संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गांव के गांव साइबर-जुर्म में माहिर मुजरिम हो गए, और जांच एजेंसियां सुस्त
24-Feb-2022 12:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  गांव के गांव साइबर-जुर्म में माहिर मुजरिम हो गए, और जांच एजेंसियां सुस्त

photo seetu tiwari

बिहार के नवादा जिले का थालपोश गांव इन दिनों उबल रहा है क्योंकि हफ्ते भर पहले पुलिस ने वहां रहते हुए फोन और इंटरनेट पर साइबर जुर्म में लगे हुए 33 लोगों को गिरफ्तार किया है जिनमें से 31 लोग इसी गांव के हैं। इनमें से अधिकतर ऐसे नौजवान हैं जो पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए, या पढ़-लिखकर बेरोजगार हैं, और वे मामूली लैपटॉप और मोबाइल फोन पर तरह-तरह का झांसा देकर पूरे देश में धोखाधड़ी और जालसाजी का जाल फैला चुके थे, और तरह-तरह की एजेंसी दिलाने के नाम पर लोगों से रकम ऐेंठ लेते थे, अपने बैंक खातों में पैसे बुलवा लेते थे, और वहां से बाहर निकाल लेते थे। अब तीन हजार की आबादी वाले छोटे से गांव में एक साथ इतने लोगों की गिरफ्तारी से जाहिर है कि हंगामा मचा हुआ है। लेकिन लोगों को याद होगा कि झारखंड में भी जामताड़ा नाम की एक ऐसी जगह है जहां के लोग बड़ी संख्या में साइबर मुजरिम हो गए हैं, और रात-दिन टेलीफोन करके देश भर में लोगों को ठगते रहते हैं।

अब आज जब हिन्दुस्तान में हर मोबाइल सिमकार्ड, हर इंटरनेट कनेक्शन, और हर मोबाइल हैंडसेट या लैपटॉप की शिनाख्त बड़ी आसान हो गई है, और पुलिस के थानेदार तक कुछ घंटों में ही किसी मोबाइल की लोकेशन निकाल सकते हैं, तब किसी एक जगह से संगठित अपराध के ऐसे कुटिर उद्योग चलना हैरान करता है। सरकार की क्षमता तो जाहिर तौर पर बहुत अधिक है, लेकिन सरकार की तैयारी अपने देश के अर्धशिक्षित और अशिक्षित बेरोजगार ग्रामीणों के मुकाबले भी बहुत कम है, खासकर साइबर-जुर्म के मामले में। देश का सबसे कड़ा साइबर कानून रहते हुए भी उस पर अमल सबसे कमजोर चल रही है, तभी देश भर में हर दिन दसियों हजार लोग साइबर ठगी और धोखाधड़ी के शिकार हो रहे हैं। जिस रफ्तार से हिन्दुस्तानी जिंदगी में डिजिटल लेन-देन और साइबर कामकाज बढ़ा है, उस हिसाब से लोगों का रातोंरात साइबर-शिक्षित हो जाना मुमकिन भी नहीं था। ऐसे में डिजिटल कामकाज को बढ़ावा देने वाली सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह लोगों को जागरूक करने का अभियान भी लगातार चलाती रहे, और अपने कम्प्यूटर-औजारों से यह भी नजर रखे कि संगठित जुर्म किन फोन और कम्प्यूटरों से किए जा रहे हैं। आज हालत यह है कि बहुत से ऐसे अशिक्षित और गरीब लोग हैं जो कि साइबर ठगी की शिकायत तक करने की हालत में नहीं हैं। इन लोगों को आज सरकार की लागू की गई साइबर-बैंकिंग या दूसरे डिजिटल-इंतजाम का इस्तेमाल तो करना पड़ रहा है, लेकिन उनके पास जालसाजी-धोखाधड़ी से बचने की समझ नहीं है। यह नौबत तेजी से बदलनी चाहिए।

साइबर जालसाजी और ठगी से परे कई दूसरे किस्म के साइबर जुर्म भी चल रहे हैं जिनमें नकली आईडी बनाकर दूसरे लोगों की फोटो लगाकर सोशल मीडिया अकाऊंट बनाना और लोगों को धमकी देना, ब्लैकमेल करना जैसे काम चल रहे हैं। इनको रोकने की ताकत भी सिर्फ सरकार के हाथ है क्योंकि देश में साइबर सुरक्षा को लागू करना किसी नागरिक के हाथ में नहीं है। यह काम भी बहुत बुरी तरह चल रहा है कि लोगों को सोशल मीडिया पर ब्लैकमेल करके, उनकी निजी तस्वीरें पोस्ट करके, या मैसेंजर सर्विसों से फैलाकर उन्हें खुदकुशी के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसी खबरें हर हफ्ते सामने आती हैं, और इन पर सजा की खबरें भूले-भटके ही दिखती हैं। जबकि साइबर सुबूत पुख्ता रहते हैं, इनके बाद गवाही की जरूरत नहीं रहती है, और अदालती फैसले तेजी से हो सकते हैं। लेकिन साइबर-जुर्म 21वीं सदी की रफ्तार से चल रहे हैं, और उन पर अदालती कार्रवाई 19वीं सदी की रफ्तार से। यह नौबत मुजरिमों के लिए मजे की है, और जुर्म के शिकार लोगों के लिए खुदकुशी की मजबूरी की। देश की साइबर एजेंसियों और राज्यों की पुलिस में अगर कोई साइबर शाखा है, तो उसे भी तेजी से काम करना चाहिए, और ऐसे जुर्म को तेजी से सजा तक पहुंचाना चाहिए। हो सकता है कि परंपरागत ढर्रे पर काम करने वाली वर्दीधारी पुलिस खुद भी साइबर-क्राईम की रोकथाम और उसकी शिनाख्त के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित न हो, ऐसे में पुलिस को विभाग से बाहर के साइबर-जानकार नौजवानों की सेवाएं लेने के बारे में भी सोचना चाहिए जिससे कि जुर्म की जांच एकदम तेज हो सकेगी। देश की पुलिस कई पीढ़ी पहले के तौर-तरीकों पर काम करती है, और देश के अनपढ़ साइबर-मुजरिम भी आज के कानून की समझ से आगे जाकर जुर्म करते हैं। गैरबराबरी के इस सिलसिले में फासला बढ़ते ही चल रहा है, और केन्द्र और राज्य सरकारों की जांच एजेंसियों को परंपरागत ढांचे से बाहर आकर विशेषज्ञता हासिल करनी होगी, तभी जनता बच सकेगी।
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