संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस पोशाक से धर्म का पता लगना तो आसान था, लेकिन इंसानियत का पता भी चला...
13-Feb-2022 4:44 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  इस पोशाक से धर्म का पता लगना तो आसान था, लेकिन इंसानियत का पता भी चला...

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले हफ्ते एक लडक़ी रेल की पटरी मालगाड़ी के नीचे से होकर पार कर रही थी कि अचानक मालगाड़ी चल पड़ी और वह लडक़ी निकल नहीं पाई और चीखने लगी। उसकी आवाज सुनकर वहीं खड़े एक बढ़ई ने अपनी जान की परवाह किए बिना चलती हुई मालगाड़ी के नीचे घुसकर उस लडक़ी को पकडक़र दबाकर रखा और 26 डिब्बों की मालगाड़ी ऊपर से निकल गई। इसके बाद वह लडक़ी अपने रास्ते चली गई, और यह गरीब बढ़ई बिना एक शुक्रिया के भी अपने घर चले गया। घर पर उसने अपनी बीवी को बताया कि ऐसा हादसा हुआ और उसकी कोशिश से एक लडक़ी बच गई तो घरवाली ने खुशी जाहिर की, बजाय इसके कि पति के खतरे में पडऩे को लेकर वह उस पर चढ़ाई करती। इस घटना का एक वीडियो अभी चारों तरफ फैला तो भोपाल की इस संस्था ने इस आदमी को ढूंढकर उसका सम्मान किया। और यह बढ़ई इतना गरीब था कि उसके पास एक मोबाइल फोन भी नहीं था तो संस्था ने उसे एक मोबाइल फोन भी दिया। अब इस घटना की एक आखिरी जानकारी यह है कि ऊपर से गुजर रही मालगाड़ी के नीचे इस लडक़ी को बचाए हुए इस आदमी का हुलिया वीडियो में दिखता है, और जैसा कि हिन्दुस्तान में कहा गया है कि लोगों के कपड़ों से उनकी पहचान होती है, तो इस बढ़ई ने मुस्लिम टोपी लगाई हुई थी। महबूब नाम का यह आदमी नमाज पढक़र आ रहा था, और सामने मुसीबत में इस तरह चीखती हुई लडक़ी को देखकर उसने अपने गरीब परिवार की फिक्र की किए बिना उसे बचाने के लिए अपनी जिंदगी इस तरह झोंक दी थी। मोहम्मद महबूब नाम के इस आदमी की टोपी उसका मजहब तो बता रही है, लेकिन यह टोपी किस तरह इंसानियत और बहादुरी भी अपने भीतर छुपाई हुई थी, वह इस घटना के बाद सामने आया है।

अब जिस तरह इस मुल्क में पोशाक को लेकर बवाल चल रहा है, और जिस तरह इस देश में यह कहा जा रहा है कि लोगों की पोशाक से उनका धर्म पता लगता है, तो क्या यह भी कोई सोचेंगे कि उनके धर्म से उनकी इंसानियत का भी पता लगता है या नहीं? क्या पोशाक और धर्म इस कदर मायने रखते हैं कि उनके भीतर की इंसानियत है या नहीं इसकी अहमियत खत्म हो जाती है? क्या पाकिस्तानी टैंकों को उड़ाने वाले देश के सबसे बहादुर सैनिक कैप्टन हमीद का धर्म उनकी बहादुरी को कम या अधिक कर पाएगा? या क्या उनकी पोशाक देखकर उनका धर्म पता लग सकता था? और क्या ऐसी पतासाजी इंसानियत के लिए कोई मायने रखती है? इस एक घटना से आज देश में सुलगाई और भडक़ाई जा रही पोशाक की लड़ाई की हकीकत उजागर होती है। पोशाक से अगर कोई धर्म उजागर होता है, तो उससे कोई इंसानियत तो कम से कम उजागर नहीं होती है। हो सकता है किसी पोशाक से उजागर होने वाले धर्म पर किसी को गर्व हो, लेकिन उस पोशाक के भीतर किस किस्म के इंसान हैं उससे भी यह तय होता है कि उनका धर्म उस पर गर्व करे या न करे। आज हालत यह है कि लोग अपने धर्म पर गर्व का नारा लगाते हुए ऐसी हरकतें कर रहे हैं कि उनके धर्म को उन पर सिवाय शर्मिंदगी के और कुछ न हो।

एक गरीब बढ़ई ने अपने परिवार की फिक्र किए बिना अपनी जान झोंककर एक मुसीबतजदा लडक़ी का धर्म जाने बिना जिस तरह उसकी जान बचाई, वही असली धर्म है और ऐसा बढ़ई अपने धर्म पर गर्व करे या न करे, उसका धर्म जरूर उस पर गर्व कर सकता है। दूसरी तरफ हाल ही में हुई कुछ दूसरी वारदातों को देखें तो यह समझ पड़ता है कि कौन से लोग अपने धर्म का नाम लेते हुए भी अपने धर्म पर कलंक बने हुए हैं, और अगर धर्म की कोई भावनाएं होतीं तो वह धर्म अपने ऐसे मानने वालों के जुर्म के लिए शर्म से डूब मरता, कहता कि हे धरती तू फट जा, और मुझे समा ले।

भोपाल की यह घटना छोटी सी है, लेकिन इसका वीडियो बन जाने से यह भरोसेमंद हो गई, और बहुत से धर्मान्ध और साम्प्रदायिक लोगों को शायद पहली बार यह लगा होगा कि मुस्लिम टोपी के नीचे का कोई इंसान भी कोई नेक काम कर सकता है। दूसरी तरफ कुछ धर्म के लोगों का, और खासकर इसी मध्यप्रदेश के बहुत से लोगों का अपने खुद के धर्म के बारे में यह मानना है कि वे धर्म का नाम लेकर जो कुछ भी करते हैं, जितनी भी हिंसा करते हैं, वह सब उनके धर्म का गौरव बढ़ाने का काम है। त्याग और बहादुरी किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है, और इसकी मिसालें चारों तरफ रहती लेकिन आज इसकी चर्चा करने की जरूरत इसलिए हो रही है कि हिन्दुस्तान के इतिहास की सबसे अधिक ताकत वाली हिन्दूवादी सरकार के चलते हुए भी अगर लगातार हिन्दू को खतरे में बतलाया जा रहा है, और हिन्दू धर्म को बचाने के लिए बहादुरी के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों पर, दूसरे किस्म की पोशाक वाले लोगों पर, दूसरे किस्म के खानपान वाले लोगों पर हमला किया जा रहा है, तो क्या उससे हिन्दू खतरे से बाहर आ जा रहा है? लोगों को यह समझने की जरूरत है कि इतनी हिन्दूवादी सरकार तो देश में कभी भी नहीं थी, और आज तो अधिकतर प्रदेशों में ऐसी ही हिन्दूवादी सरकारें हैं, उसके बाद हिन्दू कैसे खतरे में बतलाए जा सकते हैं? अगर इतनी सत्ता की ताकत भी हिन्दू पर से खतरा घटा नहीं सकती हैं, तो फिर इनके पहले की सरकारों के चलते भी हिन्दू कभी इतने खतरे में नहीं थे। इसलिए इस छोटी से घटना को लेकर यह सबक लेने की जरूरत है कि लोगों की पोशाक से उनके धर्म की अटकल न लगाएं, बल्कि लोगों की हरकतों से उनके भीतर की इंसानियत की, या उसकी नामौजूदगी की अटकल जरूर लगाएं।
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