संपादकीय

'छत्तीसगढ़' का संपादकीय : माथे पर कील ठुकवा लेने के पीछे की महिला की मजबूरी समझने की जरूरत
11-Feb-2022 4:19 PM
 'छत्तीसगढ़' का संपादकीय :  माथे पर कील ठुकवा लेने के पीछे की महिला की मजबूरी समझने की जरूरत

पाकिस्तान की खबर आई है कि वहां तीन बेटियों की एक मां ने चौथी संतान बेटा पाने के लिए जादू के करिश्मे का दावा करने वाले अपने को पीर बताने वाले एक आदमी के झांसे में जान खतरे में डालने वाला काम किया है। दो इंच से लंबी एक कील को हथौड़े से उसके माथे पर ठोक दिया गया कि इससे उसे बेटा होगा। इसके बाद जब महिला से वह कील खुद ही सरोते से नहीं निकल पाई और उसकी हालत बिगडऩे लगी तो उसे पेशावर शहर के एक अस्पताल ले जाया गया और वहां डॉक्टरों ने ऑपरेशन करके यह कील निकाली। गनीमत यही रही कि यह कील इतने भीतर तक जाने पर भी उसके दिमाग में नहीं घुसी थी। पुलिस का कहना है कि अस्पताल से वीडियो फूटेज लिए गए हैं और जल्द ही उस महिला से पूछताछ करके कील ठोंकने वाले को गिरफ्तार किया जाएगा।

अब पाकिस्तान के हालात हिन्दुस्तान से बहुत अलग हैं। इसलिए वहां एक लडक़े की चाह में अगर कोई महिला ऐसा कर बैठी है तो उसके पीछे कई निजी और सामाजिक वजहें हो सकती हैं। एक वजह तो यह हो सकती है कि लड़कियों की हिफाजत आज इन दोनों ही मुल्कों में एक बड़ा खतरा बनी हुई है। हिन्दुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में लड़कियों और महिलाओं की हिफाजत मुश्किल होती जा रही है और यह खतरा पेशेवर मुजरिमों से न होकर समाज से ही हो रहा है, अपने घर-परिवार के भीतर भी हो रहा है। कर्नाटक के ताजा हिजाब विवाद का लेना-देना भी लड़कियों से है और इसके पीछे की सरकारी-साम्प्रदायिक वजहों को छोड़ भी दें, तो यह मुस्लिम समाज के भीतर लड़कियों और महिलाओं से भेदभाव का एक जलता-सुलगता मामला है जिसमें पोशाक की हर किस्म की बंदिश सिर्फ लड़कियों-महिलाओं पर लादी गई हैं, और लडक़े और आदमी तमाम किस्म की हरकतों के लिए आजाद रहते हैं। राजस्थान को देखें तो आज इक्कीसवीं सदी में भी पूरे प्रदेश की महिलाएं घूंघट में दिखती हैं, बाकी देश में भी अधिकतर समाजों में तमाम रोक-टोक महिलाओं पर ही लागू है। इसलिए हिन्दुस्तान हो या पाकिस्तान संतान के होने पर आमतौर पर बेटे की ही खुशी मनाई जाती है, और बेटी होने पर लोग मन मसोसकर रह जाते हैं।

अब पाकिस्तान की इस ताजा घटना का अंधविश्वास से भी लेना-देना है, और इस मामले में भी हिन्दुस्तान कहीं पीछे नहीं है। छत्तीसगढ़ और झारखंड में जादू-टोने के नाम पर पेशेवर बैगा-ओझा-गुनिया लोगों को लूटते हैं, और पैसों के साथ-साथ महिलाओं-बच्चों के बदन भी लूटते हैं। और ऐसी ही घटनाओं के इर्द-गिर्द जादू करने वाले लोगों की हत्याएं भी सुनाई पड़ती हैं। जब पेशेवर लोग जादू करने का दावा करते हैं, तो यह जाहिर है कि उन्हें सचमुच काला जादू करने वाला मानकर लोग उन्हें मार भी डालते हैं। हिन्दुस्तान मेें आल-औलाद की चाह के लिए या बेटियों के बाद बेटे की चाह के लिए लोग तमाम किस्म के अंधविश्वास के भी शिकार होते हैं, और वे यह भी कोशिश करते हैं कि भ्रूण परीक्षण से पता लग जाए कि पेट में बेटी है तो उसे मार डाला जाए, और अगली बार बेटे की कोशिश की जाए।

बेटे की चाह को लोगों की निजी चाह मानना भी गलत होगा। आज की सामाजिक हकीकत यही है कि एक बेटी को बड़े करने से लेकर उसके शादी-ब्याह तक, और उसके ससुराल में उसकी सुरक्षित जिंदगी तक के लिए मां-बाप को अंतहीन फिक्र करनी होती है, अंतहीन खतरे उठाने होते हैं। समाज में लड़कियों के साथ जितने तरह के जुल्म होते हैं, उन्हें जितने किस्म के सेक्स अपराध झेलने पड़ते हैं, स्कूल-कॉलेज से लेकर खेल के मैदान और प्रयोगशाला तक जितने किस्म के सेक्स-शोषण का खतरा उन पर मंडराते रहता है, वह सब मां-बाप पर बहुत भारी पड़ता है, और हिन्दुस्तानी मां-बाप को महज बेटे की चाह में अंधा कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि बेटी को बड़ा करना बहुत अधिक आशंकाओं से भरा हुआ और चुनौती का काम होता है।

जिन बातों को हम कर रहे हैं इनका कोई आसान रास्ता नहीं है। फिर भी हिन्दुस्तान और पाकिस्तान जैसे देशों में महिलाओं की स्थिति को लेकर लगातार चर्चा की जरूरत रहती है और सामाजिक जागरूकता से लेकर कानूनी सुरक्षा तक के मोर्चे पर लगातार मेहनत की जरूरत है। आज कुछ संगठन इन मुद्दों पर चर्चा जरूर करते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि ये चर्चाएं जागरूक लोगों के दायरे में, जागरूक लोगों द्वारा, जागरूक लोगों के लिए होकर रह जाती हैं, और समाज के व्यापक हिस्से तक इनका असर नहीं पहुंच पाता। पाकिस्तान के इस ताजा मामले को देखें तो वह एक बार फिर यही साबित करता है कि अंधविश्वास का अधिक शिकार महिलाएं ही होती हैं। उन्हीं के बीच अशिक्षा अधिक है, उन्हें जागरूक बनाते हुए समाज के मर्द डरते हैं कि वे जागरूक होकर मर्दों के खिलाफ ही खड़ी न हो जाएं। इसलिए समाज उन्हें बुर्के और घूंघट के भीतर रखना चाहता है, घर के भीतर रखना चाहता है, जागरूकता के मोर्चे से दूर रखना चाहता है, और जहां तक मुमकिन हो सके लडक़ी को मां के गर्भ में ही खत्म कर देना चाहता है। ऐसे तमाम मुद्दों पर जहां मौका मिले वहां चर्चा होनी चाहिए, इसीलिए हम आज पाकिस्तान की इस एक अकेली घटना को लेकर उससे जुड़े हुए दूसरे मुद्दों को भी सामने रख रहे हैं।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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