संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक बुजुर्ग धोखेबाज की डेढ़ दर्जन शादियां आखिर क्या बताती हैं?
18-Feb-2022 4:04 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक बुजुर्ग धोखेबाज की डेढ़ दर्जन शादियां आखिर क्या बताती हैं?

Photo Biswa Ranjan/BBC

ओडिशा की एक दिलचस्प लेकिन तकलीफदेह खबर है कि वहां अपने आपको केन्द्र सरकार का बड़ा अफसर बताने वाले एक धोखेबाज ने सत्रह महिलाओं को अपने जाल में फंसाया, उनसे शादी की, और लाखों रूपए ठगे। इतना कुछ कर गुजरने के बाद अब वह पुलिस की गिरफ्त में आया है। हैरानी की बात यह भी है कि यह आदमी 66 बरस का हो गया है, और अब तक शादियों का उसका सिलसिला जारी ही था, उसने ओडिशा, असम, दिल्ली, एमपी, पंजाब, यूपी, झारखंड और छत्तीसगढ़ की महिलाओं से शादियां कीं। पुलिस का यह भी कहना है कि हो सकता है कि इन सत्रह के अलावा भी और महिलाओं को उसने धोखा दिया हो, या शादी की हो। पुलिस जांच में यह भी पता लगा है कि इसके धोखे की शिकार महिलाएं भारी पढ़ी-लिखी भी थीं, कामकाजी थीं, और इस धोखेबाज की पसंद के मुताबिक उनमें से हर कोई पैसे वाली भी थीं। 1982 से शुरू होकर 2020 तक शादियों का उसका यह सिलसिला लगातार चलते रहा, जबकि उसकी पहली शादी से हुए तीनों बेटे डॉक्टर हैं, और विदेश में हैं।

धोखाधड़ी और जालसाजी के जुर्म पर लिखने की आज यहां पर हमारी कोई हसरत नहीं है। लेकिन इस बात पर सोचना-विचारना जरूरी है कि भारत में महिलाओं पर शादी के लिए ऐसा कितना दबाव रहता है कि वे 64 बरस के आदमी से भी शादी को तैयार हो जाती हैं, एक पेशेवर जालसाज के झांसे में भी करीब डेढ़ दर्जन महिलाएं शादी की हद तक फंस जाती हैं। इस मुद्दे पर सोचते हुए अभी कुछ ही दिन पहले बीबीसी पर ब्रिटेन के बारे में आई एक रिपोर्ट याद पड़ती है कि वहां पर बिना शादी रहने वाले, नौजवान से अधेड़ होने वाले अकेले लोगों का अनुपात आबादी में तेजी से बढ़ते जा रहा है। लेकिन इसी रिपोर्ट में यह भी था कि अकेली रहने वाली महिलाओं के बारे में ब्रिटेन जैसे विकसित और सभ्य समाज में भी अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल होता है, और समाज अकेली रहने वाली युवती की उम्र हो जाने पर उसे नीची नजरों से देखता है। हिन्दुस्तान में हालत ब्रिटेन के मुकाबले अधिक खराब है, और यहां पर परिवार से परे समाज और कामकाज की जगह भी सवालिया नजरों से अकेली महिला को देखने लगते हैं कि उसकी शादी क्यों नहीं हो रही है? देखने का यह नजरिया कभी नहीं रहता कि वह शादी क्यों नहीं कर रही है, और समाज का मर्दाना नजरिया शादी न होने को महिला की पसंद न मानकर उसकी बेबसी मानकर ही चलता है।

हिन्दुस्तान में सोशल मीडिया पर देखें तो अनगिनत अविवाहित लड़कियां अपने-अपने हौसले के अनुपात में समाज की खिल्ली उड़ाते हुए लिखती हैं कि किस तरह उनके शादी न करने को लेकर उनके पीछे लग जाता है, और किसी भी पारिवारिक प्रसंग में रिश्तेदार घेर लेते हैं कि अब तक शादी क्यों नहीं हुई है। वैसे तो अनगिनत युवक भी इसी बात को लिखते हैं कि हिन्दुस्तानी रिश्तेदार इस बात के पीछे लग जाते हैं कि वे शादी क्यों नहीं कर रहे हैं। हो सकता है कि अब समलैंगिकता पर बनी हुई बहुत सी हिन्दुस्तानी और हिन्दी फिल्मों को देखने के बाद मां-बाप और रिश्तेदारों को यह शक भी होता हो कि आल-औलाद उम्र हो जाने पर भी अगर शादी नहीं कर रही है, तो कहीं वह समलैंगिक तो नहीं है। लेकिन हम इससे परे भी यह बात देखते हैं कि शादी न करने और अकेले रहने का जो तनाव अकेली महिला को झेलना पड़ता है उससे अकेले आदमियों के तनाव का कोई मुकाबला नहीं हो सकता। शायद यह भी एक वजह भी होगी कि महिलाएं उम्र में अपने से बहुत बड़े, और 64 बरस के हो चुके आदमी से भी शादी करने को तैयार हो जाती हैं, बड़ी संख्या मेें हो गई हैं। ऐसे रिश्तों में फंसते हुए इन महिलाओं के जीवन में अकेले रहने को लेकर जितने किस्म की सामाजिक आशंकाएं रहती होंगी, जितने तरह के सामाजिक खतरे रहते होंगे, वे भी इन महिलाओं को ऐसी खतरनाक शादी की तरफ धकेलते होंगे। किसी महिला के अकेले रह जाने का कलंक भारतीय समाज में छोटा नहीं है, और चारों तरफ उसे लेकर मर्दों के मन में उत्साह पैदा होने लगता है, और आसपास की शादीशुदा महिलाओं के मन में आशंका। यह पूरा सिलसिला एक बहुत ही तकलीफदेह सामाजिक तनाव पैदा करता है, और ऐसी तकलीफ के बीच लड़कियां और महिलाएं कई बार खराब या खतरनाक रिश्तों में भी फंस जाती हैं।

शहरीकरण और महिला की आर्थिक आत्मनिर्भरता ने हिन्दुस्तान की इस तस्वीर को थोड़ा सा बदला जरूर है, लेकिन आज जब ब्रिटेन जैसा आधुनिक समाज भी महिलाओं को अकेले रहने पर अपमान की नजर से देखता है तो यह माना जाना चाहिए कि हिन्दुस्तान में अगली शायद आधी सदी भी अकेली महिला को सवालिया नजरें झेलनी पड़ेंगी। कुल मिलाकर आज की बात का नतीजा हम यही निकाल सकते हैं कि जिन आत्मनिर्भर और संपन्न महिलाओं ने एक शादी के फेर में ऐसे खतरे झेले, उन्हें अपनी आत्मनिर्भरता के साथ अधिक सावधान रहना था, और पुख्ता जानकारी के पहले कुछ और वक्त तक अकेले रह लेने का बर्दाश्त भी दिखाना था। आर्थिक आत्मनिर्भरता न रहने पर तो महिला को कई किस्म के अवांछित समझौते करने पड़ते हैं, लेकिन इन आत्मनिर्भर महिलाओं को ऐसे खतरों में पडऩे की कोई बेबसी नहीं थी, और उन्हें अधिक चौकन्ना रहना चाहिए था। इस एक मामले में फंसी डेढ़ दर्जन महिलाओं को देखते हुए चारों तरफ के लोगों को एक सामाजिक सावधानी और चौकन्नेपन की नसीहत लेनी चाहिए।
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