संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सरकारी और अदालती फैसलों पर अंधविश्वास का ऐसा खतरा !
15-Feb-2022 4:51 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  सरकारी और अदालती फैसलों पर अंधविश्वास का ऐसा खतरा !

भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, एनएसई, की एक पूर्व प्रमुख चित्रा रामकृष्ण के खिलाफ हुई एक जांच में भारत के शेयर बाजार नियामक सेबी ने पाया है कि चित्रा रामकृष्ण एनएसई की मुखिया रहते हुए अपने एक तथाकथित आध्यात्मिक गुरू से इस कदर प्रभावित थीं कि अपने पूरे कार्यकाल में वे एनएसई के हर राज इस गुरू के साथ साझा करती थीं, और उनके बताए मुताबिक काम करती थीं। सेबी ने जो पाया है वह किसी फिल्मी कहानी जैसा लग रहा है जिसमें चित्रा रामकृष्ण एनएसई के हर फैसले, हर जानकारी को इस गुरू को ईमेल करती थीं, और उनसे मिले निर्देशों को आदेश मानकर हर काम करत थीं। तीन बरस से अधिक तक एनएसई की मुखिया रही इस महिला ने इस तथाकथित गुरू के कहने पर एक आदमी को एनएसई के एक सबसे बड़े ओहदे पर करोड़ों रूपए साल पर नियुक्त किया था। यह पूरा सिलसिला बहुत ही रहस्मयमय है, और सेबी ने इसकी जांच में यह पाया है कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की जांच के दौरान जो कागजात उसने इक_ा किए हैं उनसे साफ होता है कि स्टॉक एक्सचेंज को पर्दे के पीछे से यह योगी ही चला रहा था, और चित्रा रामकृष्ण जब तक अपने ओहदे पर रहीं, तब तक वे महज उसके हाथों की कठपुतली बनी रहीं। देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज अगर इस तरह अपने एक मुखिया के अंधविश्वास पर चलता रहा तो इससे भारत की ढांचागत सुरक्षा पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। चित्रा रामकृष्ण की जांच के दौरान सेबी ने यह भी पाया कि एक तरफ तो यह महिला इस योगी को बिना शरीर वाला एक व्यक्ति बताती है जो जब चाहे जैसा चाहे शरीर धारण कर सकता था, दूसरी तरफ वह उसी गुरू के साथ घूमने के लिए विदेश भी गई ऐसा भी सेबी ने पाया है।

यह मामला चूंकि जांच में पुख्ता साबित हो रहा है इसलिए इसके बारे में आज इतनी बात हो रही है। लेकिन दूसरी तरफ यह बात अपनी जगह सही है कि सार्वजनिक ओहदों पर बैठे हुए लोग जिस तरह किसी धर्म, ईश्वर, आध्यात्मिक गुरू या किसी दूसरे अंधविश्वास के शिकार रहते हैं, वह बात उनके फैसलों पर कई बार हावी होती हैं। जब पी.व्ही. नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे, उस वक्त वे पुट्टपर्थी के सांई बाबा के भक्त थे। उस वक्त दिल्ली के एम्स के सबसे बड़े हार्ट सर्जन डॉ. वेणुगोपाल भी सांई बाबा के भक्त थे, और प्रधानमंत्री के स्तर पर मिली एक विशेष अनुमति के आधार पर वे हर हफ्ते कुछ दिन हार्ट का ऑपरेशन करने के लिए पुट्टपर्थी के ट्रस्ट के अस्पताल जाते थे। देश के बहुत से प्रधानमंत्रियों से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों तक, और चुनाव आयुक्त तक कभी किसी आध्यात्मिक गुरू के भक्त रहे, तो कभी वे अपनी धार्मिक आस्था का सार्वजनिक प्रदर्शन करते रहे। इनसे उनके कार्यक्षेत्र और अधिकार क्षेत्र के दूसरे लोगों के बीच एक प्रभामंडल बन जाता है जो कि सरकार, न्यायपालिका या चुनाव आयोग के निष्पक्ष काम करने में आड़े आता है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में सार्वजनिक पदों पर बैठे हुए लोगों को अपनी निजी आस्था को आडंबर और प्रदर्शन से दूर रखना चाहिए ताकि उनकी निष्पक्षता किसी संदेह से परे भी साबित हो सके। लेकिन ऐसा होता नहीं है। लोकतंत्र के भीतर भी लोग अपनी धार्मिक आस्था को अपना निजी अधिकार बताते हुए उसे सार्वजनिक पैसों से सार्वजनिक मंचों पर दिखाते रहते हैं, और उस आस्था से परे की कोई आस्था रखने वाले लोगों का विश्वास खोने में भी उन्हें कोई हर्ज नहीं लगता है।

आज सरकार से लेकर न्यायपालिका तक, और जैसा कि इस ताजा मामले से साबित हुआ है, एनएसई तक में आस्था और अंधविश्वास के आधार पर लिए गए फैसलों से भारी खतरनाक नौबत बनी रहती है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही हमारा देखा हुआ है कि आध्यात्मिक गुरू माने जाने वाले किसी व्यक्ति के भक्तजन न्यायपालिका और पुलिस में बड़े-बड़े ओहदों पर रहते हुए किस तरह अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हैं, और अपने मातहत तमाम लोगों को ऐसे गुरू की सेवा में झोंक देते हैं। जाहिर है कि इन लोगों के फैसले ऐसे गुरू के प्रभाव में लिए जाते हैं, और धीरे-धीरे ऐसे गुरू मनचाहे फैसले दिलाने के दलाल भी बन जाते हैं। आस्था जब बढ़ते-बढ़ते अंधविश्वास हो जाती है और वह एक संगठन की ताकत के साथ मिलकर मनमानी करने पर उतारू होती है तो उससे आसाराम जैसे बलात्कारी से लेकर राम-रहिम जैसे मुजरिम पैदा होते हैं जो कि भक्तों से, भक्तों के बच्चों से बलात्कार करते हैं।

भारत में हमारा देखा हुआ है कि धर्म, आध्यात्म, और गुरू का यह सिलसिला कुल मिलाकर धर्मान्धता और अंधविश्वास की तरफ ही ले जाता है। देश के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज को चला रही महिला जिस तरह हिमालय में कहीं जीने वाले किसी अज्ञात और अलौकिक गुरू के कहे मुताबिक फैसले ले रही थी, उससे लोकतंत्र और सरकार के कामकाज में आस्था का खतरा भयानक पैमाने पर उभरकर सामने आया है। हिन्दुस्तान में सार्वजनिक ओहदों और जनता के पैसों से किसी भी किस्म की आस्था का प्रचार बंद होना चाहिए। लेकिन इस देश ने सुप्रीम कोर्ट के जाने कितने ही जजों को अपनी आस्था के आडंबर का प्रदर्शन करते देखा है, ऐसे में न्यायपालिका से भी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।  
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news