उठकर दूसरे भाजपा शासित राज्यों तक पहुंच रहा है तो इसके पीछे की राजनीति समझने की जरूरत है कि मुस्लिम तनाव को घेरे में लेकर हांका डालकर इस तरह छेककर मारने का यह काम ठीक यूपी-उत्तराखंड चुनाव के वक्त हो रहा है जहां पर लगातार धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश हो रही है। कर्नाटक की भाजपा सरकार आज हाईकोर्ट के सामने भी जिस तरह अपनी इस ध्रुवीकरण की कोशिश पर अड़ी हुई है, वह सारी कोशिश उत्तरप्रदेश के हिन्दू और मुस्लिम वोटरों के बीच एक भावनात्मक खाई खोदने की कोशिश है, और इस साजिश को अच्छी तरह समझने की जरूरत है। आज जब हिन्दुस्तान के समाचार-टीवी चैनल दक्षिण भारत के एक मंदिर की दर्शनीय पोशाक में सजे हुए एक आस्थावान हिन्दू की तरह समाचार-बुलेटिनों में छाए हुए हैं, सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें और उनके वीडियो पट गए हैं, ऐन उसी वक्त मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक कर्नाटक का हिजाब-प्रतिबंध भी छाया हुआ है। इन दोनों नजारों को एक साथ पेश करने से जो तस्वीर बन रही है, वह उत्तरप्रदेश के चुनाव प्रचार की रणनीति दिखती है। अब सवाल यह है कि ध्रुवीकरण करके मुस्लिम अल्पसंख्यक वोटर-तबके को किनारे करने के लिए देश के इतिहास की गौरवशाली परंपराओं और संविधान के मौलिक अधिकारों के बुनियादी ढांचे को कितना गिराया जाएगा? जो लोग अभी के इस विवाद को अनायास मान रहे हैं, उन्हें चुनाव प्रचार के हर पहलू के सायास होने की बात समझनी चाहिए।
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