संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सडक़ों पर खतरे अनदेखा करना सरकार का हक नहीं
21-Feb-2022 4:02 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  सडक़ों पर खतरे अनदेखा करना सरकार का हक नहीं

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सत्रह बरस का एक नाबालिग लडक़ा अपने दोस्तों और अपने कुत्ते के साथ कार में निकला। अचानक कुत्ता स्टियरिंग पर चढ़ गया तो कार उस लडक़े के काबू से बाहर होकर कंस्ट्रक्शन कर रहे मजदूरों पर चढ़ गई, और 9 मजदूरों को रौंदते हुए जाकर पलट गई। एक महिला मजदूर की मौके पर मौत हो गई और बाकी मजदूर घायल हो गए। नए कानून के तहत नाबालिग को कार देने पर कार मालिक पर भी कार्रवाई का प्रावधान है, लेकिन अब तक शायद बिलासपुर पुलिस ने नाबालिग के कार मालिक पिता पर कार्रवाई नहीं की है। यह घटना बहुत अनोखी नहीं है, लेकिन दिनदहाड़े खुली सडक़ पर हुए इस हादसे की वजह से खबरों में आ गई है, और यह लडक़ा पकड़ में भी आ गया। इससे सबक लेकर राज्य सरकार को पूरे प्रदेश में पुलिस को चौकस करना चाहिए। सडक़ों पर नियमों को तोडऩा एक बुरी आदत की तरह लोगों के मिजाज में शामिल हो जाता है, और फिर पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहता है, इसलिए इस सिलसिले को शुरूआत में ही खत्म करना चाहिए। आम लोगों के लिए पुलिस की पहली पहचान सडक़ों से ही शुरू होती है, और नियमों को तोडऩे का सिलसिला भी सडक़ों से ही शुरू होता है। ये नियम दिखने में छोटे दिखते हैं, लेकिन इनको तोडऩा जानलेवा होता है, और अक्सर ही बेकसूर लोग इसमें मारे जाते हैं। यह बात समझने की है कि सडक़ों पर जितनी दुर्घटनाएं होती हैं, उनमें अक्सर ही एक लापरवाह की वजह से दूसरे बेकसूर मारे जाते हैं।

छत्तीसगढ़ में पिछले दशकों में हम देखते आए हैं कि जब-जब दुपहिया चलाने वालों पर हेलमेट की बंदिश लागू की जाती है, तब-तब जो पार्टी सत्ता में नहीं रहती है, वह लोगों की लापरवाही को भडक़ाने का काम करती है, और हेलमेट अनिवार्य करने के खिलाफ मुहिम चलाती है। अभी मौजूदा कांग्रेस सरकार ने भी आने के बाद राजधानी में कुछ महीनों तक हेलमेट का अभियान चलाया, हजारों लोगों पर जुर्माना हुआ, दसियों हजार लोगों ने हेलमेट खरीद भी लिए, लेकिन फिर पुलिस की कार्रवाई बंद हो गई, और लोगों ने हेलमेट पहनना बंद कर दिया। हिन्दुस्तान में लोगों को अपनी जिंदगी की परवाह नहीं है, और हेलमेट लगाने के बजाय दुपहिया चलाते लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते दिखते हैं जिससे अपने अलावा वे दूसरों की जिंदगी भी खतरे में डालते हैं। इन दोनों बातों पर जुर्माने का नियम तो है, लेकिन यह किसी अफसर की सनक पर टिका रहता है कि उसके इलाके में कब कौन से नियम लागू किए जाएं। नतीजा यह है कि लोग बिना हेलमेट मोबाइल थामे हुए तीन सवारी लालबत्ती लांघते हुए चले जाते हैं, और उन्हें रोकने वाले कोई नहीं रहते। कारों और दूसरी बड़ी गाडिय़ों में भी सीट बेल्ट लगाने का काम तो केन्द्र सरकार ने करवा दिया है, लेकिन मौत से बचने का काम तो गाड़ी में बैठे लोगों को ही करना होगा, और पुलिस इस बात पर भी कोई कार्रवाई नहीं करती है।

दरअसल व्यापक जनसुरक्षा के ये मुद्दे राज्य सरकार या स्थानीय अफसरों की मर्जी पर नहीं छोड़े जाने चाहिए। सडक़ पर जनसुरक्षा के लिए जरूरी बातों को भी अगर पुलिस लागू नहीं कर रही है, तो पुलिस खुद नियमों के खिलाफ काम कर रही है, और ऐसी पुलिस को देखते हुए राज्य सरकार कुछ नहीं कर रही है तो वह भी अपनी कानूनी जिम्मेदारी से मुंह चुरा रही है। यह सिलसिला शायद तब तक चलते रहेगा जब तक कि लोग अदालत न जाएं, और सरकार-अफसरों की गैरजिम्मेदारी के खिलाफ कोई अदालती आदेश न पाएं। वैसे कोलाहल के खिलाफ अदालतों से मिले हुए आदेशों के बावजूद स्थानीय प्रशासन और पुलिस किसी-किसी मामले में ही कार्रवाई करते दिखते हैं, इसलिए अदालत भी कोई मायने रखेगी इस पर भी शक किया जा सकता है।

आज जब स्कूल और कॉलेज के बच्चे अपनी जिंदगी का पहला गैरकानूनी काम सडक़ों पर नियम तोडऩे का करते हैं, तो वहां से कानून की हेठी की उनकी जिंदगी शुरू होती है, और फिर वह धीरे-धीरे दूसरे तमाम दायरों तक बढऩे लगती है। इस सिलसिले को अगर शुरू में ही रोक दिया जाए, तो सडक़ों पर मौतें बच सकती हैं, और मौतों से कम के हादसे भी घट सकते हैं। बिलासपुर में कल नाबालिग की चलाई जा रही जिस कार से मजदूर कुचले गए हैं, और मौत हुई है, हमें कोई हैरानी नहीं होगी कि वे नाबालिग होने के साथ-साथ बिना सीट बेल्ट के भी होंगे, और हो सकता है कि गाड़ी चलाने वाला भी मोबाइल फोन पर लगा हुआ हो। इस घटना को देखते हुए पूरे प्रदेश में पुलिस को जांच करनी चाहिए, और हर शहर में दो-चार मां-बाप जब बच्चों को गाडिय़ां देने के जुर्म में जेल जाएंगे, तो ही बाकी लोगों की लापरवाही टूटेगी।

यह सिलसिला पैसे वाले लोगों से शुरू होता है, और गरीबों को कुचलता है। यह सडक़ों पर एक सामाजिक गैरबराबरी से उपजे बेइंसाफ का सिलसिला है, जिसे तोडऩा जरूरी है। राज्य सरकार की यह न्यूनतम जिम्मेदारी है कि वह हेलमेट और सीट बेल्ट लागू करे, और मोबाइल फोन का नाजायज इस्तेमाल रोके। इसके अलावा भी कुछ और बातें संगठित और कारोबारी ट्रांसपोर्ट से जुड़ी हुई हैं जिन्हें तुरंत सुधारने की जरूरत है। ट्रांसपोर्ट के काम में लगी गाडिय़ां बहुत बुरी तरह बदहाल हैं, और बिना ब्रेक लाईट, बैक लाईट के वे सडक़ों पर कहीं भी खड़ी रहती हैं जिनमें पीछे से आती हुई गाडिय़ां घुस जाती हैं, और आए दिन मौत होती हैं। इस किस्म की आपराधिक लापरवाही को जरा भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए, और अगर कोई चौकन्ने पुलिस अफसर हों, तो वे अपने इलाके से ऐसी किसी भी गाड़ी की आवाजाही को तुरंत ही रोक सकते हैं। यह सब करने के लिए कुछ तो राज्य सरकार की भी दिलचस्पी चाहिए, और कुछ अफसरों की अपनी पहल भी। कुल मिलाकर अफसर तो राज्य सरकार के ही मातहत हैं, ऐसे में जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही है।
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